नई दिल्ली, 25 जून, (वीएनआई) बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने आज आपातकाल के उस दौर को याद करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तुलना जर्मनी के क्रूर तानाशाह हिटलर से की।
गौरतलब है आज ही के दिन देश में 25 जून 1975 की आधी रात को आपातकाल की घोषणा की गई थी, जो 21 मार्च 1977 तक जारी रहा था। इस दौरान मीडिया की आजादी दबाई गई और विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया। इसी आपातकाल के दौरान अरुण जेटली भी जेल गए थे।
अरुण जेटली ने आज अपने एक फेसबुक पोस्ट में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा की तुलना हिटलर से करते हुए लिखा है कि दोनों ने ही संविधान की धज्जियां उड़ाईं। उन्होंने आम लोगों के लिए बने संविधान को तानाशाही के संविधान में तब्दील कर दिया। उन्होंने आगे लिखा है कि हिटलर ने संसद के ज्यादातर विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार करवा लिया था और अपनी अल्पमत की सरकार को उसने संसद में दो तिहाई बहुमत के रूप में साबित कर दिया। जेटली ने लिखा इंदिरा ने भी संसद के ज्यादातर विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार करवा लिया था और उनकी अनुपस्थिति में दो तिहाई बहुमत साबित कर संविधान में कई सारे संशोधन करवा लिए। 42वां संशोधन के जरिए हाई कोर्ट का रिट पिटीशन जारी करने के अधिकार को कम कर दिया गया। डॉ भीमराव आंबेडकर के संविधान की यह आत्मा थी। इसके अलावा इंदिरा ने आर्टिकल 368 में भी बदलाव किया था ताकि संविधान में किए गए बदलाव जूडिशल रिव्यू में नहीं आ पाए।
अरुण जेटली ने आगे अपने पोस्ट में इंदिरा पर कई तंज कस्ते हुए लिखा है कि इंदिरा ने तो कुछ ऐसी भी चीजें कर डालीं जो हिटलर ने भी नहीं किया था। इंदिरा ने संसदीय कार्यवाही की मीडिया में प्रकाशन पर भी रोक लगा दी। इंदिरा ने संविधान और लोकप्रतिनिधित्व ऐक्ट तक में बदलाव कर डाला। संशोधन के जरिए प्रधानमंत्री के चुनाव को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती थी। लोक प्रतिनिधित्व कानून को रेट्रस्पेक्टिव (पूर्वप्रभावी) तरीके से संशोधित कर दिया गया ताकि इंदिरा के गैरकानूनी चुनाव को इस कानून के तहत सही ठहराया जा सके। हिटलर से कई कदम आगे जाकर इंदिरा ने भारत को 'वंशवादी लोकतंत्र' में बदल दिया। स्वर्ण सिंह कमिटी ने 42वें संविधान संशोधन के जरिए संविधान में कई बदलाव किए। इसमें सबसे ज्यादा आपत्तिजनक बदलाव था संसद की अवधि को दो साल के लिए बढ़ा देना। संविधान के प्रावधान के तहत लोकसभा का कार्यकाल अधिकतम 5 साल का हो सकता था। इसमें बदलाव नहीं किया जा सकता था लेकिन, आपातकाल में ऐसा हुआ। हकीकत तो यह रहा कि 1971 से 1977 तक लोकसभा का कार्यकाल छह साल के लिए रहा। हालांकि इस प्रावधान को जनता पार्टी सरकार ने बदल दिया था।
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