हाजीपुर (बिहार), 18 अक्टूबर (वीएनआई) संसार के पहले सबसे बड़े लोकतंत्र वैशाली जिले के महुआ में इस विधानसभा चुनाव के दौरान लोकतंत्र की बजाय राजनीतिक विरासत संभालने के ज्यादा चर्चा है। कभी अनुपम थी वैशाली की अनुपम रमणीयता तथा हिमालयपर्यंत फैले यहाँ के प्राकृतिक वैभव को देखकर ही बुद्ध नेकभी अपने परम शिष्य आनंद से कहा था-‘आनंद, रमणीय है वैशाली, रमणीय है उसका उदयन चैत्य, उसका वह गोतमक चैत्य रमणीय है, सप्ताम्रक चैत्य रमणीय है, रमणीय है, आनंद उसके बहुपुत्तक चैत्य, सारंदद चैत्य। अभिराम है, रमणीय है आनंद वैशाली।’
वैशाली जिले का महुआ विधानसभा क्षेत्र इस चुनाव में सबसे 'हॉट सीट' माना जा रहा है, क्योंकि बिहार की राजनीति के कद्दावर नेता लालू प्रसाद ने अपने पुत्र तेज प्रताप को पहली बार चुनाव मैदान में उतारा है और हलफनामे में दाखिल अपनी उम्र को लेकर उपजे विवाद के शांत होने के बाद आरजेडी अध्यक्ष के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव अब अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत को नए रंग देने में जुट गए हैं
तेज प्रताप यादव के लिए कुरुक्षेत्र का मैदान है वैशाली जिले का महुआ विधानसभा क्षेत्र- लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव में दिलचस्पी रखनेवाले समूचे देश की जनता के मन में ये सवाल है कि महुआ के महाभारत में क्या तेजप्रताप यादव अर्जुन साबित हो पाएंगे या फिर इस जंग में जीत किसी और की होगी महुआ के स्थानीय आरजेडी कार्यकर्ता जोर-शोर से चुनाव में तो जुटे ही हुए हैं- तेज प्रताप यादव के एक गैर राजनीतिक संगठन डीएसएस यानी धर्मनिरपेक्ष स्वयंसेवक संघ के सदस्य भी रात-दिन एक किए हुए हैं . डीएसएस का गठन तेज प्रताप ने आरएसएस के मुकाबले के लिए तैयार किया था. इसके पीछे तेज प्रताप का तर्क ये है कि आरएसएस के राष्ट्र विरोधी विचारधारा का मुकाबला करने में ये संगठन भविष्य में अहम भूमिका निभाएगा . फिलहाल डीएसएस के कार्यकर्ता महुआ के राजनीतिक मुकाबले में तन-मन से जुटे हुए हैं.
स्थानीय जानकारों के अनुसार महुआ के चुनावी मैदान में सिर्फ तेज प्रताप नहीं लड़ रहे हैं- बल्कि यहां तो आरजेडी के वजूद की लड़ाई है. महुआ विधानसभा सीट पर तेज प्रताप की जीत या हार से तय होगा कि आनेवाले समय में आरजेडी का वर्चस्व बिहार में मजबूत होगा या फिर पार्टी लोकप्रियता के पायदान पर फिसलती चली जाएगी . आरजेडी इस हकीकत से भली-भांति वाकिफ है इसलिए वो महुआ सीट पर जीत को पक्की करने में अपनी तरफ से कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही .
वैसे महुआ की लड़ाई जहां न केवल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना है बल्कि लालू प्रसाद, पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और सत्तारूढ़ महागठबंधन के नेताओं के लिए भी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ है।
महुआ के एक राजद नेता बताते हैं कि स्थानीय कार्यकर्ता जोर-शोर से चुनाव में तो जुटे ही हुए हैं, तेज प्रताप यादव के एक गैर राजनीतिक संगठन धर्मनिरपेक्ष स्वयंसेवक संघ के सदस्य भी रात-दिन एक किए हुए हैं।
बिहार के अन्य क्षेत्रों की तरह यहां की अधिकांश आबादी कृषि पर आधारित है। यही कारण है कि यहां के किसानों का कहना है कि जो भी यहां किसानों की बात करेगा वही महुआ पर राज करेगा।दो लाख से ज्यादा मतदाताओं वाले इस यादव बहुल क्षेत्र में कोईरी और कुर्मी भी चुनाव परिणाम को प्रभावित करते हैं। वैसे इस क्षेत्र में पिछड़ी और अगड़ी जाति के मतदाताओं की भी अच्छी संख्या है।
राजद के एक स्थानीय नेता ्के अनुसार महुआ के चुनावी मैदान में सिर्फ तेज प्रताप नहीं लड़ रहे हैं, बल्कि यहां तो राजद के वजूद की लड़ाई है। वे दावा करते हैं कि तेज प्रताप की टक्कर में अन्य कोई उम्मीदवार नहीं है।
इधर, राजग के घटक दल हम के प्रत्याशी रवींद्र राय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साध रहे हैं। राय मुख्यमंत्री को तानाशाह बताते हुए कहते हैं कि लोकतंत्र में उनकी तानाशाही को चुनौती देने के लिए ही वह मैदान में डटे हुए हैं।अब एनडीए ने रवींद्र राय को जीत दिलाने में पूरी ताकत झोंकना शुरू दिया है क्योंकि अगर महुआ सीट एनडीए के खाते में चली जाती है तो ये लालू यादव पर एनडीए का बड़ा प्रहार साबित होगा राजद उम्मीदवार तेज प्रताप यादव का मुख्य मुकाबला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की ओर से हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के उम्मीदवार और निवर्तमान विधायक रवींद्र राय से माना जा रहा है,
दूसरी तरफ सांसद पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी से मोर्चा संभाले हुए जोगेश्वर राय इस लड़ाई को त्रिकोणात्मक बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं।
जोगेश्वर राय साल 2010 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी के उम्मीदवार थे और तब के जेडीयू उम्मीदवार रवींद्र राय ने उन्हें 21,925 वोटों से शिकस्त दी थी . जोगेश्वर राय को अभी कुछ महीनों पहले ही आरजेडी से निलंबित कर दिया गया था- वजह थी कि वो महुआ सीट से ही चुनाव लड़ने पर आमादा थे और पार्टी के लिए आंखों की किरकिरी साबित हो रहे थे- जिन्हें पार्टी ने निकाल फेंकना ही बेहतर समझा
उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र में विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण में 28 अक्टूबर को मतदान होना है, लेकिन इतना तय माना जा रहा है कि जातीय समीकरणों के बीच 'सियासी विरासत' की चाल इस क्षेत्र के परिणाम को अवश्य प्रभावित करेगा।
बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों के लिए 12 अक्टूबर से शुरू हुआ मतदान का दौर पांच नवंबर तक पांच चरणों में चलेगा। पहले और दूसरे चरण का मतदान संपन्न हो चुका है। सभी सीटों के लिए मतगणना आठ नवंबर को होगी।