नई दिल्ली ,6 जनवरी (साधनाअग्रवाल /वीएनआई) सूर्य की गति में होने वाले परिवर्तन की वजह से इस वर्ष मकर संक्रांति असामान्य रूप से १४ जनवरी की बजाय 15 जनवरी को आएगी . मकर संक्रांति पर्व सामान्यत प्रतिवर्ष एक निश्चित तिथि पर यानी 14 जनवरी को मनाया जाता है।भारतीय पर्वों में केवल मकर संक्रांति ही एक ऐसा पर्व है जिसका निर्धारण सूर्य की गति के अनुसार होता है
सूर्य जिस राशि पर रहते हुए उसे छोड़ कर जब दूसरी राशि में प्रवेश करता है, उस काल विशेष को ही संक्रांति कहते हैं।सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना ही मकर संक्रांति कहलाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। शास्त्रों में उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा गया है। इस दिन स्नान, दान, तप, जप और अनुष्ठान का अत्यधिक महत्व है.मकर संक्रांति के दिन सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है। मकर संक्रांति से दिन बढऩे लगता है और रात की अवधि कम होती जाती है। चूंकि सूर्य ही ऊर्जा का सबसे प्रमुख स्त्रोत है इसलिए शास्त्रो में मकर संक्रांति मनाने का विशेष महत्व है इसी कारण मकर संक्रांति पर्व प्रतिवर्ष एक निश्चित तिथि पर 14 जनवरी को मनाया जाता है।
वर्षों से मकर संक्रांति पर्व 14 जनवरी को मनाते आए हैं, लेकिन बीते दो साल से यह त्योहार 15 जनवरी को मनाया जा रहा है और इस साल फिर लगातार तीसरी बार 15 जनवरी को मनाया जाएगा।दरअसल तिथि में यह बदलाव 2014 से शुरू हुआ, जो इस वर्ष तीसरी बार हो रहा है । इसके बाद फिर दो साल तक मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाएगी। वर्ष 2016 के बाद 2019, 2020 में भी संक्रांति 15 जनवरी को होगी , जबकि लीप ईयर होने से बीच में 2017 और 2018 में संक्रांति पर्व 14 जनवरी को मनाया सूर्य को अर्घ्यजाएगा।
इस दिन लोग जनवरी की भारी ढंड के बावजूद सुबह तड़के पवित्र नदियों, सरोवरों में स्नान करते है , उस के बाद सूर्य को अर्घ्य देते है पूजा पाठ दान-पुण्य करते है । इस दिन तिल और गुड के सेवन का विशेष महत्त्व है , देश के अनेक भागो में इस दिन पतंगबाजी भी होती है और रंग बिरंगी पतंगे आकाश में उड़ती हुई म नो हारी दर्शय बनाती है मकर संक्रांति के दिन सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है। वी एन आई