गावों से शहर
छोड़ कर अपने लोग ,छोड़ कर सर का छप्पर
खुले आसमानों के के नीचे रहने चले आते हैं
ये गावों से शहर मुहं के निवालों की खातिर
लम्बी दूरियां तय कर के चले आते हैं
....सुनील जैन
No comments found. Be a first comment here!
Posted on 2nd May 2020
Posted on 15th Jun 2016
Posted on 31st May 2017