नई दिल्ली 17 अक्टूबर (वीएनआई) आज नवरात्र पर्व का पांचवां दिन है ,नवरात्र के नौ दिन दुर्गा मां के भक्तों के लिए अपने नौ ग्रहों को शांत कराने का अहम मौका होता है. नवरात्र के पांचवें दिन नवदुर्गा के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता्की आराधना की जाती है .कार्तिकेय (स्कन्द) की माता होने के कारण इनको स्कन्दमाता कहा जाता है.देवी स्कन्द माता पर्वत राज हिमालय की पुत्री पार्वती हैं इन्हें माहेश्वरी और गौरी के नाम से भी जाना जाता है। वात्सल्य की प्रतिमूर्ति मां स्कंदमाता भगवान कार्तिकेय को गोदी में लिए हुए हैं और इनका ये रूप साफ जाहिर करता है कि ये ममता की देवी अपने भक्तों को अपने बच्चे के समान समझती हैं. साथ ही मां स्कंदमाता की पूजा करने से भगवान कार्तिकेय की पूजा भी स्वयं हो जाती है. मां के इस स्वरूप की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। मां सारे दोष और पाप दूर कर देती है। मां अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। ये सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं, इसी कारण इनके चेहरे पर तेज विद्यमान है. इनका वर्ण शुभ्र है. देवी स्कंदमाता का वाहन सिंह है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं,इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में और नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं इसलिए इनको पद्मासना देवी भी कहा जाता है। नवरात्र-पूजन के पांचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। इस चक्र में अवस्थित मन वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाओं एवं चित्त वृत्तियों का लोप हो जाता है।
स्कंदमाता की पूजा विधि :नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर बहुत ही विधि-विधान से माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-उपासना की जाती है, जिनकी कुंडली में बृहस्पति कमजोर हो ऐसे लोग स्कंदमाता की पूजा जरूर करें.स्कंदमाता की पूजा में पीले फूल अर्पित करें. चने की दाल, मौसमी फल और केले का भोग लगाएं.अगर पीले वस्त्र धारण किए जाएं तो पूजा के परिणाम अति शुभ होंगे.
इनकी पूजा का सामान्य मंत्र है – "ॐ स्कंदमाता देव्यै नमः"
विशेष मंत्र
“ॐ ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद महालक्ष्मये नमः"