नई दिल्ली 1 मार्च (अनुपमा जैन,वीएनआई) जापान की परंंपरागत \'जिकिडेन रेकी आध्यात्मिक चिकित्सा पद्धति \' डायबटीज, गठिया, स्लिप डिस्क और बहरापन जैसी अनेक बीमारियो के साथ साथ लाईलाज माने जाने वाली अनेक बीमारियो मे भी बहुत कारगर पाई गई है साथ ही यह मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक बीमारियो मे भी बहुत असरकारक मानी जाती है, दरअसल यह चिकित्सा पद्धति बीमार तन,मन के साथ तंदरूस्त के लिये भी बहुत उपयोगी हि और यह उन्हे और भी तरो ताजा करती है .
भारत यात्रा पर आये विश्व प्रसिद्ध जिकीडेन रेकी मास्टर फ्रेंक अरजावा पीटर ने राजधानी मे आयोजित एक व्याख्यान मे यह जानकारी देते हुए बताया कि दरसल यह चिकित्सा पद्धति केवल बीमार तन,मन को ही नही बल्कि तंदरूस्त व्यक्ति को और तरो ताजा करती है, प्रफ्फुलित करती है . उन्होने कहा कि आज दुनिया को इस स्वास्थ्य पद्धति को दोबारा अपनाये जाने की बहुत जरूरत है,यह न केवल सस्ती रहती है बल्कि इसका असर भी रोगी पर बहुत जल्द नजर आता है. उन्होने कहा कि रेकी तन , मन, दोनो की बीमारियो के ईलाज के लिये बहुत कारगर पाई गई है. रेकी मास्टर् ने बताया कि जिकिदेन रेकी दरसल जापान की चिकित्सा की एक बहुत प्राचीन आध्यात्मिक चिकित्सा पद्धति है जिसको बड़ी तादाद मे लोग प्रयोग करते है,उन्होने कहा कि जिसे वे तथा उनके सहयोगी दोबारा से इसे व्यापक पैमाने पर अपनाये जाने की महत्ता के अभियान मे जुटे है. इस अवसर पर उन्होने इस विधा का वहा मौजूद कुछ लोगो पर प्रयोग करके भी दिखाया. इस विधा को प्रयोग करने वाले अनेक लोगो ने भी इस बारे मे अपने अनुभव भी साझे किये.उन्होने कहा कि यह तकनीक रक्तचाप, डिप्रेशन, भय जैसी मानसिक परेशानियो मे भी बहुत फायदा देती है. भारत मे इस पद्धति के पहले जिकिडेन रेकी मास्टर अमित सिंह भी इस मौके पर मौजूद थे. श्री सिंह के अनुसार वे लोग भारत मे इस को लोगो तक पहुंचाने का एक अभियान चला रहे है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इससे लाभान्वित हो सके,क्योंकि यह न केवल करगर है बल्कि आम आदमी की पहुंच मे है और इसके ईलाज का भी जल्द असर देखने को मिलता है. उन्होने बताया कि इस पद्धति की खासियत यह है कि इसके जरिये बीमार या उपचार करने वाला तो लाभान्वित होता ही है बल्कि यह एक ऐसी अनूठी पद्धति है जिससे उपचार करने वाले रिकी मास्टर मे भी प्राणिक उर्जा का संचार होता है, साथ ही इसे अन्य चिकित्सा पद्धतियो के साथ साथ कराया जा सकता है. रेकी से बीमारियो की इलाज के साथ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है, शरीर के टॉक्सीन्स नष्ट होते है तथा आप स्वयं को तरोताजा महसूस करते है. उन्होने बताया कि अपनी बीमारियो पर प्रचलित चिकित्सा पद्धतियो से इलाज का कोई असर नही होने से निराश हो कर उन्होने इस चिकित्सा पद्धति का सहारा लिया था और स्वस्थ होने पर वे इसे अब जन साधारण तक पहुंचाने के अभियान से जुड़े है. रेकी मास्टर र्फ्रंक ने दु्निया भर् मे लोगों को इस विधा को सिखा रहे है तथा इस बारे मे उन्होने अनेक पुस्तके भी लिखी है.