गरीबी हिंसा है, पूरा समाज इसके लिए जिम्मेदार-गांधीवादी इला भट़ट

By Shobhna Jain | Posted on 9th Jul 2017 | देश
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नयी दिल्ली ९ जुलाई (वी एन आई) गांधीवादी समाज सेविका इला भट़ट ने विचार व्यक्त कि्या है कि गरीबी एक हिंसा है और इसके लिए पूरा समाज जिम्मेदार है, समाज के हर व्यक्ति की सहमति से यह बदस्तूर जारी है लेकिन उन्होने विश्वास व्यक्त किया कि पूरे समाज के सह्योग से इस हिंसा से निबटा जा सकता है. सुश्री भट्ट अपनी पुस्तक ’अनुबंध-बिल्डिंग हंड्रेड माइल कम्युनिटी’ कीे वरिष्ठ पत्रकार नीलम गुप्ता द्वारा हिंदी में अनूदित पुस्तक' अनुबंध" के विमोचन के मौके पर यहां इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रही थी. वयोवृद्ध गॉधीवादी ने कहा कि सत्ता और संसाधनों का विकेंद्रीकरण करके ही गरीबी भुखमरी बीमारी और अशिक्षा जैसी विकराल समस्या को जट से मिटाया जा सकता है. गरीबी भुखमरी पेयजल बीमारी अशिक्षा और बैंकिंग व्यवस्था जैसी समस्याओं पर समग्र रूप से विचार करने की जरूरत पर बल देते सुश्री भटट ने बताया कि उन्होंने 'सेवा' संगठन के माध्यम से इन समस्याओं का व्यावहारिक समाधान खोजने की कोशिश की है1 सुश्री भटट ने बताया कि इन समस्याओं से निपटने के तरीके खोजने में उन्हें स्वराज और स्वदेशी की महात्मा गांधी की अवधारणा से प्रेरणा मिली1 उत्पादक और उपभोक्ता के बीच बढती दूरी पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि कम से कम रोटी कपडा और मकान जैसी मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए 100 मील के दायरे के अंदर ही इनका उत्पादन और उपभोग होना चाहिए तथा दोनों के बीच सीधा सम्बन्ध होना चाहिए. बढते उपभोक्तावाद के कारण समाज और पर्यावरण को हो रहे नुकसान के प्रति आगाह करते हुए उन्होंने कहा कि हमें उपभोग करते समय इस बात का ध्यान रखना होगा कि इसका समाज देश और पर्यावरण पर क्या असर पड रहा है क्योंकि पृथ्वी की हर चीज एकदूसरे से परस्पर जुडी हुई है 1 किसानों की समस्या का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आज वह अपने लिए खेती करने की बजाय नकदी फसल की ओर आकर्षित हो रहा है1इस सिलसिले में घाना के किसानों का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि वहां के किसान पहले पोल्ट्री का व्यवसाय और टमाटर की खेती करते थे और वही उनका खानपान भी था लेकिन बाद में वे निर्यात के लिए नकदी फसल उगाने लगे और फ्रोजेन चिकन और डिब्बाबंद टमाटर का रस खरीदकर खाने लगे1इस स्थिति को खतरनाक बताते हुए उन्होंने आशंका जतायी कि अपने देश में भी यही हाल न हो जाय1 उन्होंने इस बात पर भी चिंता जतायी कि शोध और प्रौद्योगिकी आमजन से लगातार दूर होती जा रही1इनका विकास करते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि यह आम आदमी की उत्पादकता और आय बढाने में मददगार साबित हो1 सिक्किम के पूर्व राज्यपाल एवं विश्व बैंक में भारत के निदेशक रहे वाल्मीकि प्रसाद सिंह का कहना था कि देश में सामुदायिक विकास और समग्र विकास का विश्व बैक का माडल इसलिए विफल हो गया क्योंकि ये सरकारी एवं नौकरशाही के तंत्र पर निर्भर थे और आम आदमी से दूर हो गये थे 1 पुस्तक पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि सतत विकास लक्ष्य का हिस्सा होने के साथ -साथ यह भारतीय आत्मा से जुडी हुई है1इसमें दूसरों के विचारों के प्रति आदर आर्थिक स्वावलंबन और पर्यावरण की रक्षा की बात की गयी है1 इंडियन सोसाईटी फार ट्रेनिंग की संस्थापक और इस पुस्तक के गुजराती संसकरण की अनुवादिका मंदाकिनी पारेख ने कहा कि गांधीवादी विचारधारा पर आधारित यह पुस्तक अर्थव्यवस्था का विकेद्रीकरण करके समावेशी समाज का ठोस एजेंडा पेश करती है1 उन्हांेंने कहा कि अब हर व्यक्ति की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए एकदूसरे की संवेदनाओं को समझने की दिशा में आगे बढने का समय आ गया है1लोकतंत्र में इसकी शुरूआत जनता को ही करनी पडेगी1पुस्तक का हिंदी में अनुवाद करने वाली पत्रकार नीलम गुप्ता ने इस पुस्तक के अनुवाद को समाज के विभिन्न पहलुओ से साक्षात्कार का एक अनूठा अनभव बताया.कार्यक्रम की शुरूआत में उन्होने किताब के कुछ अंशों का पाठ किया1 केंद्र के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने कहा कि यह पुस्तक समाज और दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है उसके प्रति चिंता और चेतावनी है और इसमें भविष्य के लिए दृष्टि भी है1 यह शासक वर्ग के लिए आईना है1 पुस्तक का हिंदी में अनुवाद करने वाली पत्रकार नीलम गुप्ता ने इस पुस्तक के अनुवाद को समाज के विभिन्न पहलुओ से साक्षात्कार का एक अनूठा अनभव बताया.कार्यक्रम की शुरूआत में उन्होने किताब के कुछ अंशों का पाठन भी किया. इस अवसर पर बड़ी ताद मे पत्रकार,कार्यक्र्ताओ समेत बड़ीतादाद मे लोग मौजूद्थे

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