सहगल की मौत से \'गमगीन प्रंशसको\' ने उनकी आखरी फिल्म देखी ही नही...( सहगल जन्म दिन पर विशेष)

By Shobhna Jain | Posted on 11th Apr 2015 | देश
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नई दिल्ली 11 अप्रैल(जे.सुनील,वीएनआई) विवाह के बाद पहाड से भी भारी दर्द के साथ घर से विदा हो रही बेटी के विछोह भरे ‘बाबुल मेरा नैहर छूटा जाए’ अमर गीत से आज भी लाखो मजबूत दिलो को रूला देने वाले अमर गायक कुंदन लाल यानि के एल सहगल की आज 111वी जन्म तिथी है.फिल्मी गीतो के स्वर्ण युग की बुलंद ईमारत रखने वाले और अपनी मख़मली और जादूभरी आवाज़ से छा जाने वाले इस गायक का जन्म चार अप्रैल 1904 को जम्मू के नवांशहर में रियासत के तहसीलदार अमर चंद सहगल के घर हुआ. शायद कम ही लोग जानते होंगे कि अपनी आवाज से लाखो दिलो को दीवाना बना देने वाले इस गायक की आवाज बचपन मे एक बार चली गयी थी लेकिन जनूनी सहगल ने अपने स्वभाव के अनुरूप दिन-रात रियाज़ जारी रखा और उनकी आवाज वापस आ गयी,शायद इसी जुनून के कारण ही अभिनय और गायकी में उन्होने शोहरत की बुलंदियों को छुआ। मात्र तिरतालीस वर्ष की उम्र मे उनके निधन से प्रशंसक इस कदर सदमें में आ गये थे की उनके निधन के बाद रिलीज़ हुई उनकी फिल्म \"परवाना\",लोगों ने इस गम मे देखी ही नहीं कि वे अपने महा नायक की फिल्म को उनकी आखिरी फिल्म मानने को तैयार ही नही थे. उनके पिता बालक कुंदन की प्रतिभा को बचपन में ही पहचान चुके थे। सहगल बचपन में रामलीला में पूर्ण रूप से सक्रिय रहते, गीत भी गाते और अभिनय भी करते। सहगल स्कूल शिक्षा पूरी नहीं कर पाये और उन्होंने रेलवे में टाइम कीपर की नौकरी कर ली । कुछ समय बाद उन्होंने टाइपराइटर सेल्स मैन की नौकरी कर ली और उन्हें बहुत से शहरों में घूमने का अवसर मिला पर उनका संगीत प्रेम उन्हें बेचैन कर रहा , चैन से बैठने ही नही दे रहा था इसी संगीत प्रेम की वजह से वर्ष 1930 में वो कलकत्ता पहुंचे, जो की उस वक्त फिल्म जगत का केंद्र था , वहां के न्यू थियेटर में सहगल को 200 रूपये मासिक पर काम करने का मौका मिला, वर्ष 1933 में प्रदर्शित फिल्म पुराण भगत की कामयाबी के बाद बतौर गायक सहगल कुछ हद तक फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गये। । इस फिल्म में उनके गाये चार भजन देश भर में काफी लोकप्रिय हुये । इसके बाद \'यहूदी की लड़की\', \'चंडीदास\' और \'रूपलेखा\' जैसी फिल्मों के बाद उनकी अदाकारी और गायकी ,जिसमे वे गहरायी तक डूब जाते थे, को लोगो ने खूब सराहा. सहगल साहब की न केवल आवाज़ बल्कि दिल भी उतना ही नरम तथा लोगों को अपनी ओर जबरदस्त रूप से आकर्षित करने वाला था। पी.सी.बरूआ निर्देशित फिल्म \'देवदास\' की कामयाबी के बाद सहगल गायक और अभिनेता के तौर पर बहुत लोकप्रिय हुए । इस फिल्म में उनके गाए गीत काफी लोकप्रिय हुए। इस बीच सहगल ने \'न्यू थियेटर\' निर्मित कई बंगला फिल्मो में भी काम किया । वर्ष 1937 में प्रर्दशित बांग्ला फिल्म \'दीदी\' की अपार सफलता के बाद सहगल बंगाल का जाना पहचाना नाम हो गए । उनका गायन सुनकर रवीन्द्र नाथ टैगोर ने भी उनके गायन की खूब तारीफ की । 1941 में सहगल मुंबई आ गए और \'रंजीत मूवी टोन\' में काम करने लगे और उन्होंने \'भक्त सूरदास\' ,\'तानसेन\' में अभिनय किया व् गाने गाये वर्ष 1946 में सहगल ने संगीत सम्राट नौशाद के संगीत निर्देशन में फिल्म ..\'शाहजहां..में गम दिये मुस्तकिल और जब दिल ही टूट गया\' जैसे गीत गाकर अपना अलग समां बांधा, और दुनिया को मिला फिल्मी संगीत का बेताज बादशाह. सहगल साहब ने अपने तकरीबन 14 वर्ष के फिल्मी जीवन में 27 फिल्मों में अभिनय किया और अपनी अभिनीत फिल्मों में सहगल ने करीब 130 गीत गए। उनकी अंतिम फिल्में ‘शाहजहां’ और ‘परवाना’ उनकी यादगार फिल्में थे, जिनमें उन्होंने अभिनय भी किया था और उनके गीतों के साथ-साथ उनके अभिनय को ही बेहद सराहा गया था कुंदन लाल सहगल ने भले ही शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा नहीं ली थी, फिर भी उनके गीत शास्त्रीय धुनों पर ही आधारित थे। लेकिन अपने अमर गीतो से दुनिया को बेशकीमती गीतो का खजाना देने वा्ले सहगल इस दुनिया मे कुछ ही दिनो के मेहमान रहे. के एल सहगल 18 जनवरी 1947 को महज 43 वर्षा की उम्र मे इस दुनिया को अलविदा कह गये। उनके एक बुजुर्ग प्रशंसक के अनुसार \'सहगल के निधन से लोग इस कदर सदमें में थे की उनके निधन के बाद रिलीज़ हुई उनकी फिल्म \"परवाना\",लोगों ने इस गम मे देखी ही नहीं कि वे अपने महा नायक की फिल्म को आखिरी फिल्म मानने को तैयार ही नही थे । सहगल के निधन के बाद बी.एन.सरकार ने उन्हे श्रंध्दाजली देते हुये उनके जीवन पर एक वृत्त चित्र \'अमर सहगल\' का निर्माण किया। इस फिल्म में सहगल के गाये गीतो मे से 19 गीत को शामिल किया गया.वी एन आई
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