नई दिल्ली,9 मार्च,(अनुपमा जैन) सावधान!‘छिपकर वार करने वाले काला मोतिया रोग ’ से बचने के लिये पूरी सतर्कता बरते। अक्सर सामान्य मरीज को इस रोग के लक्षण नही पता लग पाते है दरअसल, इस मर्ज का पता मरीज को तब चलता है जब उसको ‘नजर का नुकसान’ इस हद तक हो चुका होता है, जिसकी भरपाई नामुमकिन हो जाती है। यही नहीं, एक और चौंकाने वाली जानकारी है। ग्लूकोमा दुनिया भर में अंधेपन (दृष्टिहीनता) के प्रमुख कारणों में से एक है। भारत में 1.2 करोड़ लोग ग्लूकोमा से पीडि़त हैं। दुनिया भर में जितने भी ग्लूकोमा के मरीज हैं, उनमें से 20 फीसदी लोग भारत में ही रहते हैं। वर्ष 2001-02 में कराए गए एनपीसीबी-डब्ल्यूएचओ सर्वेक्षण के मुताबिक, भारत में अंधेपन के 5.80 फीसदी मामले ग्लूकोमा की ही वजह से हैं। ग्लूकोमा दरअसल एक ‘खामोश बीमारी’ है। अगर शुरू में ही पता न चले तो यह मर्ज धीरे-धीरे बढ़ने लगता है और ज्यादा बढ़ जाने पर अंधेपन की भी नौबत आ सकती है। यही कारण है कि ग्लूकोमा को ‘ दृष्टि का अदृश्य चोर’ भी कहा जाता है। ग्लूकोमा ऑप्टिक नर्व को क्षतिग्रस्त करने लगता है, जिससे आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होने लगती है। यहां तक कि इस मर्ज के ज्यादा बढ़ जाने पर अंधेपन की भी नौबत आ सकती है, जिसे किसी भी इलाज से ठीक नहीं किया जा सकता है। भारत में कराए गए अनेक अध्ययनों से इस मर्ज के ‘खामोश’ होने के बारे में पुष्टि हो चुकी है। तकरीबन 90 फीसदी मामलों में मरीजों को ग्लूकोमा की बीमारी होने का पता तब चला जब वे किसी अन्य मर्ज के इलाज के लिए नेत्र विशेषज्ञ के यहां पहली बार गए थे। भारतीय आम तौर पर ‘एंगिल क्लोजर ग्लूकोमा’ से पीडि़त रहते हैं जिसे कहीं ज्यादा खतरनाक माना जाता है। राजधाने के ग्लुकोमा विशेषज्ञ और राम मनोहर अस्पताल के ग्लुकोमा विभाग प्रमुख डॉ मानवदीप सिंह के अनुसार संतोषजनक बात यह है कि अगर वक्त रहते ग्लूकोमा मर्ज का पता चल जाए तो लेजर या शल्य चिकित्सा से इसको आसानी से काबू में किया जा सकता है तथा इस तरह आगे और नुकसान झेलने से बचा जा सकता है। इसी के मद्देनजर जन जागरूकता लाने को ध्यान में रखकर ही गत8 मार्च को दिल्ली में ‘ग्लूकोमा जागरूकता वॉक’ का आयोजन किया गया। इसी सिलसिले मे ८ मार्च को राजधानी के प्रतिष्ठित अखिल भारतीय आयुर्वुज्ञान एम्स के आर.पी नेत्र रोग केन्द्र मे एक सार्वजनिक व्याख्यान आयोजित किया ्गया.इस मौके पर केंद्र के वरिष्ठ नेत्र रोग विशेज्ञ डॉ रोहित सक्सेना ने बत्ताया कि दरअसल इस रोग से भयभीत होने की बजाय सावधानी बरतने की है. ३५-४० ्वर्ष आयु वर्ग के लोगो को नियमित आंख की जांच करानी चाहिये. रोग का पता लगने पर नियत समय पर आंख मे दवा डालने सेरोग की काबू मे रहने की उम्मीद की जाती है. इसे केन्द्र के वरिष्ठ ग़्लुकोमा विशेषज्ञ डॉ विनय अग्रवाल के अनुसार जिन लोगो के परिवार मे ये बीमारी अनुवांशिक रूप से है या जो मधुमेह रोग से पीड़ित है, उन्हे इस बीमारी से ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत नही है. रोग का पता लगने पर अगर समय से दवा डाली जाये और चिकित्सक के सलाह से चला जाये तो रोग के प्रकोप को बढने से रोका जा सकता है
ग्लूकोमा सोसायटी ऑफ इंडिया (जीएसआई) और दिल्ली ऑप्थैल्मिक सोसायटी (डीओएस) के तत्वावधान में गुरु नानक आई सेंटर तथा दिल्ली के डॉ. श्रॉफ के चैरिटी आई हॉस्पिटल के डॉक्टरों द्वारा देश की राजधानी में ‘ग्लूकोमा जागरूकता वॉक’ का आयोजन किया गया। इस पहल के तहत एनसीआर के अनेक जाने-माने नेत्र विशेषज्ञों और दिल्ली के अन्य नागरिकों समेत 8 मार्च को बड़ी तादाद मे राजघाट पर एकत्रित हुए। दिल्ली के विधायक सुरेंदर सिंह इस अवसर पर मुख्य अतिथि थे, । इससे ठीक पहले मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के विद्यार्थियों द्वारा ग्लूकोमा की स्क्रीनिंग और प्रबंधन की अहमियत पर एक नुक्कड़ नाटक का आयोजन किया गया। इस वॉक का आयोजन डॉ. श्रॉफ के चैरिटी आई हॉस्पिटल तक एल्कॉन इंडिया के सहयोग से किया गया। ‘विश्व ग्लूकोमा सप्ताह’ के तहत दिल्ली के अनेक प्रमुख अस्पतालों में इसी हफ्ते जन जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल और डॉ. श्रॉफ के चैरिटी आई हॉस्पिटल में ‘ओपीडी’ के लिए तय अवधि के दौरान हर रोज जन जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
गुरू नानक आई सेंटर की ग्लूकोमा विभाग की डायेरेक्टर प्रो. डॉ की्र्ति सिंह और डॉ श्रॉफ चैरिटी नेत्र अस्पताल दरयागंज की ग्लोकोमा सेवा की प्रमुख डॉ दुबे के अनुसार ‘विश्व ग्लूकोमा सप्ताह’ के आयोजन का मुख्य मकसद लोगों को ग्लूकोमा के प्रति जागरूक करना और इस मर्ज के समुचित प्रबंधन अथवा इलाज के बारे में साथी डॉक्टरों को आवश्यक सूचनाएं प्रदान करना है। ग्लूकोमा के मरीजों के साथ-साथ उनके परिवारों को आवश्यक जानकारियां मुहैया कराना भी इसका एक उद्देश्य है। गौरतलब है कि विश्व भर में इस साल 8 मार्च से लेकर 14 मार्च तक ‘विश्व ग्लूकोमा सप्ताह’ का आयोजन किया जा रहा है। ग्लूकोमा सोसायटी ऑफ इंडिया हर साल ‘विश्व ग्लूकोमा सप्ताह’ का आयोजन करती है। पिछले 7 वर्षों से भारत के विभिन्न शहरों में भी पूरे जोश के साथ ‘विश्व ग्लूकोमा सप्ताह’ का सफलतापूर्वक आयोजन किया जाता रहा है। वीएनआई