्नई दिल्ली 14 नवंबर (वी एन आई) 14 नवंबर की तारीख भारतीय इतिहास में एक विशेष स्थान रखती है, क्योंकि आज का दिन बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हमारे पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की जयंती के रूप में मनाया जाता है, जो बच्चों के प्रति अपनी विशेष स्नेहभावना के लिए प्रसिद्ध थे। उनके योगदान को हम आज भी गर्व से याद करते हैं, और यह दिन उनकी महानता और उनकी सोच को श्रद्धांजलि देने का दिन बन चुका है।
पंडित नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 को इलाहाबाद में हुआ था। उनका बचपन आनंद भवन में बीता, जो उनके पिता मोतीलाल नेहरू ने 1930 में बनवाया था। पहले इसका नाम स्वराज भवन था, जो उस समय के राजनीतिक और सामाजिक परिवेश में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता था। यह भवन आज भी भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण स्थल है, जहाँ से पंडित नेहरू ने अपने विचारों और राजनीतिक दृष्टिकोण को आकार दिया।
नेहरू जी की शिक्षा का सफर भी विशेष था। उन्होंने 1907 में ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज में दाखिला लिया और 1910 में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इस दौरान वह न केवल एक अच्छे छात्र थे, बल्कि उन्होंने अपने समय के सबसे बड़े नेताओं और विचारकों से भी बहुत कुछ सीखा।
पंडित नेहरू के जीवन की सबसे खास बात यह थी कि वह अपने पिता की इच्छाओं के विपरीत खड़े रहे। मोतीलाल नेहरू चाहते थे कि उनका बेटा कांग्रेस छोड़कर अपनी स्वराज पार्टी में शामिल हो, लेकिन पंडित नेहरू ने गांधी जी के साथ रहते हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से नाता बनाए रखा। यह एक ऐसा कदम था जिसने भारतीय राजनीति की दिशा बदल दी।
पंडित नेहरू को 'पंडित' कहा जाता था क्योंकि वह कश्मीरी पंडित समुदाय से ताल्लुक रखते थे। उनका जीवन एक प्रेरणा बन गया था, और उन्होंने ही 1927 में पूर्ण राष्ट्रीय स्वतंत्रता का विचार दिया। उनका मानना था कि भारतीयों को ब्रिटिश साम्राज्य से सभी संबंधों को समाप्त करना चाहिए। उनकी यह सोच और यह दृष्टिकोण भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण पड़ाव बने।
नेहरू जी ने अपने जीवन के दौरान भारत को एक नई दिशा दी। वह आधुनिक भारत के वास्तुकार माने जाते हैं। उनकी दूरदर्शिता ने देश को औद्योगिकीकरण, विज्ञान, और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कई मील के पत्थर तक पहुँचाया। दिल्ली स्थित उनका आवास 'तीन मूर्ति भवन' अब नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय के रूप में भारत के इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है।
बालकों के प्रति उनके प्यार और स्नेह के कारण ही 14 नवंबर को बाल दिवस के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई। पहले 20 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाता था, लेकिन 1964 में पंडित नेहरू के निधन के बाद संसद ने उनके जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव रखा, और तब से यह परंपरा बन गई।
उनका 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' भाषण आज भी भारतीय राजनीति और इतिहास का अहम हिस्सा है, जो 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्ति के समय दिया गया था। पंडित नेहरू का निधन 27 मई 1964 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था, और उनके अंतिम संस्कार के समय लगभग 15 लाख लोग एकत्रित हुए थे, जो उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के प्रति भारतीय जनता की गहरी श्रद्धा का प्रतीक था।
पंडित नेहरू का जीवन केवल एक नेता का जीवन नहीं था, बल्कि एक ऐसे विचारक, समाज सुधारक, और राष्ट्रीय नायक का जीवन था, जिनकी सोच और कार्यों ने भारत को एक नई दिशा दी। उनका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता, और उनके प्रति हमारी श्रद्धा हमेशा बनी रहेगी। आज का दिन, बच्चों के इस खास दिन को मनाते हुए, हमें यह याद दिलाता है कि हम भविष्य के नागरिकों के रूप में किस दिशा में उन्हें नेतृत्व दे सकते हैं।
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