हर तोहमत सहती है खिजां
भीगी पलकें लिए हुए होती है रुखसत
दुनिया में छोड़ जाती है बहार
खिजां की कोख में पनपती है ,
खिजां की टूटती सांसों से, जिंदगी
पाती है बहार
सूखे दरख्तों जर्द पत्तों पर बसेरा करने वाली खिजां से,
नरम शाखों ,खिलती कलियों,मुस्काते गुलों का बिछोना पाती है बहार
खुद को फना करने का माद्दा रखती है खिजां
वरना कहाँ से आती बहार
खुद काँटों का ताज पहन लेती है खिजां,
ताकि रुत की रानी का ताज पहन सके बहार
-- सुनील जैन
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