साइबर आतंक का बढ़ता खतरा

By Shobhna Jain | Posted on 16th May 2017 | विदेश
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साइबर आतंक से जुड़ी एक घटना ने पूरी दुनिया को को हिलाकर रख दिया है। यह वैश्विक मुल्कों के लिए सबसे बड़े खतरे की चुनौती है। समय रहते अगर इसका समाधान नहीं खोजा गया तो यह हमारे लिए नासूर बन जाएगी। फिर भारत के लिए डिजिटल इंडिया का सपना अधूरा रह जाएगा। दूसरी बड़ी बात, अगर इन आतंकी हैकरों के हाथ सुरक्षा प्रणालियां लग गईं तो क्या होगा? ऐसे तमाम सवाल हैं, जिनका जवाब मिलना बाकी है। साइबर आतंकवाद बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया है। कंप्यूटर साइंस और डिजिटल जगत के विशेषज्ञों के लिए हैकरों का नेटवर्क मुश्किल चुनौती बन गया है। दो दिन पूर्व दुनियाभर में 10 हजार से अधिक सिस्टम सिर्फ 24 घंटे में हैक हो गए और 75 हजार से अधिक साइबर हमले हुए, जिसमें भारत सहित 100 से अधिक देश शामिल थे। यह घटना साइबर जगत के वैज्ञानिकों के लिए एक अहम चुनौती है, इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। साइबर आतंक का खात्मा हर हाल में होना चाहिए। वरना दुनिया की अहम जानकारियां साइबर आतंकियों के हाथ में होंगी और पल भर में सब कुछ उलट-पुलट हो जाएगा। यह स्थिति इतनी भयावह होगी, जिसकी हम कल्पना तक नहीं कर सकते। यह एक ऐसी स्थिति होगी, जब आतंकी संगठन साइबर विशेषज्ञों की मदद से पूरी दुनिया को ऑनलाइन सिस्टम के जरिए हैकिंग कर पूरी व्यवस्था को अपनी मुट्ठी में कर लेंगे। उस स्थिति में उनकी बात मानने के सिवाय हमारे पास कोई विकल्प नहीं होगा। यह दुनिया के लिए विषम और कठिन स्थिति साबित होगी। कंप्यूटर आज हमारी जिंदगी से जुड़ गया है। निजी जानकारियों से लेकर व्यवसाय, विज्ञान, विकास, सरकार और सुरक्षा से जुड़ी अहम जानकारियां कंप्यूटर में कैद है। देश और दुनिया में संचार क्रांति ने काफी लंबा सफर तय कर लिया है। आज के संदर्भो में यह संभव नहीं है कि हम संचार और साइबर दुनिया से कट कर जिए। पूरे विश्व में आधुनिक तकनीक और वैज्ञानिक तरीकों को उपयोग किया जा रहा है, लेकिन उस सुरक्षा प्रणाली के नियंत्रण के लिए हमारे पास कोई दूसरी सुविधा उपलब्ध नहीं है। साइबर आतंकी किसी भी देश की सुरक्षा प्रणाली और व्यवस्था को हैक कर सकते हैं। सही बात यह है की हम तकनीकों के अपनाने और सुविधाओं को और अधिक जनसुलभ बनाने की बात करते हैं, लेकिन उस प्रणाली को सुरक्षित रखने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाते। साइबर आतंक और अपराध से जुड़ी यह घटना हमारे लिए कठिन चुनौती है। जरा वह स्थिति सोचिए, जब दुनिया भर की सुरक्षा प्रणालियां साइबर हैकर्स के जरिए आतंकी संगठनों तक पहुंच जाएंगी और वैश्विक स्तर पर तबाही मच जाएगी, फिर क्या होगा, हमारी सुरक्षा और इंसानियत का? जब दुनिया की सबसे सुरक्षित प्रणाली अमेरिका की मानी जाती है, लेकिन साइबर आतंकियों ने अमेरिकी सुरक्षा एजेंसी से भी उस तकनीकी को चोरी कर दुनिया में तबाही मचाने की साजिश रची, जिसमें सबसे अधिक ब्रिटेन, स्वीडेन और फ्रांस प्रभावित हुआ। हालांकि भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। आंध्र प्रदेश में इसका असर देखा गया और पुलिस विभाग का सिस्टम हैक हो गया। 25 फीसदी कंप्यूटर काम करना बंद कर दिया। ब्रिटेन में नेशनल हेल्थ सर्विस और निजी अस्पतालों का सिस्टम ठप होने से मरीजों से संबंधित डाटा और रिकार्ड उपलब्ध न होने की वजह से इलाज के लिए अस्पताल आए मरीजों को वापस लौटना पड़ा। आनेवाला वक्त साइबर आतंक और अपराध के लिए और उपयुक्त हो सकता है। इसके अलावा हैकरों ने धमकी भी दी कि उनकी मांग पर गौर नहीं किया जाता है तो वह फाइलों को गायब कर देंगे। उनकी तरफ से 300 से 600 वर्चुअल मनी की मांग भी की गई। सॉफ्टवेयर वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके लिए रैन्समवायरस जिम्मेदार है। यह सिस्टम में मौजूद फाइलों को इनक्रिप्ट कर देता है और साइबर आतंकियों की बात कबूलने के बाद ही इसे खोला जा सकता है। यानी साइबर अपराधी इसके जरिए दुनिया भर के मुल्कों से अच्छी खासी फिरौती जुटाने की जुगत में लगे हैं। इस गेम में बड़े आतंकी संगठनों का भी हाथ हो सकता है। यह बात भी सामने आई है कि आनलाइन हैकरों ने इसके बदले वर्चुअल करेंसी बिटकाइन में फिरौती की मांग रखी। बिटकाइन वर्चुअल (आभासी) करेंसी है। जिस तरह से डॉलर, यूरो और रुपयों की खरीद होती है, उसी तरह यह भी आनलाइन खरीदी जाती है। यह एक्सचेंज भी होती है। ऑनलाइन पेमेंट के अलावा इसे किसी भी देश की व्यवस्था में प्रचलित मुद्रा से भी भी बदला जा सकता है। इसका लेनेदन बिना किसी मध्यस्थता के भी किया जा सकता है। इसके पहले 2013 में इस तरह का हमला हुआ था। यह अब तक का सबसे बड़ा हमला बताया गया है। साइबर आतंक से निपटने के लिए शीघ्र ठोस विकल्प तलाशने होंगे। वरना बड़े खतरे के रूप में उभरते इस दानव का गठजोड़ अगर आतंकी संगठनों से हो गया तो वह स्थिति क्या हो सकती है, जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती है। पूरी दुनिया आतंकवादियों के हाथ में होगी। अगर दुनिया की परमाणु सुरक्षा प्रणाली को साइबर आतंकियों ने हैक कर लिया तो क्या होगा। हालांकि अधिकांश मुल्कों की सेना ने अपनी जानकारियों को इंटरनेट से दूर रखा है। इस खतरे को भांपते हुए अमेरिका पहले ही एयर फोर्स साइबर स्पेस कमान नाम का संगठन गठित किया है। चीन में भी इस तरह की व्यवस्था है। आम शिक्षा, सुरक्षा और रक्षा से जुड़ी तमाम जानकारियों औ नियंत्रण कंप्यूटर के जरिए होता है। बैंक, स्टॉक एक्सचेंज, रेल, अस्पताल, होटल, टूरिज्म जैसी हर सेवाएं ऑनलाइन हैं। सभी को गुगल एप से जोड़ा गया है। रोज एक नया एप जारी हो रहा है। फिर हैक की स्थिति में क्या होगा। 20 साल पूर्व अमेरिका में एक 12 साल के छात्र ने एरिजोना स्थित रूजवेल्ट डैम की नियंत्रण प्रणाली को ही हैक कर लिया था। वह चाहता तो डैम का फाटक भी खोल सकता था। अगर ऐसा होता तो कल्पना कीजिए अमेरिका का पूरा एक हिस्सा जलमग्न हो जाता। साइबर आतंक की वह सबसे खतरनाक स्थिति होगी, जब इसका उपयोग आतंकी संगठन करने लगेंगे। सुरक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण ईमेल और दूसरी जानकारियां भी हैक हो सकती है। अलकायदा जैसे आतंकी संगठन साइबर अपराध के जरिए पूरी दुनिया को तबाह करने का सपना देख रहे हैं, उस पर काम भी कर रहे हैं। भारत के पास आईटी वैज्ञानिकों का पूरा हब है। हमारी ऐसी प्रतिभाएं अमेरिका जैसे देश की तरफ रुख कर रही हैं। हमें उनकी जानकारियों का उपयोग करना होगा। खतरा आने से पहले उस पर नियंत्रण का उपाय खोजना होगा। साइबर अपराध पर एक वैश्विक नीति बननी चाहिए। जिस तरह से ग्लोबल वार्मिग, परमाणु अप्रसार और दूसरों मसलों पर दुनिया के देश एक मंच पर आ रहे हैं। उसी तरफ बढ़ते साइबर अपराध पर नियंत्रण के लिए ठोस नीति बननी चाहिए। वक्त रहते अगर हमने नहीं चेता, तो वह वक्त दूर नहीं जब आतंकवाद, नक्सल और नक्सलवादक की तरफ साइबर आतंक भी हमारे लिए नासूर बन जाएगा। वह एक स्थिति हमारे सामने ऐसी होगी, जब हमारे पास साइबर आतंकियों की बात मानने के सिवाय हमारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं होगा। (आईएएनएस/आईपीएन)

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