नई दिल्ली 30 अप्रैल( शोभना जैन वीएनआई )एक तरफ जहा गजा त्रासदी को ले कर अमेरिका , सउदी सहित पश्चिमी देशों व पश्चिम एशियायी देशों के बीच राजनयिक वार्ताओं का दौर और तेज हो गया हैं वही इजरायल हमास के बीच हो रहे इस युद्ध को ले कर बड़ी तादाद में अमरीकियों के बायड्न सरकार की नीतियों के खिलाफ यह ्शांतिपूर्ण विरोध विश्वविद्द्यालयों तक पहुंच गया हैं. ऐसे में एक तरफ जहा सवाल उठाये जा रहे हैं कि गजा का मुद्दा बेहद गंभीर हैं लेकिन विश्वविद्यालयों के अंदर इस तरह के आक्रामक विरोध प्रदर्शनों के रूप में इसे उठाना सही भी नही हैं , दूसरी तरफ ेक तर्क यह भी हैं कि विरोध का तरी्के को पूरी तरह से भले ही सही ना माना जायेयें लेकिन विरोध का मुद्दा तो सही हैं. अमरीका की कोलंबिया विश्वविद्यालय में कुछ दिन पहलें छात्रों के एक ग्रुप ने ग़ज़ा मे इसराइली सैन्य कार्रवाई के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया और अपने-अपने टेंट विश्वविद्यालय में लगा दियें. इन विरोध प्रदर्शनों में कुछ भारतीय छात्र भी शामिल हैं. धीरे धीरे यह विरोध प्रदर्शन अमरीका के अन्य विश्वविद्यालयों में भी फैल रहा है.गजा को ले कर अमरीका के अंदर ही बायडन सरकार की नीति को ले कर कड़ा विरोध व्यक्त किया जा रहा हैं ऐसे मे विश्वविद्यालयों के अंदर इन शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों के औचित्य को ले कर गंभीर सवाल उठ खड़े हुये हैं.
गौरतलब हैं कि छात्रों ने यूनिवर्सिटी से अपील की है वह उन कंपनियों के साथ काम करना बंद करे, जो ग़ज़ा में युद्ध का समर्थन कर रही हैं.विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्र यूनिवर्सिटी प्रशासन ने उन कंपनियों के साथ काम न करने की मांग कर रहे हैं जो इसराइल के साथ जुड़ी हुई हैं. इसके अलावा छात्रों ने इसराइली शैक्षणिक संस्थानों के साथ संबंध खत्म करने और अविलंब युद्ध विराम का एलान करने की मांग की है.
दरसल गजा मुद्दें पर पहले से ही आंदोलित छात्रों की यह लामबंदी जब शुरू हुई जब कि कोलंबिया यूनिवर्सिटी की अध्यक्ष मिनोचे शफीक को कैंपस में यहूदी विरोधी भावना को लेकर अमरीकी कांग्रेस की तीखी आलोचना का सामना करना पड़ा. उन्होंने सफादी दी कि वे उससे कैसे निपट रही हैं. लेकिन उन के इस बयान के फौरन बाद विश्वविद्यालय में न्यूयॉर्क पुलिस ने घुस कर शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लगभग 100 छात्रों को हिरासत में ले लिया,जिससे अमेरिका के कई कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज में विरोध की आग भड़क उठी.
इन गिरफ्तारियों को लेकर छात्रों में तुरंत गुस्सा फूटा और अगले ही दिन कैंपस के अंदर कुछ ही मीटर की दूरी पर एक अलग लॉन में एक और जगह विरोध प्रदर्शन होने लगा.कैंपस के अंदर यह धरनास्थल पहले की तुलना से बहुत बड़ा था.छात्रों ने इस जगह पर टेंट लगा दिए यहां छात्रों ने खाने-पीने की व्यवस्था, लाइव प्रदर्शन और अन्य गतिविधियॉ करनी शुरू कर दी.एक दिन बाद कोलंबिया के निकट कनेक्टिकट में येल यूनिवर्सिटी में भी ऐसा ही नजारा देखने को मिला. यहां भी छात्रों ने कैंपस के अंदर एक जगह को धरना स्थल में बदल दिया.हाल यह है कि अमेरिका के दर्जनों परिसरों में इस तरह के प्रदर्शन हो रहे हैं और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के छात्र राष्ट्रीय स्तर पर विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे हैं.
कुछ लोगों का कहना है कि ये विरोध प्रदर्शन 1960 के दशक की याद दिलाते हैं जब अमेरिका के लोग वियतनाम युद्ध के विरोध में अपने ही देश के ख़िलाफ़ सड़कों पर आ गए थे.
दरसल इसराइल, हमास के खिलाफ युद्ध को ले कर छात्रों के बीच पहले से ही पश्चिम एशिया में बदलते हालातों को लेकर कैंपस में गंभीर बहस ्चल रही हैं और छात्रों का एक बड़ा वर्ग इस पर अपना विरोध व्यक्त कर रहा है. अमेरीका के ज्यादातर नागरिक भी गजा को ले कर सरकार की नीतियॉ से खफा हैं. हाल ही किये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार 71 प्रतिशत अमरीकियों ने गजा मुद्दें से सही तरह से निबट नहीं पाने के लियें ्बायडन प्रशासन की आलोचना की हैं.
सवाल है कि यूनिवर्सिटी के नेता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रदर्शन करने के अधिकार के बीच में संतुलन को कैसे बिठाते हैं? उस से भी अहम यह बात कि छात्रो साथ सामंजस्य बिठाने मे फेकल्टी की क्या भूमिका रहती हैं.कैंपस में प्रदर्शन तो पिछले छह महीने से चल रहे हैं लेकिन पिछले दस दिन में ये बहुत बड़े और तेज हो गए हैं. इन शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों पर अमरीकी सरकार की नीतियॉ पर दुनिया भर की नजर हैं.
अमरीकी विश्वविद्यालय के विरोध प्रदर्शन को रोकने के सरकार के तौर तरीकों पर भारत ने भी कहा हैं " किसी भी लोकतंत्र के लियें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, उत्तरदायित्व की भावना और जनता की सुरक्षा और व्यवस्था बनाये रखने के बीच सही संतुलन होना चाहिये. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस बाबत टिप्पणी करते हुये कहा लोकतांत्रिक देशों को खास तौर पर दूसरे देशों की लोकतातंत्रिक व्यवस्थाओं को समझनें के लियेंअच्छी समझ बूझ दिखानी चाहिये क्योंकि अन्ततः जो हम अपने देश में करते हैं हमारा मूल्यांकन उसी से होता हैं ना कि विदेशों में हम क्या कहते हैं, इस से "
निश्चय ही अब तक के घटनाक्रम से तो यही लगता हैं कि विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्र एक गंभीर मुद्द्दें को ले कर शांतिपूर्ण विरोध व्यक़्त कर रहे हैं, हालांकि कुछ का मानना हैं कि छात्रों की इस तरह के प्रदर्शनों का राजनैतिक रंग अख्त्यार कर लेने और फैल जाने का खतरा रहता हैं. ऐसे में शुरूआती दौर में ही मुद्दें की गंभीरता और उस पर छात्रों की संवेदनशीलता और सरोकार समझते हुये किसी प्रकार की अप्रिय स्थति को टालने की जिम्मेवारी फेकल्टी पर होती हैं.
फिल हाल जरूरत इस बात की हैं कि बायडन प्रशासन इजरायल और हमास के बीच हो रहे खूनी संघर्ष, निर्दोषों की मारकाट और जान माल की भारी तबाही को बंद करवाने के लिये इजरायल पर दबाव बनाने की अपनी जिम्मेवारी निभायें . समाप्त