नई दिल्ली,10 दिसंबर ( शोभना जैन/ वीएनआई)सीरिया में इस्लामी विद्रोहियों द्वारा गत रविवार को बशर-अल -असद की सरकार का तख्ता पलटकिये जाने के बाद से एक तरफ जहा बड़ी तादाद में सीरिया वासियों में जशन का माहौल है, उसी के साथ सीरिया के भावी नेतृत्व और सीरिया की स्थति को ले कर देश भर में अनिश्चितता भी हैं. भारत सहित दुनिया भर भी वहा के घटनाक्रम पर बारीकी से नजरें रखी हुई हैं. भारत ने कहा हैं" हम सीरिया में चल रहे घटनाक्रमों के मद्देनजर वहां की स्थिति पर नज़र रखे हैं। हम इस बात पर ज़ोर देते हैं कि सभी पक्षों को सीरिया की एकता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने के लिए काम करना चाहिए।
आधिकारिक बयान में कहा गया है, “हम सीरियाई समाज के सभी वर्गों के हितों और आकांक्षाओं का सम्मान करते हुए शांतिपूर्ण और समावेशी सीरियाई नेतृत्व वाली राजनीतिक प्रक्रिया की वकालत करते हैं।” विद्रोही गुटउल्लेखनीय हैं कि
हयात तहरीर अल-शाम (एचटीएस) नेता अबू मोहम्मद अल जुलानी ने 'दमिश्क पर कब्ज़े' का विजयी एलान किया लेकिन वहा असद के दमनचक्र से त्रस्त जनता हालांकि फिलहाल तो जश्न के मूड में जरूर हैं लेकिन साथ ही वह देश के भविष्य को ले कर चिंतित भी हैं. अभी यह समझ नही आ रहा हैं कि वहा सत्ता का असक दावेदार कौन होगा. सीरिया का भविष्य क्या होगा ?
दर असल पिछले तेरह वर्ष से दमनकारी तरीकों से गृह युद्ध को दबाने में लगी कमजोर असद सरकार इतनी जल्द एकाएक कैसे गिरी, इस के तार युक्रेन-रूस युद्ध और इजरायल से भी जुड़े हैं . सीरिया ्के मित्र रहें और असद का समर्थक रूस, ईरान आदि देश अपनी समस्यायों मे उलझे हुये है. पश्चिम एशिया के एक जानकार के अनुसार इसी वजह से ये देश दमनकारी असद सरकार का तख्त इस बार नही बचा पायें.
गौरतलब हैं किसीरिया में इस्लामी विद्रोहियों ने रविवार को राष्ट्रपति बशर अल-असद को सत्ता से बाहर करने की घोषणा की. विद्रोहियों के दमिश्क पर नियंत्रण होने के बाद असद ने रूस में शरण ली है. इसके साथ ही देश में 13 साल के गृहयुद्ध का अंत हो गया. राष्ट्रपति असद के पूर्व कट्टर सहयोगी ईरान और रूस भी एक समावेशी राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करने का आह्वान कर रहे हैं.
अगर भारत और सीरिया संबंधों की बात करे तो दोनों देशोंके बीच द्विपक्षीय संबंध पश्चिम एशिया में गुटनिरपेक्ष आंदोलन के समय से ही रहे हैं. दोनों देशों के बीच प्राचीन सभ्यताओं का भी मेल-मिलाप रहा है.सीरिया में गृहयुद्ध की शुरुआत 2011 में हुई, लेकिन भारत के सीरिया में असद सरकार के साथ संबंध बरकरार रहे.
भारत ने सीरिया के गृह युद्ध के चरम के दौरान भी दमिश्क में अपना दूतावास बनाए रखा. अब जब गृह युद्ध ख़त्म हो गया है, तो भारत के सामने नई राजनयिक चुनौतियां आ गई हैं. वी एन आई