नई दिल्ली नवम्बर (शोभना जैन, वीएनआई )प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग के बीच पॉच वर्ष की चुप्पी के बाद रिश्तों को पटरी पर लाने की जो कवायद पिछले कुछ समय पूर्व शुरू हुई, उसी सिलसिलें को आगे बढते हुये इस सप्ताह रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ चीन के रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री के बीच हुई "सकारात्मक बातचीत और अनुरूप कदम उठाये जाने को ले कर" हुई सहमति से रिश्तों को सामान्य बनाने की एक उम्मीद तो बनी है, लेकिन बड़ें सवाल यह हैं कि क्या चीन इस बार इस भरोसे को बनाये रखेगा /क्या आपसी भरोसा और समझ बूझ कायम करने के लिये दोनों देशों के बीच एक "रोड मेप" बनाने की दिशा में जो सहमति बनी हैं,क्या माहौल ऐसा बनेगा कि. दोनों देश मिलकर उस दिशा में काम कर सकेंगे
यह मुलाक़ात ऐसे समय में हुई है जब दोनों देश अपने रिश्तों में पुरानी कड़वाहट को भुलाकर रिश्तों को सामान्य बनाने की दिशा में एक बार फिर बातचीत के लिये आमने सामने बैठे . शीर्ष नेता स्तरीय इस बैठक में मोदी ने कहा कि आपसी भरोसा,सम्मान, संवेदनशीलता संबंधों का आधार बना रहे, लेकिन साथ ही भारत का साफ तौर पर कहना हैं कि सीमा पर जब तक शांति कायम नही होगी, चीन के साथ संबंध सामान्य नहीं हो सकते हैं
गौरतलब हैं कि पूर्वी लद्धाख की गलवान घाटी में जून 2020 में भारतीय सैन्य टुकड़ी पर चीन की सैनिकों द्वारा किये गये अचानक नृशंस हमले के बाद दोनों देशों के बीच अत्याधिक गंभीर सैन्य टकराव की नौबत आ गयी थी और दोनों देशों के बीच तल्ख रिश्तें और भी तल्ख हो गये थे.
अहम बात यह हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच लगभग पॉच वर्ष बातचीत से दो दिन पूर्व ही दोनों देशों की सेनाओं ने सीमा पर तनाव कम करने की दिशा में हुई सहमति के बाद उस क्षेत्र में डेमचौक और डेप्सॉग में पिछले माह ही अपनी अपनी सेनाओं को पीछे हटाना शुरू कर दिया जिससे दोनों देशों के शिखर नेताओं के बीच ब्रिक्स के दौरान कजान में बातचीत का एक सकारात्मक माहौल बनाया जा सका. वार्ता में दोनों शिखर नेताओं ने आपसी सहमति के अनुरूप एक दूसरे देश की सेना के विवादास्पद क्षेत्र से सेना पीछे हटने, गश्त दोबारा शुरू करने सहित संबंधों को सामान्य बनाने के लिये, अनेक स्तर पर द्विपक्षीय वार्ता शुरू करने के निर्देश दिये.
दोनों देशों के बीच हाल ही जिस तरह से सीमा विवाद के मुद्दें पर पॉच वर्ष बाद विशेष प्रतिनिधिति स्तर की वार्ता जल्द बुलाने, सीधी उड़ान बहाल करने और मान सरोवर तीर्थ यात्रा दोबारा शुरू करने आदि के बारे में जो सहमति हुई हैं उस से सीमा पर शांति बहाल होने की उम्मीद की जानी चाहिये,वैसे भी सीमा विवाद के बावजूद दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध लगातर अच्छे रहे. सीमा विवाद के साथ ही दोनों देशों के बीच अनेक अहम विचाराधीन मुद्दे हैं, जिस दिशा में इस तनाव के चलते काम रूका पड़ा हैं मसलन नदियों के ऑकड़े साझा करने जैसे मुद्दें जिस का असर भारत को सीमावर्ती क्षेत्र में बाढ के प्रकोप झेलना पड़ता हैं. वर्ष 2017 में बाढ़ से आंकड़े इकट्ठा करने वाले केंद्रों को हुए नुक़सान का कारण बताकर चीन ने जल विज्ञान संबंधी डाटा साझा करने की प्रक्रिया रोक दी थी. हालांकि बीच-बीच में कुछ समय के लिए डाटा देना चालू किया गया था लेकिन सीमा पर तनाव होने के बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था.
मुलाक़ात के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक्स पर लिखा, "हमने भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में चल रही हाल में आपसी सहमति के अनुरूप सेनाओं को पीछे हटाने को लेकर बातचीत की और हमारे द्विपक्षीय संबंधों में अगले क़दमों पर विचार साझा किए. साथ ही वैश्विक स्थिति पर भी चर्चा की."
जयशंकर-वांग यी की मुलाक़ात के बाद दोनों देशों ने बयान जारी किया है, लेकिन इन बयानों में अंतर है. हालांकि अंतर के पक्ष में एक तर्क यह भी दिया जाता है कि ऐसे बयान अक्सर संयुक्त नहीं होते हैं. कूटनीतिक मामलों में संयुक्त बयान में सब कुछ शब्दश: एक जैसा होता है, जिस का अलग निहितार्थ निकाला जा रहा है.
दरअसल पिछले कुछ वर्षों मे अंतरराष्ट्रीय पटल पर जिस तरह खेमेबंदी खुल कर बढी हैं उस सब के चलते अंतर राष्ट्रीय समीकरण बदले हैं, और ताकतवर देश खुल कर अपनी स्थिति स्पष्ट करते रहे हैं. रूस- युक्रेन युद्ध के चलते अमरीका नीत मुख्यतः पश्चिमी देशों का "नाटो" गठबंधन एक तरफ हैं तो रूस के साथ चीन, ईरान सहित कुछ अन्य देश एक तरफ हैं. बहरहाल भारत ने वर्तमान उलझी हुई अंतर राष्ट्रीय समीकरणों के पेंच में फंसे होने के बावजूद उस ने रूस युक्रेन युद्ध मे निष्पक्ष बने रहने का प्रयास किया और रूस और अमरीका के साथ रिश्तों में संतुलन बनाये रखने की कूटनीति पर चल रहा हैं .
एक रक्षा विशेषज्ञ के अनुसार "भारत और चीन ने सैन्य तनाव कम करने की एक जटिल प्रक्रिया में केवल पहला कदम उठाया है, लेकिन बीजिंग पहले से ही अपनी राजनीतिक और व्यापारिक मांगों पर दबाव डाल रहा है, जब कि भारत की प्राथमिकता सीमा पर तनाव दूर करने और शांति बनाये रखने की है. वैसे सीमा विवाद के बीच भी दोनों देशों के आर्थिक संबंध खासे अच्छे रहे.
बहरहाल, जिस तरह से दोनों देशों ने संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में जो प्रयास और कदम उठाने शुरू किये हैं, उस से एक उम्मीद तो बनी हैं, लेकिन आगे बढने के लिये जरूरी हैं कि चीन भरोसा जगाये, कथनी करनी मे फर्क दूर करे और इस भरोसे को बनाये रखने के लिये अपना विस्तारवादी एजेंडा परे रख कर सीमा पर शांति बनाये रखे . समाप्त
No comments found. Be a first comment here!