मोहम्मद रफी की पुण्य तिथि पर विशेष- अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो

By Shobhna Jain | Posted on 31st Jul 2017 | मनोरंजन
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नयी  दिल्ली,31  जुलाई (सुनील कुमार)'ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नही...कर चले हम फिदा जनो तन साथियो अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो...बहारो फूल बरसाओ..ए वतन ए वतन ्चना जोर गरम' जैसे अलग अलग रंग वाले सदाबहार गानो को आज जब भी हम सुनते है, इस  आवाज की कशिश हमे खिंचती है.इन  अमर गीतो के गायक मोहम्मद रफी की आज पुण्य तिथि है. मोहम्मद रफी को दुनिया से अलविदा कहे आज 37  साल हो गये लेकिन  आज नये गायको के दौर मे उनकी आवाज अपनी अलग ही दिलकश पहचान बनाये हुए है,सबसे अनूठी...
मोहम्मद रफ़ी   24 दिसम्बर, 1924, अमृतसर में  जन्मे व्  31 जुलाई, 1980, मुंबई में उनका  देहांत  हुआ , वे  हिन्दी सिनेमा के महानतम  पार्श्व गायकों में से एक थे, जिन्होंने क़रीब 40 साल के फ़िल्मी गायन में 25 हज़ार से अधिक गाने गाये ।उनके गाये गीत आज अमर हो गये है.
'बस्ती बस्ती जंगल जंगल गाता जाये बंजारा जैसे उनके गाये  गीत से लगता है  कोई सूफी सन्त  महात्मा गा  रहा  है , या फिर बाबुल की दुआये लेता जा आज भी भारत मे कन्या के विवाह का  विदाई गीत बन गया, ऐसा लगता है कोई पिता अपनी बेटी को  विदा  कर  रहा  है , जब वे गाते है ये  दुनिया अगर मिल भी जाये तो   लगता  ्है कोई दार्शनिक  जिंदगी  का फलसफा  बता  रहा  है , ओ दूर के मुसाफिर जैसे गाने से लगता है   कोई गमगीन आशिक  गा  रहा है या फिर बहारो फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है  कभी  लगता  था कोई दिलफेंक  आशिक गा  रहा  है  और फिर चंपी तेल मालिश कभी  लगता था  कोई हंसी  मजाक  करने  वाला  शख्स  गा  रहा  है पर दरअसल  हर  गाने  के पीछे होती  थी वही जादुई  आवाज यानी सुरों  के जादूगर   मोहम्मद   रफ़ी की आवाज!लोग बाग़  तो यहाँ  तक  कहते हैं हिंदी  फ़िल्मी गाना  यानि  मोहम्मद   रफ़ी  का गाना !
गायक  के रूप में सुरों  को वो बहुत मानते  थे ,कहा जाता है कि बैजू बावरा फ़िल्म का गाना 'ऐ दुनिया के रखवाले' के लिए मोहम्मद रफ़ी ने 15 दिन तक रियाज़ किया था और रिकॉर्डिंग के बाद उनकी आवाज़ इस हद तक टूट गई थी कि कुछ लोगों ने कहना शुरू कर दिया था कि रफ़ी शायद कभी अपनी आवाज़ वापस नहीं पा सकेंगे.लेकिन रफ़ी ने लोगों को ग़लत साबित किया और भारत के सबसे लोकप्रिय पार्श्वगायक बने , इंसान  के रूप में  वो इंसानियत  और शराफत  को बहुत मानते थे ऐसे  थे मोहम्मद  रफ़ी  जो बहुत  से गायकों  और संगीत  के साधकों  के  लिए संगीत  की पाठशाला थे  और  आज भी हैं ! मोहम्मद रफ़ी और  सगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के बारे में एक दिलचस्प किस्सा बहुत मशहूर  है   जब लक्ष्मीकांत ने मुझे बताया कि जब व पहली बार रफ़ी के पास गाना रिकॉर्ड कराने के लिए गए जो उन्होंने उनसे कहा कि हम लोग नए हैं इसलिए हमें कोई प्रोड्यूसर बहुत ज़्यादा पैसे भी नहीं देगा. हमने आपके लिए एक गाना बनाया है. अगर आप इसे गा दें कम पैसों में तो बहुत मेहरबानी होगी."
"रफ़ी ने धुन सुनी. उन्हें बहुत पसंद आई और वह उसे गाने के लिए तैयार हो गए. रिकॉर्डिंग के बाद वह रफ़ी के पास थोड़े पैसे ले कर गए. रफ़ी ने पैसे यह कहते हुए वापस लौटा दिए कि यह पैसे तुम आपस में बांट लो और इसी तरह बांट कर खाते रहो. लक्ष्मीकांत कहा करते थे कि  उस दिन के बाद से उन्होंने रफ़ी की वह बात हमेशा याद रखी और हमेशा बांट कर खाया."आज उनकी पुण्य-तिथि पर  संगीत  प्रेमी  ही नहीं खुद संगीत और सुरों की  दुनिया  उन्हें  नम आँखों  से याद कर  रही  है!  

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