नई दिल्ली, 13 जुलाई, (शोभना जैन/वीएनआई) भारत की अध्यक्षता में आज से पूरी चमक चौदस और चाक चौकस सुरक्षा बंदोबस्त के साथ शुरू हुई जी-20 शिखर बै्ठक ऐसे चुनौती भरें दौर में हो रही हैं जब कि युक्रेन, जल वायु परिवर्तन, जैसे अनेक विवादास्पद मुद्दों को ले कर विश्व बिरादरी खानों में बंटी हैं, ऐसे में पहली बार भारत की अध्यक्षता में हो रहें शिखर सम्मेलन में उस की भूमिका क्या एक पुल की बन सकेगी, क्या दो ध्रुवों पर खड़ें परस्पर विरोधी विचार धारा वाले देशों के बीच विव्वादास्पफ मुद्दों पर कुछ सहमति का रास्ता बनेगा, क्या अफ्रीकी यूनियन को जी-20 का सदस्य बनायें जानें की भारत की पहल कोई ठोस नतीजा लायेगी. विवादास्पद मुद्दों पर इन असहमतियों के चलते क्या सदस्य देशों द्वारा सर्व सहमति से दिल्ली घोषणा पत्र जारी हो सकेगा, सम्मेलन को लेकर ऐसे कितने ही सवाल हवा में तैर रहे हैं. निश्चय ही् सम्मेलन की मेजबानी भारत के लियें सम्मान के साथ साथ ही सभी को साथ में ले कर वसुधैव कुटुंबकम की भावना से जिम्मेवारी निभानें की बड़ी चुनौती भी हैं, जिस पर दुनिया की नजरें लगी हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस टिप्पणी से सम्मेलन के प्रति भारत का सोच पता चलता हैं जिस में उन्होंने कहा हैं "जी-20 की विरासत से किसी को भी पीछे नहीं रहने दिया जायेगा" यानि रास्ता संकरा जरूर हैं लेकिन उम्मीद भी बनी हुई हैं।
दिसंबर में जी-20 की अध्यक्षता संभालने के बाद भारत ने कहा था कि वह उन मुद्दों को सम्मेलन के एजेंडे में रखना चाहता है जो विकासशील देशों को प्रभावित करते हैं, ग्लोबल साउथ को स्वर देते ॉ जैसे जलवायु परिवर्तन, विकासशील देशों पर बढ़ता कर्ज का बोझ, डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन, बढ़ती महंगाई और खाद्य-ऊर्जा सुरक्षा. वैश्विक आर्थिक सहयोग का एक प्रमुख फोरम बन चुके जी-20 दर असल जी-7 विकसित सदस्य देशों का विस्तारित रूप है. अब इस में भारत जी-20 के अध्यक्ष के नाते अफ्रीकी यूनियन को शामिल करवाने का प्रयास कर रहा हैं ताकि विश्व बिरादरी में उन के स्वर को सुना जा सकेगा. अब तक सदस्य देशों व अन्य संगठनों के प्रमुख के साथ ही ग्रुप के रूप में यूरोपीय यूनियन ही शामिल हैं।
दरअसल, सम्मेलन ऐसे वक्त हो रहा हैं जब 'ग्लोबल साउथ' अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में ख़ुद को एक प्रमुख हिस्सेदार के रूप में स्थापित करने में कामयाब रहा है. भारत ने जी-20 की अध्यक्षता के दौरान ही गत दिनों ग्लोबल साउथ की बैठक की भी मेजबानी की थी. जैसा कि कहा जा रहा हैं कि पश्चिमी देशों को भी अब यह मानना पड़ा हैं कि उनका विशिष्ट क्लब अकेले पूरी दुनिया की समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता है और इस दौर में दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने की वजह से भारत यह भी महसूस करता है कि उसके पास इसे हासिल करने की क्षमता और साधन, दोनों है.सम्मेलन से जुड़ें एक वरिष्ठ शेरपा के अनुसार भारत की मेजबानी में जी-20 में समावेशी, सतत विकास के साथ ही डिजिटल आधारभूत सुविधाओं के चहुंमुखी विस्तार, महिला नीत विकास पर प्रमुखता से ध्यान दिया जा रहा हैं।
सम्मेलन के सदस्य देशों की मेजबानी बारी बारी से मिलती हैं, भारत को इस क्रम मे इस बार सम्मेलन की मेजबानी मिली है, लेकिन इस सम्मेलन के चप्पे चप्पे पर भारत का रंग छाया हुआ हैं. देश के 50 से अधिक शहरों में जी-20 शिखर सम्मेलन से पहले क़रीब 200 बैठकों का आयोजन हुआ. इनमें योग, हस्त शिल्प, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अलावा ख़ास तौर पर तैयार भारत के क्षेत्रीय लजीज व्यंजन शामिल रहें. इस बार के सम्मेलन में एक तरफ जहा रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग हिस्सा नहीं ले रहे हैं, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन इंग्लैंड, फ्रांस. जापान और अन्य यूरोपीय देशों के 19 शासनाध्यक्ष/ राष्ट्राध्यक्ष इस सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी का बाइडन, इंग्लैंड के भारतवंशी प्रधान मंत्री ऋषि सुनक, फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना सहित कुल 15 शिखर नेताओं के साथ द्विपक्षीय बातचीत होने का कार्यक्रम है जिस दौरान अनेक क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ाने की दिशा में अहम ठोस फैसलें लियें जानें की उम्मीद हैं. इस मायनें में बाइडन की भारत यात्रा खासी अहम मानी जा रही हैं.
बहरहाल दो दिवसीय सम्मेलन आज ही शुरू हुआ है, इस के समापन पर सर्व सहमति से दिल्ली घोषणा पत्र जारी कियें जाने की उम्मीद हैं जिसपर, अमरीका,और योरोपीय यूनियन देश और रूस, चीन युक्रेन युद्ध और जल वायु परिवर्तन को ले कर को ले कर आमनें सामनें हैं ऐसे में जी- 20 के सदस्य देश चीन और रूस सहित कुछ और देशों द्वारा व्यक्त की गईअसहमतियों को दूर करने के प्रयास कियें जा रहे हैं.भारत का अध्यक्ष के नाते पूरा प्र्यास हैं कि सारा ध्यान यूक्रेन जैसे "विभाजनकारी" मुद्दों पर सहमति कायम करने के साथ ही सहमती वाले मुद्दों पर भी बात हो और आपसी सहयोग विशेष तौर पर आर्थिक सहयोग बढाया जायें और प्रचुर प्राकृतिक संसाधनो केबावजूद गरीबी और संसाधनों के अभाव झेल रहें अफ्रीकी देशों को साथ लाया जायें और उन्हें सतत विकास की प्रक्रिया से जोड़ा जायें.
लेकिन विकसित और विकासशील देशों के बीच पुल बनने की कोशिश करना भारत के लिए आसान नहीं होगा, जहा भू-राजनीतिक रूप से नाजुक स्थिति है और खास तौर पर जब कि चीन भारत की सीमा पर लगातार तनाव पैदा कर रहा हैं, ऐसे में भारत के अध्यक्ष के नाते विशेष प्रयास हैं कि सभी सदस्य देशों के साथ मिल कर सम्मेलन के समापन पर सर्व सहमति से दिल्ली घोषणा पत्र जारी हो सके. समाप्त।
No comments found. Be a first comment here!