नई दिल्ली, 18 सितम्बर, (शोभना जैन/वीएनआई) माल्दीव के राष्ट्र्पति अब्दुल्ला यामीन देश में राजनैतिक अस्थिरता और लोकतांत्रिक संस्थाओं के दमन चक्र के बीच आगामी राष्ट्रपति चुनाव में गडबड़ी होने की विपक्ष के तमाम आरोपो और आशंकाओं और अंतरराष्ट्रीय जगत की चिंताओं को दरकिनार कर देश मे अगले पखवाड़े यानि आगामी 23 सितंबर को चुनाव कराने पर आमादा हैं.
इस चुनाव में विपक्षी गठबंधन तथा मालदीव डेमोक्रैटिक पार्टी के ्विपक्ष के साझा उम्मीदवार इब्राहीम मोहम्मद सोलिह ने आशंका व्यक्त की है क़ी सरकार इन चुनावों मे गड़बड़ी करवायेगी, उन्होंने कहा कि विपक्ष इस हालात को ले कर बहुत चिंतित हैं. गौरतलब हैं कि भारत, अमरीका, संयुक्त राष्ट्र सहित विश्व समुदाय माल्दीव की संसद, न्यायपालिका जैसी लोकतांत्रिक संस्थाओं को स्वतंत्र तथा निषपक्ष तरीके से काम करने का अवसर दिये बिना देश मे चुनावों के एलान पर चिंता जता चुका है.इन सभी का कहना है कि पहले देश में राजनैतिक स्थिरता लाई जाये, चुनावो के लिये अनुकूल माहौल बनाने के लिये संसद तथा न्यायपालिका सहित लोकतांत्रिक संस्थाओ की बहाली हो और फिर चुनाव हो. भारत ने कहा कि वह चाहता हैं कि चुनावों से पहले वहा राजनैतिक प्रक्रिया की बहाली हो तथा विधि सम्मत शासन की स्थापना हो,भारत ने माल्दीव से कहा भी है कि वह चुनावों से पहले वहा लोकतंत्र की बहाली करे क्योंकि स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव के लिये अनुकूल माहौल का होना आवश्यक है.
इसी तरह संयुक्त राष्ट्र ने भी वहां स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव कराये जाने की बात कही है.मालदीव मे जारी राजनीतिक अस्थिरता का हिंदमहासागर क्षेत्र और भारत पर भी प्रभाव पड़ता है,्पड़ोस मे लोकतांत्रिक व्यवस्था का होना क्षेत्र की शांति, सुरक्षा और ्शाति के लिये के लिये अहम है, और वैसे भी पड़ोसी माल्दीव सामरिक दृष्टिकोण से भारत के लिए खासा महत्पूर्ण है,इसी नाते भारत की भी इन चुनावो पर नजर है. दूसरी तरफ माल्दीव को अपना प्रभाव क्षेत्र बनाने वाले चीन की इन चुनावो पर खास नजर है और वह चाहता है किसी भी तरह यामिन गद्दी से नही हटे. और ्यामिन ने पिछले कुछ समय से माल्दीव के पुराने मित्र रहे भारत की उपेक्षा कर जिस तरह से चीन की पैठ अपने देश मे बनवाई है वह इस बात का सबूत है. यामिन न/न केवल भारत विरोधी बल्कि चीन के घोर समर्थक माने जाते है
बहरहाल इन तमाम हालात के बीच या यूं कहे लोकतंत्र की धज्जियॉ उड़ा कर यामीन चुनाव करा रहे हैं. दरअसल भारत माल्दीव को ले कर इस बार काफी संभल कर कदम उठा रहा है,भारतीय जनता पार्टी ्के सांसद सुब्रह्मणयम स्वामी ने हाल ही मे जब श्रीलंका मे शरण लेने वाले माल्दीव के पूर्व राष्ट्रपति नशीद से कोलंबो मे मुलाकात के बाद कहा कि माल्दीव चुनाव मे गड़बड़ी होने पर भारत उस पर हमला कर दे क्योंकि माल्दीव उस का पड़ोसी है और एक पड़ोसी के नाते ्भारत ऐसा होने नही दे सकता है. इस बयान के फौरन बाद भारत सरकार ने श्री स्वामी के बयान से अपने को अलग करते हुए था कि ये बयान उन का निजी बयान है,सरकार की यह राय नही है.
इस समय भारत के लिये वो स्थतियॉ नही है जब कि 3 नवंबर 1988 को भारत की लोकतांत्रिक छवि वाले पड़ोसी की छवि की ही वजह से ही तत्कालीन राष्ट्रपति गयूम ने भारत सरकार से अपनी लोकतांत्रिक सरकार बचाने के लिये मदद मॉगी और निर्वाचित गयूम सरकार का तख्ता पलट को बचाने के लिये तत्कालीन राजीव गॉ्धी ्सरकार ने 'ऑपरेशन केक्टस' के जरिये अपने 1700 सैनिक वहा भेजे थे. भारत ने इस बार स्थिति पर सतर्क नजर रखने के साथ ही भारत ने माल्दीव के विपक्ष द्वारा सीधे दखल की अपील के बावजूद सीधे दखल की तमाम संभावनाओ को सिरे से खारिज कर दिया.
गौरतलब है कि ्भारत समर्थक रहे पूर्व राष्ट्रपति नशीद को 13 साल की कैद की सजा सुनाई गई है जिससे वह चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो गए हैं.इसी के बाद श्री सोलिह को विपक्ष का साझा उम्मीदवार ्घोषित किया. इसी राजनैतिक अस्थिरता के चलते मालदीव के राष्ट्रपति यामीन अब्दुल गैयूम वस्तुत: हेरा फेरी कर चुनाव जीतने की तैयारी कर रहे थे.
दरअसल कभी भारत का अभिन्न मित्र रहा माल्दीव पिछले कुछ वर्षो से भारत के लगातार खिलाफ काम कर रहा है.भारत के लिये "नेबरहुड फर्स्ट' का जाप करने वाला माल्दीव भारत की तरफ से दी जाने वाली विकास परियोजनाओं से वह हाथ खींच रहा है, सहयोग, समझौतों को नकार रहा है, बढती दूरियों के बीच,वह चीन की तरफ तो तेजी से बढ ही रहा है,और अब पाकिस्तान से नजदीकियॉ बढा रहा है जो निश्चय ही हिंद महासागर क्षेत्र मे भारत की अहम भूमिका के लिये चिंता के संकेत है. पिछले दिनो ही पाक सेनाध्यक्ष जनरल कमर बाजवा भी माल्दीव दौरे पर गये. जनरल बाजवा ने इस दौरे में इकोनोमिक आर्थिक जोन मे दोनो देशो के बीच संयुक्त गश्त के फैसले का भी एलान किया. एलान से जाहिर है कि चीन ,माल्दीव और पाकिस्तान के बीच मिलीभगत ्बढ रही है और इस मिलीभगत के मायने भारतीय समुद्री सीमा से सटे क्षेत्र मे भारत की मजबूत पकड पर असर पड़ने का अंदेशा स्वाभाविक है.यह बात इस लिये भी चिंताजनक है कि माल्दीव गत मार्च मे भारत का 16 देशो के साथ होने वाला संयुक्त संयुक्त सैन्याभ्यास 'मिलन' मे शामिल होने से इंकार चुका है.
चीन माल्दीव सहित सेशल्स, नेपाल जैसे क्षेत्र के देशो मे मदद और कर्ज के नाम पर अपना जाल बिछा रहा है. माल्दीव मे भी उस ने वहा आधारभूत ढॉचा विकसित करने के लिये बड़े ढेके हासिल किये.माल्दीव की बाहरी मदद का 70 फीसदी हिस्सा अकेले चीन देता है चीन पहले से ही अपना सैन्य बेस मालदीव में बनाने की जुगाड मे है.चीन के माल्दीव से गहरे ्सामरिक हित जुड़े है और अपने विस्तारवादी मंसूबे के लिये चीन माल्दीव का जम कर इस्तेमाल कर रहा है. इसी लिये उस का जोड तोड़ यही है कि किसी तरह यामीन गद्दी पर ही बने रहे. साभार - लोकमत (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है)
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