नई दिल्ली, 07 सितम्बर, (शोभना जैन/वीएनआई) पाकिस्तान मे गत 25 जुलाई को हुए आम चुनाव...जीत के बाद क्रिकेटर से राजनीतिज्ञ बने इमरान खान ने पूरे जोश के आलम में अपने समर्थको को "नये पाकिस्तान' का सपना दिखाते हुए अजगर की तरह से मुंह बाये खड़े ज्वलंत घरेलू मसलो को हल करने का हसीन ख्वाब दिखाया और कश्मीर का भावनात्मक कार्ड भी उछाला लेकिन इस के साथ ही अपने आस पड़ोस का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि पाकिस्तान पड़ोसी भारत के साथ अपने संबंधों को सुधारने के लिए तैयार है और उनकी सरकार चाहती है कि दोनों पक्षों के नेता बातचीत के जरिए कश्मीर के “मुख्य मुद्दे” समेत सभी विवादों को सुलझाए.” उन्होंने कहा “अगर वह हमारी तरफ एक कदम उठाते हैं, तो हम दो कदम उठाएंगे लेकिन हमें कम से कम एक शुरुआत की जरूरत है."
तो फिर वही सवाल उठता है कि गत सत्तर वर्षो मे दोनो देशो के बीच युद्ध हुए, समझौते हुए, बेक चेनल डिप्लोमेसी के जरिये संबंध पटरी पर लाने के प्रयास हुए,जटिल मुद्दो के हल करने के लिये समग्र वार्ताओं के दौर हुए, लेकिन भारत द्वारा एक कदम बढाने के बाद पाकिस्तान द्वारा भले ही दो कदम न/न सही, एक ही कदम अगर भरोसे से उठा लेता तो भारत पाकिस्तान के रिश्तों की ईबारत कुछ और ही होती.बल्कि हुआ यह कि पाकिस्तान ने कुछ दशको से सीमा पार आतंकी गतिविधियॉ और तेजी से चलानी शुरू कर दी. भारत तो हमेशा ही पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने की पहल करता रहा है, कितनी ही बार वह पहला कदम उठा चुका है लेकिन लेकिन अभी तक का अनुभव न/न केवल दूसरे कदम के अनवरत इंतजार का रहा है बल्कि उस से पहले ऐसा कोई दुष्कृत्य/आतंकी कार्यवाही पाकिस्तान की तरफ से हुई कि भारत की तमाम सकरात्मक पह्ल धूल के गुबार में उड़ गई ऐसे मे निश्चय ही सत्ता पर आते ही इमरान खान का यह बयान महज क्या बयान बाजी है और आखिरकार भारत पाक रिश्तों की परिणति फिर वही ढाक के तीन पात वाली होगी या इस बार रिश्ते कुछ सुधरेंगे.
दरअसल यहा यह बात भी खास मायने रखती हैं कि इमरान खान द्वारा संबंध सामान्य बनाने की जिम्मेवारी भारत पर डाल देना मे निश्चय ही अंतर राष्ट्रीय दुनिया के लिये दिखावा भर है. आखिर वह भारत से किस तरह का पहला कदम चाहता है.पाकिस्तान की ्पैतरेबाजी इस बात से भी बखूबी समझी जा सकते हैं कि कि पाकिस्तान द्वारा पीएम मोदी ने इमरान खान को लिखी चिट्ठी में कहा है कि हम पड़ोसी के साथ अच्छे संबंधों के पक्षधर हैं. हमें दोनों देशों के बीच सृजनात्मक तथा सार्थक संबंधों की दिशा में देखना चाहिए तो पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने पाकिस्तान की फिर वही पुरानी चाल चली और कह दिया कि भारत ने बातचीत की पेशकश की है. हालांकि पीएम मोदी की ओर से लिखी चिट्ठी में दोनों देशों के बीच बातचीत का प्रस्ताव नहीं है.्भारत की अपत्ति के बाद आखिरकार पाकिस्तान ने कहा कि बातचीत के बारे मे भारत की तरफ से ऐसा कुछ नही कहा. .बहरहाल इमरान साहिब एक मजबूत बहुमत से सरकार बना कर नही आये है उन की सरकार का भविष्य पाकिस्तानी सेना और पाक गुप्तचर एजेंसी आई एस आई की बैसाखियों के भरोसे टिका हैं ऐसे हालात मे अनुभव तो यही बताता है कि निश्चय ही पाकिस्तानी सेना की भारत विरोधी नीति ही अपनाई जायेगी और वे आतंकी गतिविधियो को प्रश्र्य देना जारी रखेंगे ताकि भारत को संबंध सामान्य बनाने की पहल के जरिये राजनयिक सफलता नही मिल पाये.
इमरान साहिब तो यहा पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंधो की पैरोकारी कर रहे है लेकिन सवाल है कि चार वर्ष बीत जाने के बाद भारत की तमाम सकारात्मक पहल के बाद पाकिस्तान के साथ रिश्तों का गणित ३६ का ही रहा .भारत की तमाम शांति पहल के बावजूद पाकिस्तान के प्रश्रय से कश्मीर मे बिगड़ते हालात, सीमा पार से आतंकी गतिविधियॉ न/न केवल जारी रखने बल्कि बढने, जिहाद , लगातार संघर्ष विराम का उल्लंघन कर रहा है कश्मीर में आतंकवाद को प्रश्रय देना जारी रखे हुए है, हाफिज सईद जैसे आतंकी को लगातार पाक प्रश्रय दे रहा है यह सब बिगड़ते रिश्तों की कहानी हैं और हैरानी है कि इस मे इमरान पहला कदम चलने का न्यौता भारत को दे रहे है.
बहरहाल पाकिस्तान की राजनीति मे अब एक नये दौर की शुरूआत हो रही है.इमरान खान के प्रधान मंत्री बनने के बाद इस सप्ताह भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता पर द्विपक्षीय वार्ता हुई. दोनो देशो के बीच चल रहे जल विवाद के चलते यह बैठक अहम रही पाकिस्तान में इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने के बाद दोनों देशों के बीच यह पहली आधिकारिक द्विपक्षीय बातचीत रही. अगले महीने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के न्यूयॉर्क मे संयुक्त राष्ट्र महासभा के विशेष अधिवेशन मे पकिस््तान के विदेश मंत्री महमूद कुरैशी से मुलाकात की उम्मीद है जिस से नयी सरकार के साथ आपसी भरोसा बनाने मे मदद मिलेगी.एक वरिष्ठ राजनयिक के अनुसार पाकिस्तान की अभी तक की नकारात्मक हरकतो के बावजूद सच यही है कि डिप्लोमेसी असंभंव को संभंव बनाने का आर्ट है, ऐसे मे पाकिस्तान में इमरान खान सरकार के गठन के बाद हालांकि आशावादी रवैय्या अपनाते हुए दोनों देशों के बीचईक नई शुरूआत करते हुए अच्छे संबंधों की उम्मीद की जानी चाहिये लेकिन इस के विपरीत पाकिस्तानी मामलों के जानकार एक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक के अनुसार जिस तरह से इम्रन खान सरकार पाक सेना की बैशाखियो पर चलेगी उस से तो द्विपक्षीय संबंधो के और तनावपूर्ण होने का अंदेशा जताया. संबंधो को पटरी पर लाने के लिये इमरान खान अगर वाकई नेक नीयत है तो सब से पहले उन्हे सीमा पार से आतंकी गतिविधियो को रोकना होगा, हाफिज सईद जैसी जुहादियों गुटों पर लगाम लगानी होगी अगर वह वाकाई भारत से संबंध सुधारना चाहता ह लेकिन िमरान खान के अतिवादी धार्मिक गुटो और जिहादी गुटोंजो हालात है क्या उस मे ऐसा हो पायेगा.
बहरहाल इमरान खान को अभी घरेलू मोर्चे के साथ अमरेका के साथ संबंध कैसे हो यह एक बड़ी चुनौती है.भारत हालांकि पाकिस्तान से बार बार कहता रहा है कि तोपों की गड़गड़ाहट और बंदूको की गोलियो मे वार्ता कतई संभव नही है लेकिन पाकिस्तान के साथ फिलहाल समग्र वार्ता तो फिलहाल संभव नही लगती है क्योंकि भारत भी अब आम चुनाव के मॉड मे आ गया है . ऐसे में समग्र वार्ता फिलहाल भले ही नही हो अलबत्ता पाकिस्तान सीमा पार से आतंकी गतिविधियॉ , जिहादी गतिविधियों पर अंकुश लगा कर , संघर्ष विराम का सम्मान कर कश्मीर में आतंकवाद को प्रश्रय नही दे कर और हाफिज सईद जैसे आतंकी के खिलाफ कड़ी कार्यवाही कर दोनो देशो के बीच रिश्तों का बेहतर माहौल तो ही बना सकता है. ऐसे मे विचाराधीन मुद्दो पर बातचीत और व्यापार वार्ताये हो सकेगी और दोनो देशों के बीच निश्चय ही फासले कम होंगे. साभार - राजस्थान पत्रिका (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है)
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