नयी दिल्ली ३० अगस्त ( शोभना, अनुपमा जैन,वीएनआई ) एक विद्वान ,चिंतक तपस्वी साधु ऐसे भी है जो पिछले चालीस बरसो से घोर तप मे रत है और समाज को कोई चमत्कारिक मंत्र नही अपितु दुखी के आँसू पोछने, सामाजिक सौहार्द, प्राणी मात्र का कल्य़ाण अपरिग्रह व स्त्री शिक्षा देने की \"मंत्र दीक्षा\" दे रहे है.घोर तपस्वी संत, आचार्य विद्यासागर जिन्होने पिछले 43 वर्षो से मीठे तथा नमक का त्याग कर रखा है बमुश्किल तीन घंटे की नींद लेते है और इसी तप साधना से अपनी इंद्रिय शक्ति को नियंत्रित कर केवल एक करवट सोते है, मल मूत्र विसर्जन भी अपने नियम के निर्धारित समयानुसार ही करते है.
शृद्धालुओं के के अनुसार दिगम्बर जैन पंरपरा के संत आचार्य विद्यासागर मुनिजनो की त्याग पंरपरा का विलक्षण व आदर्श उदाहरण है आचार्य श्री ने पिछले 43 बरसो से मीठे व नमक, पिछले 38 वर्ष से रस, फल का त्याग किया हुआ है, उन्होने 19 वर्ष से रात्रि विश्राम के समय चटाई तक का भी त्याग किया हुआ है, 22 वर्ष से सब्जियों व दिन में सोने का भी त्याग कर रखा है। 26 वर्ष से मिर्च मसालों का त्याग किए हुए है। आहार में सिर्फ दाल, रोटी, दलिया, चावल, जल, दूध ही लेते है और जैन आगम की पंरपरा का पालन करते हुए दिन में केवल एक बार कठोर नियमो का पालन खड़्गासन मुद्रा में हाथ की अंजुलि में भोजन लेते हैं भोजन में किसी भी प्रकार के सूखे फ़ल और मेवा और किसी प्रकार के व्यंजनों का सेवन भी नहीं करते। दिगम्बर जैन पंरपरा के अनुरूप परम तपस्वी विद्यासागरजी वाहन का उपयोग नही करते हैं, न शरीर पर कुछ धारण करते हैं। पूर्णतः दिगम्बर नग्न अवस्था में रहते हैं भीषण सर्दियो व बर्फ से ढके इलाको मे भी दिगम्बर जैन पंरपरा के अनुरूप जैन साधु नग्न ही रहते है और सोने के लिये लकडी का तख्त ही इस्तेमाल करते है, पैदल ही विहार करते हुए देश भर मे हज़ारो किलोमीटेर की यात्रा कर चुके हैं, वाहन दिगम्बर जैन पंरपरा के साधुओ साध्वियो लिये वर्जित है। देश विदेश से आम और खास सभी इस तपस्वी से सेवा, अर्जन केवल जरूरत के लिये, अपरिग्रह . जीव मात्र से दया चाहे वह वनस्पति हो या जीव, स्त्री शिक्षा ,अंहकार त्यागने, निस्वार्थ भावना से कमजोर की सेवा करने जैसी सामान्य सीख की \'मंत्र दीक्षा \'लेने आते है. ऐसे ही एक शृद्धालु के अनुसार \' शायद इस तपस्वी संत की विशेषता यही है कि उनके पास शृद्धालु उनके घोर तप से प्रभावित हो कर किसी चमत्कारिक मंत्र के लिये नही बल्कि इन सीधे सादे मंंत्रो को पाने आते है \'आचार्य श्री विद्यासागर जी एक महान संत के साथ साथ एक कुशल कवि वक्ता एवं विचारक भी हैं , कव्य रूचि और साहित्यनुराग उन्हे विरासत मे मिला है. कन्नड भाषी, गहन चिंतक यह संत प्रकांड विद्वान है जो प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत, हिंदी, मराठी, बंगला और अंग्रेज़ी में निरंतर लेखन कर रहे है। उनकी चर्चित कालजयी कृति ‘मूकमाटी’ महाकाव्य है। यह रूपक कथा काव्य अध्यात्म दर्शन व युग चे्तना का अद्भुत मिश्रण है दरअसल यह कृति शोषितो की उत्त्थान की प्रतीक है, किस तरह पैरों से कुचली जाने वाली माटी की मंदिर का शिखर बन जाती है अगर उसे तराशा जाये. देश के 300 से अधिक साहित्यिकारों की लेखनी मूक माटी को रेखांकित कर चुकी है, लगभग 300 से अधिक साधु साध्वियो के आचार्य जी के संघ मे एम टेक, एम सी ए व उच्च शिक्षा प्राप्त साधु है जो संसार को त्याग कर अपनी खोज और आत्म कल्याण की साधना मे रत है, ये सभी अपने इस जीवन को जीवन की पूर्णता मानते है. 22 वर्ष की आयु मे अपने गुरू आचार्य ज्ञानसागरजी से दीक्षा लेने वाले इस संत के जीवन की एक अप्रतिम घटना यह है कि उनके गुरू ने अपने जीवनकाल में आचार्य पद का अपने इस शिष्य को सौप कर अपने इस शिष्य से ही समाधिमरण सल्लेखना(जैन धर्मानुसार स्वेछामृत्युवरण) ली.
आचार्यश्री की प्रेरणा से उनसे प्रभावित शृद्धालु समाज कल्याण के अनेक कार्यक्रम चला रहे है, जिनमे स्त्री शिक्षा, पशु कल्याण, पर्यावरण रक्षा,अस्पताल, जैसे कितने ही कार्यक्रम है,खास यह तपस्वी संत वर्षा योग चातुर्मास के लिये तौर पर नैतिक मूल्यो पर आधारित बच्चियो की शिक्षा के लिये प्रतिभा स्थली एक अनूठा प्रयोग माना जाता है. मध्यप्रदेश के जबलपुर स्थित इस संंस्थान की सफलता के बाद इसकी एक शाखा अब प्रदेश के ड़ूंगरपुर मे भी खोली गयी है.यह तपस्वी संत वर्षा योग चातुर्मास के लिये फिलहाल मध्यप्रदेश के विदिशा मे ससंघ विराजमान है जहा देश विदेश से बडी तादाद मे शृद्धालु उनके दर्शन तथा प्रवचन के लिये आर हे हैौर आम खास सभी मंत्र दीक्षित हो लौट्ते है.