शोभना जैन
इस सप्ताह फ्रांस के नव निर्वाचित राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने दूसरी बार चुनाव जीतनें की अपनी एतिहासिक विजय के फौरन बाद ही घरेलू मोर्चें की तमाम चुनौतियों के बीच राजधानी पेरिस की मशहूर एफिल टॉवर के नीचें खड़ें हो कर देश के मतदाताओं को भरोसा दिलाया कि वे वादा करतें हैं कि वे सभी के राष्ट्रपति होंगें. निश्चय ही मैक्रों मान रहें होंगें चुनाव तो वे जीत गयें हैं लेकिन उन की विजय के साथ बड़ी चुनौतियों है, जिन से उन्हें, उन की सरकार को निबटना हैं.अपनी दक्षिण पंथी प्रतिद्वंद्वी मरीन ली पेन को चुनाव में हराकर पिछलें बीस वर्षों में पहली बार दोबारा राष्ट्रपति निर्वाचित हुयें मैक्रों की जीत कई मायनों मे बेहद अहम हैंं. फ्रांस के द्विचरण वाली राष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया के शुरूआती दौर में हालांकि मैक्रों की जीत को ले कर कुछ अनिश्चितता, असंमजस की सी स्थति जरूर थी लेकिन बाद के दौर में उन्होंनें मरीन को मिलें 41.45 फ़ीसदी वोट के मुकाबलें 58.55 फ़ीसदी वोट हासिल कर आसान विजय दर्ज कर ली. दरसल मैक्रों की विजय घरेलू मोर्चें,यूरोपीय एक जुटता, अंतर राष्ट्रीय जगत के साथ साथ भारत के लिये भी अहम संदेश हैं. घरेलू मोर्चे की बात करें तो फ्रांस इस वक्त ध्रुवीकरण से जूझ रहा हैं, 2015 के आतंकी हमलें के बाद से फ्रांस की राजनीति में दक्षिणपंथी झुकाव नजर आ रहा हैं, हालाँकि कोविड के बाद उन की सरकार ने आर्थिक विकास दर तेजी से बहाल भी की, बेरोजगारी भी कम हुई हैं, लेकिन विशेष तौर पर काम काजी वर्ग और युवाओं मे बढता जन अंसतोष, ध्रुवीकरण जैसे मुद्दें जो बहुत कुछ यूक्रेन युद्ध से पहले प्रमुखता से चुनावी मुद्दें बन रहे थे, उन की जगह धीरें धीरें मैक्रों की नीतियों या या यूं कहें उन के चुनावी मुद्दों को मतदाताओं ने प्रमुखता दी.नाटों के प्रमुख योरोपीय देश फ्रांस के राष्ट्रपति के नातें मैक्रों की जीत अमरीका योरोप के लियें एक बड़ी राहत की खबर हैं. युक्रे्न युद्ध में उलझें योरोप की राजनीति के इन समीकरणों को इस बात से समझा जा सकता हैं कि इस चुनाव से पहलें पुर्तगाल और स्पेन के प्रधान मंत्री के साथ जर्मनी के चांसलर ने फ्रांस के एक प्रमुख राष्ट्रीय दैनिक ले मोंद में एक लेख के जरियें फ्रांसिसी मतदाताओं से मेरिन को हरानें का आह्वान किया.जाहिर हैं कि योरोपीय एकता के लियें योरोप मेक्रों की जीत को बेहद अहम मान रहा था।
गौरतलब हैं कि फ्रांस में अब तक 1988 में फ्रांस्वा मितरां और 2002 में ज्यॉ शिरॉक ही दूसरी बार देश के राष्ट्रपति चुने जा सके। जाहिर हैं मैक्रों की राष्ट्रपति पद के लियें यह दूसरी जीत हर जीत की ही तरह ही बड़ी जिम्मेवारियों की एक बड़ी सूची भी साथ में लाई है।
और बात भारत की करें तो भारत के लियें भी मैक्रों की जीत एक अच्छी खबर हैं,दोनों देशों के बीच प्रगाढ आर्थिक सामरिक रिश्तें हैं. वर्ष 1998 से दोनों देशों के बीच शुरू हुई सुदृढ़ सामरिक साझीदारी और व्यापक रूप ले चुकी हैं, जिस के तहत रक्षा, परमाणु उर्जा, अंतरिक्ष, उर्जा, अक्षय उर्जा, साईबर सुरक्षा, पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में उभयपक्षीय सहयोग के साथ ही दोनों देश आतंक निरोधी अभियानों में भी आपसी सहयोग से काम कर रहे हैं. फ़्रांस भारत के लिए अत्याधुनिक सैन्य सामग्री का विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता रहा है. पिछलें वर्षों मे ही भारत ने फ़्रांस से 36 रफ़ाल लड़ाकू विमान खरीदे हैं.दोनों देशों के बीच हुए रक्षा क़रार के तहत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के तहत भारत में छह P-75 स्कॉर्पीन पनडुब्बियां बनाने की परियोजना पर भी काम चल रहा है. खबरों के अनुसार इनमें से चार पनडुब्बियां भारतीय नौसेना को सौंपी जा चुकी हैं और बाकी दो इस साल बन कर तैयार हो जाएंगी. एक विशेषज्ञ के अनुसार फ़्रांस का प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के मामले में रुख़ यूरोपीय देशों या अमेरिका के मुक़ाबले बहुत खुला है.हिंद प्रशांत क्षेत्र में भी फ्रांस भारत का अहम रणनीति साझीदार हैं. प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी का अगले माह के प्रथम सप्ताह में जर्मनी और डेनमार्क की उभयपकीय यात्रा के बाद फ्रांस का भी संक्षिप्त दौरा करने का कार्यक्रम ्हैं, जिस दौरान उन की मैक्रों से भी मुलाकात होगी. उम्मीद हैं कि इस से भारत-फ़्रांस रणनीतिक साझेदारी और आर्थिक रिश्तों को और गति मिलेगी
दरसल मैक्रों की जीत के बाद की डगर चुनौतियों भरी हैं. पिछलें कार्यकाल के बड़े वक्फें में फ्रांस का काम काजी वर्ग, विशेष तौर पर युवा उन से विमुख से हुये हैं. महंगाई जैसे मुद्दों पर काम काजी वर्ग के 2018-19 में भड़्कें "पीली जर्सी" जन असंतोष से उन के निबटनें के रवैयें को उन के विरोधियों ने उन्हें अमीरों के पक्ष में खड़ा कर दिया . ्लेकिन इस सब के बावजूद कोविड से निबटते हुयें फ्रांस ने जिस तेजी से आर्थिक विकास दर बहाल की , फ्रांस में फिलहाल बेरोजहरी दर पिछलें कुछ सालों मे सब से कम दर्ज की गई. तमाम आर्थिक दबावों के बावजूद मैक्रों सरकार ने पिछले दिनों योरोपीय देशों के साथ एकजुटता जताते हुयें मॉस्कों पर प्र्तिबंध लगा कर उसे मंहगी उर्जा कीमतों का बोझ भी झेला, उस से कहा जा सकता हैं कि अपनी सरकार की आर्थिक नीतियों को सफलता से लागू कर के वे इस मोर्चें पर जनता को भरोसें में ले सकें. इस के साथ ही फ्रांस के लोकतांत्रिक मूल्यों को अक्षुक्ष्ण बनाएं रखने की उन की अपील और योरोपीय संप्रभुता को निर्बाध समर्थन देने की उन की नीति भी मतदाताओं को पसंद आई लगती हैं. मैक्रों नाटों देशों के एक प्रमुख नेता के रूप में उभरे है।
बहरहाल मैक्रों को देश में ध्रुवीकरण की बहुत बड़ी चुनौती से निबट्नें के साथ ऐसे कदम उठाना हैं जिस से युवाओं मे असंतोष कम हो सकें . जन साधारण सरकार से जुड़ें, इस के साथ ही उन के दल को अपनी राजनैतिक विचारधारा को प्रासंगिक बनायें रखनें की लड़ाई भी झेलनी हैं. फ्रांस का राजनैतिक दृश्य धीरें बदल रहा हैं.दक्षिण पंथी मरीन भले ही इस बार चुनाव हार गई हों लेकिन राजनैतिक दृष्टि से वह ताकतवर होती जा रही हैं. मैक्रों को मिले मतों का प्रतिशत 2017 के मुकाबलें 66% से घट कर 58.5% हो गया हैं, वहीं मरीन ने अपना वोट प्रतिशत पिछली बार के 34% से बढाया हैं और41.5 % हो गया हैं. राष्टपति चुनाव जीतने के बाद अब इन तमाम चुनैतियों के साथ आगामी जून में होने वाले असेंबली के चुनाव मैक्रों के लियें एक और बड़ी अगली चुनौती होगी.अगर इन चुनावों में वामपंथी विचार धारा वालें ज्यॉ मेलेशॉ जीत जाते हैं, और वे प्रधान मंत्री बनते हैं तो मैक्रों की के मध्यमार्गी ओर ज्यॉ के वामपंथी विचार धारा से ध्रुवीकरण और बढने की आशंका व्यक्त की जा रही है। ज्यों राष्ट्रपति चुनावों मे उम्मीदवार थे जिन्हें 21.9% मत मिले थे. जैसा कि एक विशेषज्ञ का मत हैं कि युक्रेन संकट और चीन का तेजी से बढतें प्रभुत्व के खतरें से निबटनें के लियें क्षेत्र की उदारवादी लोक तांत्रिक व्यवस्थाओं को समन्वित प्रयास करने होंगे.
चुनावों के बाद बाद अपने संबोधन में इमैनुएल मैक्रों ने माना था कि मतदाताओं के कुछ वर्गों में उन की सरकार को ले कर नाराजगी हैं, लेकिन वे वादा करते हैं कि वे उन की नाराजगी दूर करेंगें. उम्मीद की जानी चाहियें कि अपने इस दूसरें कार्यकाल में वे सभी को साथ ले कर चलनें, कामकाजी वर्ग , विशेष तौर पर युवाओं के असंतोष को दूर करना और समावेशी आर्थिक नीतियों के एजेंडें पर चलेंगे. और साथ ही विश्वास जताया जा रहा हैं कि मैक्रों के दूसरें कार्यकाल में भारत और फ़्रांस की रणनीतिक साझेदारी और आर्थिक रिश्तों में और मज़बूती आयेगी. खास तौर पर इस परिपेक्ष्य के चलतें कि फ्रांस अन्य मित्र देशों की तुलना में भारत की 'रणनीतिक स्वायत्तता' की नीति के प्रति अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशील है।
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