नई दिल्ली, 02 अक्टूबर (शोभना जैन/वीएनआई) भारत पाक रिश्तों में बढती तल्खियॉ कम होने का नाम नही ले रही हैं. हाल ही के संयुक्त राष्ट्र महासभा अधिवेशन के बाद दोनों देश भले ही एक मंच पर रहे लेकिन कश्मीर में संविधान की धारा 370 हटाने के भारत के "आंतरिक फैसलें" से बौखलायें पाकिस्तान की हताशा पूरी आक्रामकता और तमाम कूटनीतिक मर्यादा इस दौरान पार करते दिखी. आम तौर पर ऐसे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों मे जहा मीडिया और अन्य सम्बद्ध पक्ष नजरों की नजर इस बात पर होती हैं कि तल्खियों के बावजूद भी क्या दोनों देशों के शिखर नेताओं की नजरें कभी मिलेंगी , क्या कभी अनजाने में आमना सामना होने पर दुआ सलाम होगी लेकिन इस बार माहौल बिल्कुल अलग था. दोनों का एक दूसरे से आमना सामना, नजरें चार तो हुई नही अलबत्ता इस मंच से हताश पाकिस्तान ने जिस तरह से भाषा बोली,व्यवहार किया उस से तल्खियॉ और ही बढी.चीन और तुर्की को छोड़ कर लगभग सभी देशों ने माना कि पॉच अगस्त का कश्मीर को ले कर किया गया यह फैसला भारत का आंतरिक मामला हैं. संयुक्त राष्ट्र महा सभा के अधिवेशन के दौरान पाक प्रधान मंत्री इमरान खान जहा इस कदर हताश थे कि उन्होंने अपने देश में अल्पसंखयकों में ढाये जा रहे ज्यादतियों की अनदेखी करते हुए भारत पर कश्मीर में खून खराबा, जनसंहार जैसे आरोप लगाते हुए दोनों देशों के परमाणु ताकत होने की धमकी दे कर दुनिया में दोनों के बीच युद्ध होने की स्थति में भय व्याप्त करने की फिर कौशिश की. पाकिस्तान के विदेश मंत्री इस मौके पर यू एन में अलग से होने वाली दक्षेस विदेश मंत्रियों की परंपरागत बैठक में कूटनीतिक मर्यादाओं को तिलाजंलि देते हुए से यह कह कर बैठक से दूर रहे कि कश्मीर में जन संहार के दोषियों के साथ वह एक मंच पर नहीं बैंठेंगे.लेकिन इस के विपरीत प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने महासभा की बैठक में आतंक पर करारा हमला तो किया और विश्व बिरादरी से आतंक से मिल कर एकजुटता से निबटने का आहवान किया, इमरान खान के भारत पर सीधे आरोप लगाने के उलट उन्होंने अपनी सरकार की उपलब्धियों के साथ ग्लोबल वार्मिंग, प्लास्टिक मुक्त बनाने जैसी जैसी विश्व समस्याओं और इन से निबटने के लिये अपनी सरकार की पहल और उपलब्धियों की चर्चा की.
बहरहाल, संयुक्त राष्ट्र महा सभा का वार्षिक अधिवेशन खत्म हो गया है.कश्मीर में आतंकवाद को भड़काने/फैलाने को ले कर दुनिया भारत की चिंताओं को समझती हैं, कश्मीर के इस फैसले को आंतरिक फैसले के रूप में दुनिया को कुल मिला कर समझा पाना भारत की ‘कूटनीतिक जीत’ मानी गई .इस मुद्दे पर पाकिस्तान अलग-थलग पड़ा कि कश्मीर संबंधी फैसला, भारत का आतंरिक मामला है ,यह भारत की अंदरूनी सीमाओं के अंदर का फैसला हैं, जिस का इस की बाह्य सीमाओं पर कोई प्रभाव नही हैं, चीन, तुर्की को छोड़ कर लगभग दुनिया भर ने समझा . कश्मीर मुद्दें पर बार बार मध्यस्थता की पेशकश करने वाले अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी व्हाइट हाउस में पी एम मोदी के साथ मुलाक़ात के बाद जारी बयान में उनसे सिर्फ सामान्य स्थिति बहाल करने की अपील की और कश्मीरी लोगों से किए अपने वादों को पूरा करने को कहा, 5 अगस्त के पहले की स्थिति को बहाल करने की बात नहीं की. लेकिन इस कूटनीतिक सफलता के साथ बड़ा सवाल ्यह भी है आखिर दोनों देशों के बीच बढती तल्खियॉ कैसे कम हो, रास्ता क्या हैं...
पाकिस्तान भारत का निकट पड़ोसी है.भारत को अपनी सकारात्मक उर्जा और संसाधन ्पाकिस्तान की नकारात्मक गतिविधियों से निबटने मे न/न चाहते हुए भी लगनी पड़ती ढै.दोनों देशों के बीच बढते तनाव को ले कर अमेरिका सहित कई देश चिंतित हैं.भारत कहता रहा हैं कि भारत पाकिस्तान दक्षिण पूर्वी एशिया के देश मिल कर गरीबी, भूख, कुपोषण जैसी समस्याओं से मिल कर निबटे. कहता तो पाकिस्तान भी यही है ,लेकिन उस की असलियत अब दुनिया के समाने हैं.
लेकिन इन तमाम हालात में समझना होगा कि भारत पाकिस्तान सिर्फ सीमाओं से अलग बंटे देश नही हैं. बंटवारे से अलग हुए देश के नाते रिश्तेदार यहा तक कि खून के रिश्ते एक दूसरे देशों मे रहते है. दोनों देशों के रिश्तों मे 'पीपल टु पीपल कॉन्टेक्ट' डिप्लोमेसी का सब से अहम पहलू हैं. समय- समय पर भारत की सरकारे रिश्ते सुधारने, बढाने की पहल करती आयी है.वैसे अपनी पिछली पारी की शुरूआत करते हुए मई २०१४ में सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में तब पीएम मोदी ने पाकिस्तान सहित सभी दक्षेस देशों के शासनाध्यक्षों/राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित कर इस क्षेत्र में शांति और सौहार्द की एक नयी पहल का संकेत दिया. इसी क्रम को जारी रखते हुए एक वर्ष बाद २५ दिसंबर २०१५ में फिर पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधान मंत्री नवाज शरीफ के परिवार के एक विवाह समारोह में शामिल होने जैसे आपसी भरोसा बढाने वाला एक और हाथ बढाया. लेकिन उस के बाद पाकिस्तान ने पठान कोट, उरी आतंकी हमले हुए और संघर्ष विराम का उल्लघंन लगातार जारी रहा और इसी कड़ी मे फिर पुलवामा हुआ और आखिरकार "नरमी वा्ले कदमों के बाद" बालाकोट जैसे आक्रामक रवैये" की नीति अपनाई गयी.फिलहाल दोनों देशों के बीच 2004 से समग्र वार्ता ठप्प है .वैसे दोनों देशों के बीच पुलवामा पर सी आर पी एफ पर हुए अमानवीय आतंकी हमले के बाद से २०१ से किसी प्रकार की बातचीत बंद हैं अलबत्ता दोनों देशों की जनता के बीच संपर्क बढाने को आपसी विश्वास बहाली के मजबूत उपाय बतौर करतारपुर साहिब गलियारे जैसे कदम उठाये गये है, जिस से सिख श्रद्दलुओं को लाभ मिलेगा . वैसे कुल मिला कर देखे तो दोनो देशों के बीच तनातनी के चलते पाकिस्तान ने संबंधों के इस मानवीय पक्ष को तार तार कर दिया. ऐसी अनेक पाबंदियों के बाद अब खबर हैं कि उस ने अपनी डाक सेवा भी भारत के लिये बंद कर दी.
इस बढते तनाव को कम करने के लिये कुछ जानकार ्दोनों देशों के बीच "भरोसेमंद बेक चेनल डिप्लोमेसी" के जरिये संपर्क शुरू करने का सुझाव दे रहे हैं, लेकिन फिर वही अहम बात "भरोसेमंद बेक चेनल डिप्लोमेसी" के लिये पहले पाकिस्तान को सीमा पार आतंक को रोकना होगा और यह सच्चाई स्वीकार करनी होगी कि गत पॉच अगस्त का कश्मीर भारत का फैसला उस का अंदरूनी मामला है. विदेश मंत्री डॉ एस जय शंकर ने हाल ही मे कहा "पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिये जरूरी हैं कि वह पहले आतंक बंद करे.भारत को पाकिस्तान से बातचीत करने में कोई समस्या नहीं है, लेकिन टेरिस्तान के साथ निश्चित तौर पर बातचीत नही की जा सकती हैं"
बहरहाल कश्मीर के फैसले पर भारत् ्के पक्ष को अंतराष्ट्रीय बिरादरी ने सही स्थति को समझा.पाकिस्तान पर सीमा पार आतंक , कश्मीर में आतंकी गतिविधियों को भड़काना बंद करने के लिये उस पर दबाव बनाने के साथ ही अब भारत सरकार के समक्ष चुनौती कश्मीर घाटी में पाबंदियॉ भी जल्द से जल्द हटा कर वहा सामान्य हालत बहाल करने की है.यह जिम्मेवारी उसे जल्द से जल्द पूरी करनी है.वहा लगभग दो माह से हालात पाबंदियों की वजह से सामान्य नही है. इस मानवीय पहलू से वह जल्द निबटे, जिस से विश्व बिरादरी में भी भारत दृढता से अपना पक्ष रख सकेगा. अमरीका सहित दुनिया के अनेक देश जहा यह मानते हैं कि गत पॉच अगस्त का यह फैसला भारत का आतंरिक मामला हैं, लेकिन इस फैसले के साथ ही वहा लागू पाबंदियों की वजह से कश्मीर घाटी में उतपन्न हालात को लेकर अपनी चिंताये जता रहे हैं, जो भारत के मजबूत लोकतांत्रिक छवि के अनुकूल नही हैं. समाप्त
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