भारत-आसियान से चीन को चुनौती

By Shobhna Jain | Posted on 3rd Feb 2018 | VNI स्पेशल
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नई दिल्ली, 3 फरवरी (शोभना जैन/वीएनआई) 'साझा मूल्य साझा भाग्य' के मंत्र वाक्य के साथ हाल में राजधानी में हुए भारत-आसियान शिखर सम्मेलन में क्षेत्र मे समुद्री सुरक्षा बनाये रखने के मुद्दे पर सभी आसियान देशों की साझा चिंता और इ्से बनाये रखने के लिये बनी सर्व सम्मत सहमति, विशेष तौर पर  दक्षिण सागर चीन क्षेत्र मे चीन की बढती चौधराहट से परेशान फिलीपीन,मलेशिया,वियतनाम और ब्रुनई जैसे देशो की बैठक में इस क्षेत्र  मे निर्धारित नौवहन मापदंडो के पालन करने पर जोर दिये जाने  से चीन और भी चौकन्ना हुआ है.सम्भवतः स्थति को भॉपते हुए चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने इस शिखर बैठक के बाद अब  कहा है कि चीन क्षेत्रीय ज्वलंत मुद्दों क़ो सुलझाने मे सकारात्मक भूमिका निभायेगा और  विवादों को वार्ता के जरिये हल करेगा.दरअसल आसियान शिखर बैठक की सफलता के बाद यह सवाल पूछा जा रहा है कि आसियान पर अपना वर्चस्व कायम करने को ले कर चीन के  जो मंसू्बे है, क्या  भारत की  सॉफ्ट पॉवर नीति  और एक्ट ईस्ट कूटनीति इस क्षेत्र मे संतुलन लाने का काम करेगी, साथ ही  आसियान को भारत के और  नजदीक ला सकेगी जिससे और ,्प्रगाढ संबंध जो कि दोनो के लिये ही परस्पर हितकारी  होंगे  और   सामरिक और  आर्थिक दृष्टि से प्रभावशाली आसियान को साझीदारी की एक नई दिशा मिल सकेगी .इंडोनेशिया, सिंगापुर, फिलीपींस, मलेशिया, ब्रुनेई, थाईलैंड, कंबोडिया, लाओ पीडीआर, म्यांमार और वियतनाम  के राष्ट्रा्ध्य्क्षों ने हाल ही में राजधानी मे हुई इस अहम आसियान शिखर बैठक में हिस्सा लिया, सभी शिखर नेताओ ने जिस तरह से इस शिखर बैठक मे हिस्सा लिया,  चीन उस से बहुत सतर्क हुआ है.

भारत और आसियान के दस देशों के बीच 25 और 26  जनवरी 2018  को नई दिल्ली में शिखर बैठक  होने  का  जब से एलान हुआ था, तभी से दुनिया, विशेष तौर पर चीन की घबराई और चौकस  निगाहें इस  बैठक पर टिकी थी.  शिखर बैठक के बाद जारी 'दिल्ली घोषणा पत्र' के अलावा भी इन देशो के शिखर नेताओ की भारत के साथ हुई द्विपक्षीय अनौपचारिक बैठको  में  चीन के दबदबे से उपजी चिंताएं केंद्र में रहीं. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत-आसियान रजत जयंती शिखर बैठक में अध्यक्षीय भाषण देते हुए कहा कि भारत हिंदू-प्रशांत समुद्री क्षेत्र में नियम आधारित व्यवस्था कायम करने का पक्षधर है और इस बारे में वह आसियान देशों संग मिलकर काम करेगा. पीएम ने साफ तौर पर यह इशारा दक्षिण चीन सागर में चीन की विस्तारवादी नीतियों की तरफ ही किया.शिखर बैठक मे इस मुद्दे पर  सहमति  रही कि समुद्री क्षेत्र में सहयोग को मजबूत किया जायेगा.  दिल्ली घोषणापत्र में भी दक्षिण चीन सागर के मामले में 2002 में घोषित आचार संहिता लागू करने की अपील की गई. यह आचार संहिता चीन और आसियान के अन्य देशों के बीच बनी सहमति है. लेकिन चीन उसका लगातार उल्लंघन कर रहा है.भारत ने बार-बार कहा है कि अंतरराष्ट्रीय समुद्री इलाके में आवाजाही की पूरी आजादी होनी चाहिये. जाहिर है इस क्षेत्र में अपनी चौधराहट कायम करने की जुगाड़ मे लगे चीन के लिये यह सब चीन को ्चौकन्ना  कर रहा है.अपने हितो की रक्षा के लिये हिंद महासागर क्षेत्र मे भारत की बढती  उपस्थिती पर निश्चय ही चीन  भी अपने चौधराहट वाले नजरिये पर सोचने पर मजबूर होगा.

इस क्षेत्र मे भारत ्की ्सॉफ़्ट पॉवर नजरिये के ्साथ विकास मे साझीदार होने की नीति के ठीक उलट अपने  विस्तारवादी मंसूबों के चलते चीन इस क्षेत्र मे निवेश के नाम पर काफी परियोजनाये भी चला रहा है लेकिन चीन के विस्तारवादी रवैयै से ये देश चीन को ले कर आशंकित रहते है, हालांकि चीन की वन रोड वन बेल्ट परियोजना पर भारत के विरोध के बावजूद कंबोडिया, लाओ जैसे देश अपने आर्थिक हितो का तर्क देते हुए इस परियोजना से जुड़े है, लेकिन इस के बावजूद  चीन की विस्तारवादी नीति से वे सभी आशंकित रहते है . इस के विपरीत इन देशो से रामायण,नालंदा और बौद्ध धर्म जैसी प्राचीन साझा सांस्कृतिक विरासत से जुड़े भारत की ्छवि एक भरोसेमंद मित्र के रूप मे  सभी देशों की संप्रभुता और अखडंता को सम्मान देने की  रही है.  वह भी क्षेत्र मे  अनेक महत्वपूर्ण विकास परियोजनाये  चलाता  रहा है,जो कि कृषि, अंतरिक्ष.पर्यावरण मानव संसाधन, डिजीटल कनेक्टीविटी परियोजनाये,उर्जा, अक्षय उर्जा, सासंकृतिक विरासत वाले पर्यटन स्थलो  के संरक्षण और इस क्षेत्र के साथ संपर्क बढाने, उसे आपस में जोड़ने के संबंध मे है.सुरक्षा और आतंकवाद जैसे क्षेत्रो मे भी भारत और आसियान देशो के बीच आपसी निकट सहयोग बढ रहा है  ,रक्षा क्षेत्र मे केपेसिटी बिल्डिंग  के बारे मे सहयोग के अलावा भारत  क्षेत्र के ब्रुनेइ जैसे देशो के रक्षा अधिकारियों  व राजनयिको को सैन्य प्रक्षिशण देता रहा है. इन देशो को द्विपक्षीय वित्तीय सहायता तथा ऋण दिये जाने के अलावा भारत ने इन देशो से जुड़ने  की फिजीकल और डिजिटल कन्क्टिविटी  के लिये एक अरब डॉलर की ऋण सहायता भी दिये जाने की घोषणा की है. इस सब के चलते  आसियान का  भारत के प्रति भरोसा रहा है लेकिन  दूसरी तरफ क्षेत्र मे चीन द्वारा निवेश के नाम पर भारी भरकम पैसा उंडेलने के बावजूद आसियान पड़ोसियो  के ्साथ संप्रभुता संबंधी विवाद और दक्षिण चीन सागर क्षेत्र मे  नौवहन को ले कर जो विवाद चलते रहे है, उस से आसियान देशों की चीन के प्रति भरोसे की कमी लगातार बनी रही है और आशंका का भाव रहा है.
 
एक दूसरे क्षेत्र को सड़क़,रेल, वायु मार्ग से जोड़ने यानि कनेक्टीविटी  भारत आसियान आपसी संबंधो मे एक अहम पहलू रहा है. भारत आसियान देशो को जोड़ने के लिये अनेक कनेक्टीविटी परियोजनाये चला रहा है.इंडिया,थाईलेंड, म्यॉमार तीन देशो के बीच का सड़क मार्ग, कलादान मल्टीमॉडल परियोजना, म्यॉमार को रेल मार्ग से जोड़ने वाली तामू- केले रेल मार्ग परियोजनाये ऐसी ही महत्वाकांक्षी परियोजनाये ,जो चल तो रही है लेकिन समय से पूरी नही हो पा रही है ये परियोजनाये निश्चय ही भारत के पूर्वोत्तर के जरिये इस पूरे क्षेत्र को जोड़ेगी, जिस से यहा का आर्थिक विकास होगा और जनता के बीच संपर्क बढेगा. दूसरी तरफ चीन इस क्षेत्र मे ताबड़ तोड़ तेजी से काम कर रहा है. इसी तरह  प्रगाढता के लिये जरूरी है इन देशो के साथ व्यापार बढाने की. चीन  का जहा इन देशो  452 अरब डॉलर के साथ लगभग पार होता है वही भारत के  साथ महज  76 अरब डॉलर का ही व्यापार होता है. निवेश मे भी यही स्थति अब तक रही है  भारत का जहा वहा निवेश 2015-16 मे लगभग 22  करोड़ डॉलर था वही चीन का निवेश लगभग 3 अरब डॉलर रहा, लेकिन संतोष की बात यह है कि अब स्थति बदल रही है और भारत इस क्षेत्र के साथ व्यापार,सामरिक क्षेत्र मे सहयोग बढाने के साथ  जनता के बीच संपर्क बढा रहा है और चीन की चौधराहट के मुकाबले इस क्षेत्र मे एक ्भरोसेमंद सहयोगी के रूप मे ज्यादा नजदीक आ रहा है.
  
भारत आसियान  संबंधो की एक खास बात यह है कि एक तरफ जहा भारत ने 'थ्री सी' यानि कॉमर्स,कनेक्टीविटी,  कल्चर, के जरिये आर्थिक, राजनैतिक, सामरिक रिश्तें, खास तौर पर समुद्री सुरक्षा मजबूत बनाने की नयी पहल शुरू की  है,  आसियान की साझी सांस्कृतिक विरासत के जरिये 'कल्चर डिप्लोमेसी' की यह 'सॉफ्ट पॉवर पहल' से  सांस्कृतिक रिश्ते मजबूत बनाने के प्रयासो मे और तेजी लाने पर सहमति हुई है. तक्षशिला मे इन देशो के छात्रो का अध्ययन, बौद्ध धार्मिक स्थलो को जोड़ने वाला बौद्ध सर्किट या फिर इन देशों की जनता के बीच आपसी संपर्क बढाने के लिये आसियान पर्यटन वर्ष  और फिर  ्शिखर के उपलक्ष्य मे यहा हुआ'रामायण महोत्सव' इस दिशा में अहम कड़ी है. इसी शिखर बैठक के उपलक्ष्य में इन देशों द्वारा अपनी अपनी शैली में रामायण को मंचित किया गया,  आसियान देशों के कलाकारो द्वारा रामायण मंचन की शैली अलग भले ही हो लेकिन भावना एक ही रही, और यह समारोह उसी  साझी विरासत, भावना का उत्सव रहा. इन सभी देशों मे रामायण  आस्था का एक परिचित ग्रंथ है जिसे वह नृत्य नाटिका के जरिये मंचित करते रहे है. दरअसल रामायण इस क्षेत्र मे मित्रता का एक सेतु  बन गया है .

जरूरत इस बात की है कि चीन  द्वारा इस क्षेत्र मे भारी निवेश के बावजूद उस से आशंकित और  सतर्क इन देशो की  आकांक्षायों और जरूरतो का ध्यान रखते हुए भारत एक्ट ईस्ट नीति का तेजी से पालन करे और  साझा संस्कृति से जुड़े  आसियान देशो का और भी विश्वस्त  भरोसेमंद पार्ट्नर बने, जो कि दोनो के लिये हितकारी होगा. साभार- लोकमत (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है)


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