नई दिल्ली, 09 जून, (वीएनआई) अब जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के नेता किम-जोंग-उन के बीच सिंगापुर के खुबसूरत सेंटोस द्वीप में 12 जून को होने वाली चर्चित शिखर बैठक के लिये उल्टी गिनती शुरू हो गई है, इस बात को ले कर न/न केवल अमरीका बल्कि पड़ोसी उत्तर कोरिया,जापान, चीन और रूस सहित महाशक्तियों के साथ भारत समेत दुनिया भर में इस शिखर बैठक की सफलता और इस के ठोस परिणामों को ले कर उत्सुकता मिश्रित चिंतायें और गहरी हो गई है.
पहले यह शिखर पिछले माह होने वाली थी लेकिन टृंप नेउत्तर कोरिया के परमाणु हथियार और लंबी दूरी तक मार करने वाले परमाणु प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम पर असहयोगपूर्ण रवैये और इसे लेकर किम के 'जबर्दस्त गुस्से' और 'खुले शत्रुता पूर्ण रवैये' को ले कर अंतिम समय मे बैठक इकतरफा तौर पर स्थगित कर दे गई थी. टृंप प्रशासन का कहना है कि उत्तर कोरिया में परमाणु निरस्त्रीकरण ट्रंप प्रशासन की शीर्ष प्राथमिकताओं में से है. उन का तर्क है कि कोरियाई प्रायद्वीप के पूरी तरह निरस्त्रीकरण की दिशा में विश्वसनीय कदम नहीं उठाए जाने तक प्रशासन का रुख नहीं बदलेगा। स्थगित हुई वही बैठक अब दोबारा की जा रही है. हालांकि टृंप के वकील ने हाल ही ्मे यहां तक कह डाला कि किम बैठक को आयोजित करने के लिये गिड़गिड़ाये थे. बहरहाल बैठक के आयोजन की तैयारियॉ दोनो पक्षों की तरफ से जोर शोर से चल रही है हालांकि टृंप की तुनकमिजाजी और किम के तानाशाही भरे रवैये, जिस मे उन्होने दुनिया की कभी परवाह नही की, की वजह से इस बैठक को ले कर अब भी अनिश्चितता बनी हुई है हालांकि टृंप की कल की नवीनतम आशावादी टिप्पणी से बैठक के पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार होने की उम्मीद भी बंधी है, उन्होने इस बैठक के प्रति भरोसा जाहिर करते हुए कहा था कि बैठक फोटो ्खिंचवाने से कही ज्यादा होगी. इसी तनातनी के माहौल मे शिखर बैठक से पहले अंतराष्ट्रीय डिप्लोमेसी भी जोर पकड़ रही है.उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया ्के दोनो शिखर नेताओं, किम और मून ने तनावपूर्ण और यूं कहे कि अपने शत्रु पूर्ण रिश्तो को पीछे रख असाधारण कदम के रूप में हाल ही मे दो मुलाकाते की. किम अपने 'खास'चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग से मंत्रणा करने दो बार चीन ्भी जा चुके है. शिखर से पहले जापान के प्रधान मंत्री शिंजो आबे ट्ंप से मंत्रणा करने वाशिंगटन मे है.
अंतरराष्ट्रीय डिप्लोमेसी के इन समीकरणों के साथ अगर भारत की बात करें तो कोरिया प्रायद्वीप मे शांति भारत के हित से भी जुड़ी है.दरअसल दक्षिण कोरिया के भारत के साथ पहले से ही मैत्रीपूर्ण और द्विपक्षीय प्रगाढ सहयोगकारी संबंध है. कोरिया प्रायद्वीप मे शांति को ले कर उस की अन्य देशों जैसी चिंताये है.उधर इस शिखर से पहले गत माह के मध्य में विदेश राज्य मंत्री जनरल वी के सिंह अपनी चीन यात्रा के फौरन बाद उत्तर कोरिया के दौरे पर पहुंचे. पिछले 20 वर्षों मे किसी भारतीय मंत्री की यह पहली उत्तर कोरिया यात्रा थी.सवाल उठ रहे है कि क्या अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बदलते समीकरण के चलते आने वाले दिनों में भारत के संबंधों में अलग तरह के समीकरण देखने को मिल सकते हैं। वी के सिंह की उत्तर कोरिया यात्रा को लेकर हालांकि भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से औपचारिक तौर पर कुछ भी नहीं कहा गया है। उनके इस दौरे को भारत-उत्तर कोरिया के संबंधों में काफी अहम बताया जा रहा है। बताया जाता है कि उन्होने इस दौरे में उत्तर कोरिया के साथ द्विपक्षीय संबंधो के साथ परमाणु मुद्दे पर भी चर्चा की. इस क्षेत्र मे शांति भारत के लिये बहुत अहम है खास तौर पर उस के व्यापारिक हितों के लिये .वर्ष 1991 में भारत के सकल विकास दर का 15.6 प्रतिशत जो कि विदेशी व्यापार के रूप मे हुई ,पश्चिमी देशों के लिये इसे स्वेज नहर के रास्ते ्किया जाता था लेकिन 2014 मे सकल विकास दर का 49.3 प्रतिशत जो कि विदेशी व्यापार के रूप मे होता था उसे पूर्वी देशो के लिये दक्षिण चीन सागर क्षेत्र से ्किया जाने लगा, जिस के मायने है कि दक्षिण चीन सागर क्षेत्र के जरिये होने वाला व्यापार भारत के लिये आर्थिक दृष्टि से काफी लाभकारी है.ऐसे मे यह देखना अहम होगा कि शिखर बैठक के नतीजे क्या रहते है.कहा जा रहा है कि यदि उत्तर कोरिया ्परमाणु निरस्त्रीकरण की योजना की पेशकश करता है तो श्री ट्रंप तभी आगे के रोड मैप के लिये तैयार होंगे। दूसरी तरफ उत्तर कोरिया से संकेत है कि शिखर वार्ता तब संभव है जब अमेरिका रिश्तों को बेहतर बनाने के प्रति ‘संजीदगी’ दिखाए और कोई शर्त नही रखे ।
दरअसल अमरीका और उत्तर कोरिया के बीच रिश्ते बहुत तनाव पूर्ण रहे है.किम जोंग अब अपने विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम के चलते पाबंदियों से जूझ रही अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था और बदहाली के बीच अमेरिका और दक्षिण कोरिया दोनों के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश में है। ट्रंप के शपथ लेने के बाद किम जोंग ने परमाणु प्रक्षेपास्त्र और परमाणु परीक्षण का सिलसिला चला कर दुनिया को परमाणु युद्ध की चिंता मे झोंक दिया था.इस माहौल मे ट्रंप ने उत्तर कोरिया के खिलाफ पांबंदियों के साथ उत्तर कोरिया के 'खास मित्र और सलाहकार' चीन पर दबाव बना किम जोंग को कूटनीति का रास्ता अपनाने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया. दर असल इस शिखर के नतीजे क्या होंगे , इस पर सब की नजरे है.
किम जोंग क्या परमाणु निरस्त्रीकरण को तैयार होंगे ? पर यह आसान भी नहीं है.एक वर्ग का यह भी मानना है कि चरण बद्ध रूप से परमाणु निरस्त्रीकरण के लिये राजी होने के साथ किम जोंग अपने लिये सबसे सुरक्षित रास्ता अपनाते हुए उत्तर कोरिया को परमाणु शक्ति सम्पन्न देशो ्मे शामिल करवाने की कोशिश भी करेगें। दूसरी तरफ कहा जा रहा है कि अगर डोनाल्ड ट्रंप अगर किम जोंग से मिलते है तो वे परमाणु निरस्त्रीकरण की दिशा में ठोस सहमति का खाका बनवा कर ही मिलेगे। वे उत्तर कोरिया से पाबंदियां तभी हटाएंगे, जब किम परमाणु हथियारों को खत्म करने का वायदा करें या इस दिशा मे चरणो में कदम उठाने का वादा ्भी करे. बहरहाल शिखर से पहले अनिश्चितता के बादल छाये हुए है. युद्ध विकल्प नही है . और फिर हाल के इन संकेतो से आशा की किरण तो नजर आती ही है कि अगर इस शिखर मे काफी ठोस प्रगति होती है तो टृंप को वाशिंगटन आने का न्यौता दे सकते है. साभार - लोकमत (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है)