नई दिल्ली, 8 मई (वीएनआई/शोभना जैन) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी युक्रेन-रूस युद्ध की भयावहता में उलझी कूटनीति और बदलती विश्व व्यवस्था के बीच यूरोप के अपने तीन दिन के तूफानी दौरें के बाद स्वदेश लौट आयें हैं. पीएम मोदी के तीन यूरोपीय देशों, जर्मनी, डेनमार्क और फ्रांस की यात्रा ऐसे अहम वक्त हुई हैं जब कि रूस-युक्रेन युद्ध के चलतें योरोप शीत युद्ध के बाद के अब तक के सब से बडें सुरक्षा संकट का सामना कर रहा हैं.पिछलें सात दशक से निर्बाध चल रही विश्व व्यवस्था में बदलाव के संकेत नजर आ रहे हैं. ऐसे में भारत के सम्मुख चुनौती हैं कि भारत रूस के साथ अपने अहम संबंधों को "अस्थिर" ना करतें हुयें, विश्व व्यवस्था में दिख रहें बदलाव के इन संकेतों के बीच यूरोप के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करने पर भी ध्यान दें. यानि संतुलन ्बनाने की चुनौतियों के बीच संभावनाओं के अवसरों पर ध्यान देते हुयें योरोपीय देशों के साथ समानता के जो बिंदु हैं,उन्हें और मजबूत किया जायें और दोनों पक्ष अधिक सक्रिय आर्थिक सामरिक सहयोग बढायें.जिस तरह से यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक सामरिक, कूटनीतिक स्थिति पर गहरा दीर्घकालिक प्रभाव डाला है और रूस और चीन की नज़दीकियां बढ़ी हैं, भारत की ्यह चिंता स्वाभाविक हैं कि पश्चिमी देशों का ध्यान चीन से हटकर रूस पर जा टिका है. जैसा कि एक विशेषज्ञ का भी मानना हैं कि ऐसे दौर में एक बदले हुए वैश्विक राजनीति की साझा सोच का निर्माण किया जायें और यूरोपीय देश भारत-प्रशांत क्षेत्र में ज़्यादा बड़ी भूमिका निभाए. दरसल भारत और यूरोप दोनों को ही एक दूसरें की ज़रूरत हैं,दोनों के लियें ही यह दौर संभावनाओं को अवसर में बदलनें का दौर बन सकता हैं चाहे वो सामरिक क्षमताओं के निर्माण के लियें हो या आर्थिक और तकनीकी बदलाव के लिए.दरअसल भारत अपनें अहम सामरिक साझीदार रूस के साथ अपने आर्थिक सामरिक संबंधों में कटौती करने की अमरीका और योरोपीय देशों की बात ना मानतें हुयें अपनें राष्ट्रीय हितों के मद्देंनजर तटस्थता की नीति का ही पालन कर रहा हैं. इस दौरें के जरियें भारत बदलते विश्व व्यवस्था के संकेतों और चुनौतियों के बीच योरोप के साथ सहयोग बढानें के नयें अवसरों को ऑक रहा हैं. पी एम मोदी का यह योरोप दौरा उसी परिपेक्ष्य में लिया जा सकता हैं।
यूक्रेन युद्ध की भयावह छाया में हुयें इस दौरें मे हालांकि विश्व नेताओं के साथ विमर्श का मुख्य मुद्दा भलें ही यह रहा हो लेकिन यह दौरा इस उथल पुथल भरी विश्व कूटनीति में योरोपीय देशों के साथ रिश्तें बढानें के लियें खासा अहम रहा .इन देशों के नेताओं के साथ हुई बातचीत में पी एम मोदी ने युक्रेन युद्ध को ले कर भारत की चिंताओं के साथ उस के पक्ष को रखा वहीं योरोपीय देशों ने रूस को ले कर अपनी चिंतायें रखी. जैसा कि पी एम मोदी ने यात्रा के पहलें पड़ाव में जर्मनी के चांसलर ओलाफ शाल्ज से कहा भी " युद्ध में कोई भी विजयी नहीं होगा, सभी का नुकसान होगा, भारत हमेशा शांति का पक्षधर रहा हैं,,उन्हों ने तुरंत युद्ध विराम पर जोर देते हुयें कहा कि विवाद को सुलझानें के लियें बातचीत ही एक मात्र विकल्प हैं. ्जर्मनी योरोप में भारत का बेहद अहम साझीदार हैं.युद्ध पर जर्मनी का पक्ष रखतें हुयें शाल्ज ने इस से पूर्व एक इंटरव्यू में कहा था" युक्रेन युद्ध पर "रूस की जबावदेही" पर उन्हें भारत से मोटे तौर पर सहमति की उम्मीद हैं. वैसे एक पूर्व राजदूत के अनुसार इस पक्ष के साथ ही जर्मनी भारत के इस पक्ष से सहमत हैं कि रूस को अलग-थलग नहीं किया जा सकता और उससे जुड़ा रहा जाए और ज़ोर दिया जाए कि वो नियमों के भीतर रहे.अगर जर्मनी की बात करें तो भारत की ही तरह वह भी चीन की आक्रामक विदेश नीति का शिकार रहा हैं. ऐसे में जब कि वह चीन और रूस के बाजारों पर अपनी निर्भरता कम कर रहा हैं , भारत उस के लियें भी अच्छा बाजार साबित हो सकता हैं. लेकिन इस के साथ ही वह अपने आर्थिक हितों के चलतें रूस के साथ रिश्तें पूरी तरह से काटना नही चाहता हैं अलबत्ता देश को उत्पन्न सुरक्षा चुनौतियों के मद्देंनजर के साथ ही यूक्रेन हमले के मद्देनजर देश को उत्पन्न सुरक्षा चुनौतियों को देखतें हुयें चांसलर शॉल्स जर्मनी की सुरक्षा मज़बूत करने के लिए सेना में 100 अरब यूरो (क़रीब 8,000 करोड़ रुपए) निवेश करने की घोषणा कर चुके हैं. लेकिन इस के साथ ही अगर भारत और जर्मनी के बीच बढतें सहयोग और नयी संभावनाओं की बात करें तो जर्मनी ने अटकलों को खारिज करतें हुयें जिस तरह से इस यात्रा के दौरान जी- 7 शिखर सम्मेलन का अध्यक्ष होनें के नातें भारत को इस बैठक के लियें आमंत्रित किया वह योरोप की तरफ से रिश्ते बढानें के लियें एक सकारात्मक संदेश माना जा रहा हैं, हालांकि यह भी हकीकत हैं कि जर्मनी भारत पर रूस से खनिज तेल खरीदनें ्ना खरीदनें ्पर जोर देता रहा हैं और इसी के नातें सोच यह बन रहा था कि सम्भवतः जर्मनी भारत को इस शिखर बैठक के लियें आमंत्रित नही करेगा.जर्मनी सहित पश्चिमी देश रूस के तेल, कोयले और गैस पर भारी निर्भरता कम करने के लिए क़दम भी उठा रहे हैं.जर्मनी २००० से भारत का सामरिक साझीदर हैं. इस दौरान भी दोनों देशों ने सतत विकास पर आधारित 14 समझौतों पर भी हस्ताक्षर भी कियें।
अगर पी एम मोदी की नोर्डिक देशों की यात्रा की बात करें तो भारत पिछलें कुछ वर्षों से डेनमार्क, फिनलेंड, आईसलेंड नॉर्वें और स्वीडन के साथ अपने आर्थिक रिश्तें मजबूत करनें पर बल दे रहा हैं, साथ ही दोनों पक्षों के बीच सामरिक साझीदारी भी बढ रही हैं दोनों ही भारत प्रशांत क्षेत्र में संघर्ष की किसी आशंका को ले कर समान रूप से चिंतित हैं. इस यात्रा के दौरान डेनमार्क में आयोजित दूसरें भारत नॉर्डिक शिखर बैठक में इन देशों के प्रधान मंत्रियों ने रूसी फौजों द्वारा युक्रेन पर अवैध तथा बिना इकी उकसावें के कियें गये हमलें की तीखी आलोचना दोहराई.दरअसल नोर्डिक देशों की रूस को ले कर अपनी चिंतायें है, दो देशों की सीमायें रूस से जुड़ी हैं डेनमार्क,आईसलेंड और नॉर्वें जहा यूरोपीय देशों के सुरक्षा गठबंधन नाटों के संस्थपक सद्स्य रहे हैं वहें नयी सुरक्षा चुनौतियों की आशंका से अब स्वीडन और फिनलेंड भी अपना तटस्थ देश का दर्जा त्याग कर नाटों का सदस्य बननें की कतार मे हैंसम्मेलन में कोरोना महामारी के बाद आर्थिक बहाली, ्जल वायु परिवर्तन, ब्लू इकोनॉमी और इसके विभिन्न पहलू अक्षय उर्जा के अलावा प्रौद्योगिकी और निवेश संबंध, स्वास्थ्य क्षेत्र के अलावा भारत में जल निकायों का निर्माण पर बात हुई.
पिछलें कुछ वर्षों से भारत के अहम रक्षा साझीदार के रूप मे उभर रहें फ्रांस की प्रधानमंत्री मोदी की यह पांचवी यात्रा रही, मोदी ऐसे समय पेरिस पहुंचे हैं, जब फ्रांस यूरोपीय संघ की अध्यक्षता कर रहा है और युक्रेन युद्ध में वह और विशेष तौर पर राष्ट्रपति मेक्रों की भूमिका खासी प्रभावी रही है.दोनों नेताओं ने यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण उपजे संकट से निपटने पर चर्चा की. साथ ही रक्षा, प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष और ऊर्जा क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने और मिलकर काम करने पर सहमति जताई.विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने भी पीएम मोदी और मैक्रों के बीच चर्चा के बारे में बताते हुए कहा कि "दोनों नेताओं ने रक्षा, अंतरिक्ष, असैन्य परमाणु सहयोग और लोगों से लोगों के बीच संबंधों सहित द्विपक्षीय संबंधों के सभी प्रमुख क्षेत्रों पर व्यापक चर्चा की। भारत और फ्रांस एक दूसरे को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रमुख साझेदार के रूप में देखते हैं।"
दरसल नाटों के प्रमुख यूरोपीय देश फ्रांस के राष्ट्रपति के नातें मैक्रों की जीत अमरीका यूरोप के लियें एक बड़ी राहत की खबर हैं. युक्रे्न युद्ध में उलझें योरोप की राजनीति के इन समीकरणों को इस बात से समझा जा सकता हैं कि इस चुनाव से पहलें पुर्तगाल और स्पेन के प्रधान मंत्री के साथ जर्मनी के चांसलर ने फ्रांस के एक प्रमुख राष्ट्रीय दैनिक ले मोंद में एक लेख के जरियें फ्रांसिसी मतदाताओं से मेरिन को हरानें का आह्वान किया.जाहिर हैं कि यूरोपीय एकता के लियें योरोप मेक्रों की जीत को बेहद अहम मान रहा था. भारत के लियें भी मैक्रों की जीत एक अच्छी खबर हैं,दोनों देशों के बीच प्रगाढ आर्थिक सामरिक रिश्तें हैं. वर्ष 1998 से दोनों देशों के बीच शुरू हुई सुदृढ़ सामरिक साझीदारी और व्यापक रूप ले चुकी हैं, जिस के तहत रक्षा, परमाणु उर्जा, अंतरिक्ष, उर्जा, अक्षय उर्जा, साईबर सुरक्षा, पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में उभयपक्षीय सहयोग के साथ ही दोनों देश आतंक निरोधी अभियानों में भी आपसी सहयोग से काम कर रहे हैं. फ़्रांस भारत के लिए अत्याधुनिक सैन्य सामग्री का विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता रहा है. पिछलें वर्षों मे ही भारत ने फ़्रांस से 36 रफ़ाल लड़ाकू विमान खरीदे हैं.दोनों देशों के बीच हुए रक्षा क़रार के तहत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के तहत भारत में छह P-75 स्कॉर्पीन पनडुब्बियां बनाने की परियोजना पर भी काम चल रहा है. खबरों के अनुसार इनमें से चार पनडुब्बियां भारतीय नौसेना को सौंपी जा चुकी हैं और बाकी दो इस साल बन कर तैयार हो जाएंगी. एक विशेषज्ञ के अनुसार फ़्रांस का प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के मामले में रुख़ यूरोपीय देशों या अमेरिका के मुक़ाबले बहुत खुला है. हिंद प्रशांत क्षेत्र में भी फ्रांस भारत का अहम रणनीति साझीदार हैं.
बहरहाल पी एम मोदी की इन तीन यूरोपीय देशों की यात्रा से दोनों पक्षों को युक्रेन युद्ध पर एक दूसरें का नजरियॉ बेहतर तरीकें से समझने का मौका तो मिला ही हैं, साथ ही पश्चिमी देशों के लियें भी भारत के साथ सहयोग और सहमति के बिंदु बढानें का अवसर भी बना हैं.भारत ना केवल एक बड़ा बाजार हैं बल्कि इस की एक कूटनीतिक अहमियत है. पूरें योरोप की भारत के साथ भावी रिश्तों के स्वरूप पर नजर हैं. इस दौर से पहलें सुगम विश्व व्यवस्था में भारत की योरोप और रूस के साथ अच्छें रिश्तें बनें रहें. उम्मीद हैं बदलती विश्व व्यवस्था के इस दौर में भी भारत चुनौतियों से निबटतें हुयें, संतुलन बनातें हुयें अपने राष्ट्रीय हितों की प्राथमिकताओं के अनुसार यूरोप के साथ भी अपने रिश्तें और मजबूत करेगा. समाप्त
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