काठमांडू. 16 सितंबर (शोभनाजैन,वीएनआई) आगामी 20 सितंबर से नेपाल संघीय, पूर्णत: लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष गणराज्य के रूप मे जाना जायेगा. सात साल तक निरंतर चले विचार विमर्श और हिंसक प्रदर्शनो के बाद, नेपाल ने अन्तत कल इस आशय के नए संविधान को 20 सितंबर को जारी किये जाने को मंजूरी दे दी. इससे पूर्व संविधान सभा मे नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित करने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया था.
विदेश मंत्री महेंद्र बहादुर पांडेय के अनुसार संविधान सभा ने नेपाल के संविधान से संबंधित संशोधित विधेयक को जारी करने के लिए तारीख तय करने के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से मंजूरी दे दी। नेपाल के प्रस्तावित संघीय ढांचे को लेकर अल्पसंख्यक समूहों द्वारा किए जा रहे प्रदर्शनों के बाद अब नया संविधान 20 सितंबर को लागू ्हो जायेगाजो पूर्णत: लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष होगा। गौरतलब है किनेपाल की संविधान सभा ने नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित करने के प्रस्ताव को सख्ती से ठुकरा दिया और हिंदू बहुल इस हिमालयी देश के धर्मनिरपेक्ष बने रहने पर सहमति जताई.संविधान सभा ने द्वारा संविधान तैयार करने की प्रक्रिया 2008 से ही चल रही है
श्री पांडेय ने कहा कि नेपाल के राष्ट्रपति राम बरन यादव यहां एक विशेष समारोह में पूर्ण लोकतांत्रिक संविधान को जारी करेंगे। संविधान सभा द्वारा नेपाल को फिर से हिन्दू राष्ट्र बनाने के प्रस्ताव को खारिज कर दिए जाने के बाद जबकि पिछले दिनो हिंसक प्रदर्शन हुए। संघीय ढांचे को लेकर पहले से ही स्थिति तनावपूर्ण चल रही थी.संविधान सभा के इस फैसले का हिंदू संगठनों ने विरोध किया। इसी बीच भारत ने नेपाल से निर्धारित समय मे व्यापक आधार के समर्थन के साथ संविधान लागू करने करने का मत व्यक्त किया था
वहा चल रहे हिंसक प्रदर्शनो पर चिंता व्यक्त करते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा था कि भारत नेपाल मे प्रदर्शनो और हिंसा की घटनाओ से चिंतित है, उन्होने वहा सभी राजनैतिक दलो से उदारवादी रवैया अपनाये रखे जाने का सुझाव दिया था ताकि सभी विचाराधीन मसलो का हिंसा मुक्त माहौल मे बातचीत के जरिये हल किया जा सके
संविधान सभा में नए संविधान के अनुच्छेदों को लेकर हुए मतदान के दौरान दो-तिहाई सदस्यों ने नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित करने के प्रस्ताव वाले संशोधन को ठुकरा दिया तथा इस बात पर जोर दिया कि नेपाल धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना रहेगा।
हिंदू समर्थक समूह राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी नेपाल की ओर से यह प्रस्ताव पेश किया गया था। इस पार्टी ने मांग की थी कि संविधान के अनुच्छेद चार से धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाया जाए और इसके स्थान पर हिंदू राष्ट्र शामिल किया जाए।
संविधान सभा के अध्यक्ष सुभाष चंद्र ने प्रस्ताव के ठुकराए जाने का ऐलान किया तो राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी के कमल थापा ने मत विभाजन की मांग की। थापा के प्रस्ताव के पक्ष में 601 सदस्यीय संविधान सभा में सिर्फ 21 मत मिले, जबकि मत विभाजन के लिए 61 सदस्यों के समर्थन की जरूरत होती है।
पहले हिंदू राष्ट्र रहे नेपाल को साल 2006 के जन आंदोलन की सफलता के बाद साल 2007 में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया था।
मधेसी पार्टियां भी नए संविधान का विरोध कर रही हैं और हिंसक प्रदर्शनों में करीब 40 लोगों की मौत हो चुकी है। मधेसी पार्टियां सात प्रांतों वाली संघीय व्यवस्था का विरोध कर रही हैं। वी एन आई