एंटीबायोटिक की जगह चीनी का इस्तेमाल होगा बेहद कारगर!

By Shobhna Jain | Posted on 3rd Apr 2018 | VNI स्पेशल
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कुछ मीठा हो जाए

हिंदुस्तान में ये जुमला बेहद आम है. खाने के बाद स्वीट डिश तो चाहिए ही. ख़ुशी के किसी भी मौक़े पर मीठे की अपनी अलग अहमियत है. बात-बात पर, कई बार बिना बात के मीठा खाया और खिलाया जाता है.
इसके बरक्स, दूसरा जुमला यानी 'जख़्मों पर नमक छिड़कना' के अलग ही मायने हैं. मीठा ख़ुशियां साझा करने के लिए, तो नमक तकलीफ़ बढ़ाने के मुजरिम के तौर पर देखा जाता है.
क्या हो अगर हम दोनों जुमलों को मिलाकर, 'ज़ख़्म पर कुछ मीठा डाल दो' कहने लगें. मीठे की मदद से ज़ख़्म भरने की कोशिश करने लगें.
हो सकता है कि इस बात पर आप चौंक कर कहें कि ये क्या बात हुई भला. चीनी से ज़ख़्म कैसे भरेगा. लेकिन अमरीका और ब्रिटेन में कुछ डॉक्टर ऐसा ही कर रहे हैं. वो एंटीबायोटिक के बजाय चीनी की मदद से ज़ख़्मों को भरने की कोशिश कर रहे हैं. इसमें काफ़ी कामयाबी भी मिली है.

ज़ख़्म भरने के लिए प्रयोग

मोज़ेज़ मुरांडू ज़िम्बाब्वे के रहने वाले हैं. वो ब्रिटेन में नर्सिंग का काम करते हैं. मुरांडू ही आजकल ज़ोर-शोर से मुहिम चला रहे हैं कि घाव भरने के लिए एंटीबायोटिक की जगह चीनी इस्तेमाल की जाए.
मुरांडू का बचपन बेहद ग़रीबी में बीता था. वो ज़िम्बाब्वे के ग्रामीण इलाक़े में रहा करते थे. बचपन के दिनों को याद करके मुरांडू बताते हैं कि जब दौड़ते-खेलते हुए उन्हें चोट लग जाती थी तब उनके पिता उनके घाव पर नमक लगा दिया करते थे. पर जब उनकी जेब में पैसे होते थे तो वो घाव पर नमक के बजाय चीनी डाला करते थे.
मुरांडू का कहना है कि उन्हें अब भी याद है कि चीनी डालने पर उनके घाव जल्दी भर जाया करते थे.
बाद में मोज़ेज़ मुरांडू को 1997 में ब्रिटेन नेशनल हेल्थ सिस्टम में नर्स की नौकरी मिल गई. उन्होंने नौकरी करते हुए ये महसूस किया कि कहीं भी घाव भरने के लिए चीनी का इस्तेमाल नहीं होता. तब उन्होंने ज़ख़्म भरने के लिए चीनी प्रयोग करने का फ़ैसला किया.

 

रिसर्च के लिए अवार्ड

मुरांडू के शुरुआती प्रयोग कामयाब रहे. अब ज़ख़्मों के इलाज के लिए एंटीबायोटिक की जगह चीनी के इस्तेमाल की उनकी सलाह को गंभीरता से लिया जा रहा है.
उन्होंने ब्रिटेन की वोल्वरहैम्पटन यूनिवर्सिटी में रिसर्च करते हुए घाव भरने में चीनी के रोल पर तजुर्बा किया. इसके लिए पिछले ही महीने उन्हें अवॉर्ड दिया गया है.
चीनी से घाव भरने के इस नुस्खे को दुनिया के कई देशों में हाथो-हाथ लिए जाने की उम्मीद है. बहुत से ग़रीब लोग हैं जो एंटीबायोटिक का ख़र्च नहीं उठा सकते. उनके लिए चीनी की मदद से ज़ख़्म भरने का नुस्खा मददगार हो सकता है.
इसका दूसरा फ़ायदा भी है. बढ़ते इस्तेमाल की वजह से हम पर एंटीबायोटिक का असर कम हो रहा है. कीटाणुओं में भी एंटीबायोटिक से लड़ने की क्षमता आ गई है. हम चीनी की मदद से इस चुनौती से भी निपट सकते हैं.
मोज़ेज़ मुरांडू कहते हैं कि चीनी का इस्तेमाल बेहद आसान है. हमें बस अपने ज़ख्म पर चीनी डाल लेनी है. इसके बाद घाव के ऊपर पट्टी बांध लेनी है. चीनी के दाने हमारे घाव में मौजूद नमी को सोख लेंगे. इसी नमी की वजह से घाव में बैक्टीरिया पनपते हैं. बैक्टीरिया ख़त्म हो जाने से घाव जल्दी भर जाएगा.

चमत्कारी गुण

मुरांडू ने प्रयोगशाला में चीनी को लेकर प्रयोग किए थे. इसके अलावा दुनिया के कई और देशों में भी चीनी के ऐसे ही चमत्कारी गुण का तजुर्बा किया गया. ख़ास तौर से उन लोगों में, जिन पर एंटीबायोटिक का असर ख़त्म हो गया था. अब मुरांडू अपनी रिसर्च को आगे बढ़ाने के लिए फंड जुटा रहे हैं ताकि ग़रीबों तक इस आसान इलाज के फ़ायदे पहुंचाए जा सकें.
दिक़्क़त ये है कि बड़ी फ़ार्मा कंपनियां इस रिसर्च को बढ़ावा देने को तैयार नहीं. अगर लोग घाव भरने के लिए चीनी का प्रयोग करने लगे तो फिर उनकी महंगी एंटीबायोटिक दवाएं कौन लेगा?
मुरांडू घाव भरने के लिए जो चीनी इस्तेमाल करते हैं, वो दानेदार वही चीनी होती है जो आप चाय में डालते हैं या जो मिठाई में इस्तेमाल होती है. हां, डेमेरारा शुगर या ब्राउन शुगर घाव भरने में उतनी कारगर नहीं देखी गई. क्योंकि ये देखा गया कि जिन ज़ख्मों पर ब्राउन शुगर डाली गई, उसमें बैक्टीरिया की ग्रोथ धीमी तो हुई, मगर पूरी तरह ख़त्म नहीं हुई.

घावों पर चीनी की पट्टी

चीनी जख़्मों के इलाज के लिए कितनी कारगर है, इसके लिए मोज़ेज़ मुरांडू बोत्सवाना की एक मिसाल देते हैं. अफ़्रीकी देश बोत्सवाना की एक महिला के पैर का घाव पांच साल से नहीं भर रहा था. डॉक्टरों ने उसे काटने का फ़ैसला किया. ऑपरेशन से पहले उस महिला ने मुरांडू को चिट्ठी लिखकर अपनी तकलीफ़ बताई. मुरांडू ने उसे अपने घावों पर चीनी डालकर उस पर पट्टी बांधने की सलाह दी.
चीनी ने चमत्कार किया और उस महिला के घाव भर गए. उसके पांव काटने की ज़रूरत ही ख़त्म हो गई.
मुरांडू अब तक ब्रिटेन में 41 लोगों पर चीनी का चमत्कार आज़मा चुके हैं. उन्होंने कई इंटरनेशनल मेडिकल कॉन्फ्रेंस में अपना ये नुस्खा रखा है जिसे डॉक्टरों ने हाथो-हाथ लिया है. अच्छी बात ये है कि डायबिटीज़ के मरीज़ों को भी इससे फ़ायदा होता देखा गया है.
मुरांडू की ही तरह अमरीका में जानवरों की डॉक्टर मौरीन मैक्माइकल भी चीनी से घाव ठीक करती रही हैं. वो अमरीका के इलिनॉय यूनिवर्सिटी में जानवरों की डॉक्टरी करती हैं. मौरीन ने 2002 से ही चीनी से घाव भरने का नुस्खा आज़माना शुरू कर दिया था. सबसे पहले उन्होंने एक आवारा कुत्ते का इलाज इस तरीक़े से किया था.
उन्होंने देखा कि कुत्ते के घाव बड़ी जल्दी ठीक हो गए. इसके बाद मौरीन ने दूसरे जानवरों पर भी चीनी से ज़ख़्मों के इलाज का नुस्खा आज़माया. दूसरे जानवरों पर भी मौरीन की ये तरक़ीब कारगर रही.
मौरीन ने शहद डालकर भी घाव का इलाज किया है. हालांकि ये नुस्खा थोड़ा महंगा है.
ब्रिटेन की वैज्ञानिक शीला मैक्नील एक अलग ही रिसर्च कर रही हैं. वो कहती हैं कि क़ुदरती तरीक़े से बनी चीनी की मदद से हमारे शरीर की कोशिकाओं की ग्रोथ भी बढ़ाई जा सकती है. चीनी होने पर शरीर का विकास तेज़ी से होता है.

हालांकि शीला जिस क़ुदरती चीनी की बात कर रही हैं, फ़िलहाल वो हमारा शरीर ख़ुद ही बनाता है. उसे लैब में बनाने की उपलब्धि हासिल करने से इंसान अभी काफ़ी दूर है.
उधर, मोज़ेज़ मुरांडू अपनी एक निजी क्लिनिक खोलने की तैयारी कर रहे हैं जहां पर वो मरीज़ों का इलाज चीनी से ही करेंगे.
मुरांडू कहते हैं कि इलाज का ये तरीक़ा प्राचीन अफ़्रीकी नुस्खा है. अब ब्रिटेन में रिसर्च के बाद ये दोबारा उन ग़रीबों तक पहुंच रहा है.
यानी जैसे चीनी बनाने का कच्चा माल कभी विकासशील देशों से विकसित देशों तक आता था. उसी तरह इलाज का ये तरीक़ा भी ज़िम्बाब्वे से ब्रिटेन पहुंचा और अब ब्रिटेन से वापस ज़िम्बाब्वे निर्यात किया जा रहा है.

Article Source : BBC


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