डोंगरगढ,छतीसगढ,29 जून (शोभनाजैन/वीएनआई) मद्धम मद्धम मुस्कराती सी सुबह की किरणे चारो ओर मा्नो मुस्कराहट बिखेर रही है,एक दिव्य सा आभा मंडल पूरे वातावरण मे...मंत्रोच्चार और पूजा विधान की ध्वनि लहरियो से वातावरण गूंज रहा है और धूप अगरबत्तियो की पवित्र सुगंध ्मद्धम हवा के झोंको के साथ मिल कर माहौल ्को और भी सुगंधित पवित्रता से भर रही है.
श्वेत और केसरिया रंगो के पूजा वस्त्रो मे श्रद्धालु ्मंत्रोच्चार के साथ पूजा कर रहे है ठेठ छतीसगढी की मीठी बोली मे जैन विधि विधान से पू्जा चल रही है,श्रद्धालु ्पूरे मनोयोग से पूजा विधान मे हिस्सा ले रहे है,पूजा और भजनो के बीच रह रह कर वहा मौजूद श्रद्धालु 'आचार्य भगवन संत शिरोमणि आचार्य विद्द्यासागर की जय जयकार' के नारे लगा रहे है और अपने गुरू को पूजन द्र्व्य समर्पित कर रहे है लेकिन इस पूरे माहौल से बेखबर से एक शीर्ष आसन पर एक ्वीतरागी संत नीचे गर्दन किये समाधिस्थ मुद्रा मे चुपचाप बैठे है, बीच बीच मे उनके उंगलियो मे कुछ स्पंदन सा होता है,पूजा या ध्यान तप... लेकिन मुख मुद्रा नीचे ही रहती है.ऐसा लग रहा है वह इस माहौल मे रहते हुए भी समाधिस्थ है.एक ्बेखबर वीतरागी कुछ दूरी पर बैठे उनके संघस्थ मुनिगण भी साधना रत है. यह दृश्य है दार्शनिक , अप्रतिम तपस्वी जैन संत आचार्य विद्द्यासागर की दीक्षा के स्वर्ण ्जंयती समारोह के अवसर पर यहां मनाये जा रहे संयम स्वर्ण जयंती समारोह का जहा देश विदेश से आये हजारो श्रद्धालुओ का जन सैलाब इस अदभुत संत को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करने आये है.देश विदेश मे इस अवसर पर 28 जून से 30 जून तक समारोह मनाये जा रहे है. मुख्य समारोह यहा हो रहा है जहा अचार्य श्री ससंघ विराजमान है पंडित जी छतीसगढी बोली मे 'मोर गुरू'(मेरे गुरू) को कभी नारियल,कभी नैवेद्द्य,कभी दीपक और कभी पूजन सामग्री समर्पित कर रहे है,इसी मिठास भरी बोली मे पंडित जी कह रहे है'मोर गुरू के संयम तप के दीपक ने पूरे विश्व का अंधकार मिटा दियो'पंडाल मे बैठे एक श्रद्धालु बताते है" अदभुत तप है महाराज का, बीस साल से चीनी,नमक,दूध सभी का त्याग,जैन दिगंबर संत परंपरा के अनुसार बेहद नपी तुली आहारचर्या, जीवन पोषण के लिये आहार, तीन चार घंटे के लिये शयन वह भी एक करवट,जैन चर्या के अनुसार दिंगबर संत सर्दी गर्मी मे सिर्फ नंगे तख्त पर सोते है, तभी तो इन्हे चलते फिरते तीर्थ और आधुनिक युग के भगवान कहा जाता है.' एक और श्रद्धालु बता रहे है 'सिर्फ तप ही नही अध्ययन भी गहन है इनका, अनेक महाकाव्य,ग्रंथो की रचनाये की है इन्होने. इनके महाकाव्य 'मूक माटी" पर बीस से अधिक छात्र पी एच.डी कर चुके है, कुछ देर के प्रवचन के अलावा इनका पूरा समय अध्ययन,स्वाध्याय और साधना मे बीतता है और साधना भी ऐसी कि घोर तपस्वी भी आश्चर्य मे आ जाये.एक और श्रद्धालु बताते है महराज द्वारा लिखित जापानी हायकु पद्धति के क्षणिकाये बहुत ही सार्गर्भित होने के साथ बेहद लोकप्रिय है और समाज को संदेश देती है.वे समाजिक सौहार्द का संदेश लिये कुछ हायकु ऊद्धत करते है "वे -संघर्ष मे भी चंदन सम,सदा सुगंध बनू'य़ा फिर 'गर्व गला लो, गले लगा लो 'तेरी दो ऑ्खे तेरी और हजार सतर्क हो जा या फिर जोडो- बेजोड़ जोड़ो...वे बताते है आचार्यश्री समाज सुधारक होने के साथ जीव दया, स्वदेशी आंदोलन के ध्येय का पालन करते हुए हथकरघा को प्रोत्साहन देने के लिये भी सक्रियता से जुड़े है. वे बताते है आचार्यश्री के संघ मे उच्च शिक्षा प्राप्त, एम टेक, एम बी ए जैसे प्रोफेशनल्स जुड़े हुए है जो संसारिकता छोड़ आध्यात्म की दुनिया मे रच बस गये है. तभी पंडाल मे आस पास खड़े लोग तेजी से बैठने लगते है पलक झपकते ही शांत छा जाती है. बात समझ मे आ जाती है आचार्यश्री का प्रवचन शुरू हो गया... आध्यत्मिकता के साथ समाजिक संदेश' अगर नागरिक ्कर्तव्यविमुख हो तो राष्ट्र तरक्की नही कर सकता है,श्रद्धालुओ को अपव्यय नही करने, अंसयम से बचने के साथ व्यवस्था का पालन करने की सलाह.श्रद्धालु उनके प्रवचन का पालन कर रहे है व्यवस्था का उल्लघंन अपराध है,सभी शांत और दत्त चित्त हो कर प्रवचन सुन रहे है फिर
कुछ मुस्करते हुए आचार्यश्री दुनियादारी से जुड़े अपने श्रद्धालुओ को जी एस टी की धर्मिक व्याख्या समझाते है. 'जैन धार्मिक ग्रंथो मे जी का मतलब 'गोमतसार,एस का अर्थ समयसार और टी का अर्थ तत्वासार ग्रंथ .आचार्यश्री बता रहे है आपका जी एस टी तो अब शुरू हो रहा है लेकिन हमारा जी एस टी तो कभी का शुरू हो चुका है जहा अहिंसा परमो धर्म है. आचार्यश्री प्रवचन समाप्त कर रहे है. उद्घोषक की घोषणा के अनुसार श्रद्धालु आपने आसन पर बैठे रहते है और अनुशासन का परिचय देते हुए चाह कर भी आचार्श्री के पी्छे नही दौड़ते है, महराज अपने संघ के साथ पंक्ति बद्ध रूप मे प्रवचन स्थल से धीरे धीरे प्रस्थान ्कर रहे है .आचार्यश्री के नेतृत्व मे धीरे धीरे संघ के मुनि गण आगे बढते जा रहे है.सम्भवतः एक यात्रा अनंत की और...
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