सफेद कपड़ो मे लिपटी उदास ऑखो वाली विधवा्ये रंग बिरंगी रोशनियो मे नहाते ही अचानक खिल उठी

By Shobhna Jain | Posted on 29th Oct 2016 | VNI स्पेशल
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वृंदावन,29अक्टूबर ( शोभनाजैन/वीएनआई) यहा की साढ़े चार सौ वर्ष पुराने गोपीनाथ मंदिर की मुंडेर पर फैली सॉझ की सिंदूरी आभा को धीरे धीरे अंधियारा लीलता जा रहा है तभी वहा सफे्द कपड़ो मे लिपटी और हाथो मे मिट्टी के दीये लिये सैंकड़ो वृ्द्ध, जवान विधवाये मंदिर मे प्रवेश करती है,हर जगह दीये सजाती है और् पलक झपकते ही काला होता जा रहा अंधेरा गायब हो जाता है और पूरा माहौल रोशनी से नहा उढता है, इन मे से अनेक महिलाये सफेद कपड़ो के उपर रंग बिरंगी गोटेदार ओढनियॉ पहन लेती है, बूढे पोपले चेहरे वाली अनेक महिलाये फुलझड़ी जला कर हंसती ही जा रही है, सफेद कपड़ो मे लिपटी, उदास ऑखो से मंदिर पहुंची एक जवान विधवा का चेहरा रोशनी मे नहाते ही मुस्कराहट से भर उठता है.मंदिर मे हर और रोशनी ,फुल्झडियॉ, और हंसी के ठहाके गूंज रहे है. लगता है मंदिर के देवालय मे प्रतिष्ठित मूर्तियॉ भी मानो चारो और अपना आशीर्वाद बॉट रही है. दरअसल ये सभी महिलाये स्वैच्छिक संगठन सुलभ इंटरनेशनल की की पहल पर पहली बार इस प्राचीन मंदिर मे दिवाली मनाने के लिये एकत्रित हुई है.भारत में सदियों से चली आ रही वैध्व्य के सफेद रंगो को धता बताते हुए वृन्दावन व वाराणसी की करीब एक हजार विधवाओं ने साढ़े चार सौ वर्ष पुराने गोपीनाथ मंदिर में दीपावली का त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाया।इन विधवाओं ने पहली बार किसी मंदिर में एकत्र होकर दीपक जलाकर दीपों के त्यौहार का आनंद महसूस किया।मथुरा. वृन्दावन के गोपीनाथ मंदिर में गुरुवार को सुलभ इंटर नेशनल संस्था ने सैकड़ों विधवा महिलाओं के साथ 1100 दीप और हज़ारों फुलझड़ी जला कर रोशनी का पर्व दीपावली मनाई.यह इस श्रृंखला का चौथा वर्ष है जब वे दिवाली का त्यौहार मना रही हैं, लेकिन इस बार की दिवाली का महत्व भारतीय संस्कृति के केंद्र माने जाने वाले एक प्राचीन मंदिर में प्रकाशोत्सव मनाने का था। हाथों में दीपक लिए यमुना किनारे केशी घाट पर जब इन महिलाओ ने नदी के जल मे दीये प्रवाहित किये और दीपदान किया। तो पूरे माहौल मे दिव्य रोशनी व्याप्त हो गई और इस तरह सुलभ इण्टरनेशनल ने आज यहां के विभिन्न आश्रमों में प्रवास कर रही विधवाओं के साथ चार दिनी प्रकाश पर्व की शुरुआत की। ये वे महिलाये थी पति की मृत्यु के पश्चात हंसी-खुशी के इन त्यौहारों से समाज ने इनका अधिकार छीन लियी था लेकिन इन समाजिक बेड़ियो को तोड़ क़र खुद को महरुम कर दिए जाने की भारतीय परंपरा का धता बताते हुए एक-दूसरे के साथ खुशियां बांटकर अब वे बेहद प्रसन्न महसूस कर रही थीं। अपनों द्वारा ठुकराई गयीं ये विधवा महिलाएं, जो खुद की जिंदगी को भगवान के शरण में आकर गुजारने के लिए वृन्दावन आयीं और फिर यहां आकर लोगों के आगे हाथ फैलकर भीख मांग कर अपनी गुजर बसर कर रही थीं। सदियो ्से होते शोषण और विधवाओं के दुर्दशा के कई मामले सामने आने के बाद उच्चतम न्यालय ने इस क्षेत्र मे सुलभ की उत्कृष्ट सेवा को देखते हुए सुलभ से इस जिम्मेवारी को उठा लेने की बाबत पूछा और स्वयंसेवी संस्था सुलभ इंटरनेशनल से मिली खुशियों के कारण आज ये विधवा महिलाएं एक बार फिर जिंदगी को रंगीन खुश्गवार समझने लगी हैं।, तभई शायद आश्रम मे रहने वाली नब्बी वर्षीय मौनी मॉ कम से कम सौ बस तक तो जीना चाहती है. कहती है " जिंदगी जीना तो अब जाना' अव ये महिलाएं सभी महिलाओं की तरह खुलकर नाचती गाती हैं और अपने जीवन में आयी इन छोटी छोटी खुशियों को मिलने के वाद आज फूली नहीं समां रही हैं और सुलभ इंटर नेशनल के संस्थापक डॉ बिंदेश्वर पाठक एक पिता के समान चेहरे पर संतोष के भाव के साथ अब उनका परिवार बन चुकी इन महिलाओ की खुशियॉ बांट रहे थे.डॉ पाठक के अनुसार ' कभी ये सभी विधवा और असहाय महिलाएं थी, जिनके जिंदगी सिर्फ सफेद रंग बन कर रह गई थे रंग उन्की जिंदगी से कोसो दूर चले गये थे जो भूल ही गयी थीं कि शायद हमारी जिंदगी में कभी ऐसे ह्म्सते खेलते पल दोबारा लौटकर आयेंगे.' उन्होने कहा "हम इन विधवा महिलाओं के जीवन में खुशियों और उम्मीद की एक किरण लाने के लिए ही इस कार्यक्रम का आयोजन कर रहे हैं, इससे इनके जीवन पर लगा परित्यक्तता का दाग हमेशा के लिए मिट जाए और ये सब भी हमारे आपके समान ही जीवनयापन कर सकें और खुशियां मना सकें. इन विधवाओं कि जिंदगी को एक वार फिर पंख लगे है अव माँ दुर्गा कृषण भक्ति में रची ये विधवाएं भी होली के रंगों रंगती है सभी तीज त्यौहार मनाती है सुलभ उन्हे तीर्थ कराता है कुंभ स्नान करवाता है अपनी जिंदगी को भरपूर जीने की कोशिश में लगी अब वे पीछे नहीं रहीं। सुलभ का यह प्रयास निश्चय ही समाज के लिये सीख है...वी एन आई

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