पटना 24 सितंबर (वीएनआई) बिहार विधानसभा चुनाव में तीन प्रमुख नेताओं के दामाद उनसे चुनावी जंग लड़ने के लिये कमर कस कर बैठ गये हैं, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के मुख्य घटक दल लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के अध्यक्ष रामविलास पासवान और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के प्रमुख जीतन राम मांझी के दामाद अनिल कुमार साधु उनके खिलाफ चुनावी मैदान मे उतर गये हैं दूसरी तरफ राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के सबसे छोटे दामाद और समाजवादी पार्टी के मैनपुरी से सांसद तेजप्रताप यादव बिहार में अपने ससुर लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाले एलायंस के खिलाफ अपनी पार्टी का प्रचार करने आ रहे हैं, गौरतलब है कि तेजप्रताप यादव मुलायम सिंह के पोते हैं उम्मीद की जा रही है कि तेजप्रताप को बिहार चुनाव में स्टार प्रचारक बनाया जा सकता है
लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान के दामाद अनिल कुमार साधु को पार्टी का उम्मीदवार नहीं बनाए जाने के कारण बागी हो चुके हैं। बागी होने के बाद अनिल ने सभी लोजपा उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ प्रचार करने का ऐलान किया था। उन्होने कहा कि रामविलास पासवान धृतराष्ट्र बन गये हैं और पुत्र मोह मे उन्हे कुछ दिखाई नही दे रहा, वो अच्छे वर्कर को नहीं पहचानते, वो उनको पहचानते हैं जो उनका जूता साफ करता हो. साधु ने रामविलास के बेटे और लोजपा सांसद चिराग पासवान पर निशाना साधते हुए कहा, "चिराग अहंकार में डूबे हुए हैं। वह बिहार के बेटे नहीं, फ्लॉप 'हीरो' हैं।" कहा जाता है कि साधु कुटुंबा सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन मांझी के बेटे संतोष कुमार सुमन को वहां से टिकट दे दिया गया। उल्लेखनीय है कि लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के सुप्रीमो रामविलास पासवान ने दामाद अनिल कुमार साधु को गत रविवार को पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया तथा दलित सेना की प्रदेश इकाई को भी भंग कर दिया, साधु लोजपा संसदीय वोर्ड के सदस्य और दलित सेना के प्रदेश अधयक्ष भी थे।फिलहाल अनिल ने सांसद राजेश रंजन पप्पू यादव के नेतृत्व वाली जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) का दामन थाम लिया है।
जीतनराम मांझी के दामाद देवेंद्र मांझी भी बागी हो चले हैं उन्होने कहा कि मैं पहले भी चुनाव लड़ चुका हूं लेकिन इस बार टिकट नहीं मिलने कारण निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में बोधगया से चुनाव लडूंगा। उनके अनुसार हालाकि कि उन्होने जीतनराम मांझी से टिकट नही मांगा था पर बात समझने की है। वह कहते हैं कि वह 1995 से राजनीति में हैं, फिर भी उन्हें टिकट नहीं दिया गया उनकी भी कुछ तमन्ना है। गौरतलब है कि देवेंद्र तब चर्चा में आए थे जब वे मांझी के मुख्यमंत्री रहते उनके निजी सहायक थे। इस विवाद के चलते उन्हें सचिव पद से इस्तीफा देना पड़ा था। जीतनराम मांझी ने सफाई देते हुए कहा कि 'पगला जाता है तो क्या किया जाये'.