डिप्रेशन से बचने के लिये करे-भ्रामरी प्राणायाम

By Shobhna Jain | Posted on 19th Jun 2015 | VNI स्पेशल
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नई दिल्ली 19 जून अनुपमा जैन (वीएनआई) भाग-दौड़ की जिन्दगी में तनाव जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। चाहे वह छोटा बच्चा हो या फिर कोई बड़ा बुजुर्ग हर कोई आज तनाव में जी रहा है और कभी चाहे थोड़े समय के लिये ्ही सही उसे डिप्रेशन हो ही जाता है । इसलिये अगर आप डिप्रेशन और तनाव मुक्त होना चाहते हैं तो भ्रामरी प्राणयाम करें। इस योग से तनाव कम होता है और बुद्धि तेज होती है। स्‍कूल जाते बच्‍चों के लिये यह स्मरण शक्ति को बढ़ाने का कार्य करता है। अगर रात को नींद नहीं आती या हमेशा थकान महसूस होती है तो नींद की दवाई के स्थान पर जगह पर इस प्राणायाम को करने से लाभ होता है। विधि- सुखासन, सिद्धासन या पद्मासन में बैठकर सर्वप्रथम दोनों होथों की अंगुलियों में से अनामिका अंगुली से नाक के दोनों छिद्रों को हल्का सा दबाकर रखें। तर्जनी को पाल पर, मध्यमा को आंखों पर, सबसे छोटी अंगुली को होठ पर और अंगुठे से दोनों कानों के छिद्रों का बंद कर दें। फिर श्वास को धीमी गति से गहरा खींचकर अंदर कुछ देर रोककर रखें और फिर उसे धीरे-धीरे आवाज करते हुए नाक के दोनों छिद्रों से निकालें। ‍श्वास छोड़ते वक्त अनामिका अंगुली से नाक के छिद्रों को हल्का सा दबाएं जिससे कंपन उत्पन्न होगा। जोर से पूरक (श्वास अंदर लेना) करते समय भवरें जैसी गुंजन करते करें फिर रेचक (श्वास बाहर छोड़ना)करते समय भी भंवरी जैसी आवाज उत्पन्न होना चाहिए। इस आसन को सुबह और शाम पांच बार नियम से करना चाहिये और फिर धीरे-धीरे इसकी संख्या बढ़ाते जाइये। सावधानी- भ्रामरी प्राणायाम को लेटकर नहीं किया जाता। नाक या कानों में किसी प्रकार का संक्रमण होने कि स्थिति में यह अभ्यास ना करें। इसके लाभ- इसे करने से मन शांत होकर तनाव दूर होता है। इस ध्वनि के कारण मन इस ध्वनि के साथ बंध सा जाता है, जिससे मन की चंचलता समाप्त होकर एकाग्रता बढ़ने लगती है। यह मस्तिष्क के अन्य रोगों में भी लाभदायक है। इसके अलावा यदि किसी योग शिक्षक से इसकी प्रक्रिया ठीक से सीखकर करते हैं तो इससे हृदय और फेफड़े सशक्त बनते हैं। उच्च-रक्तचाप सामान्य होता है। हकलाहट तथा तुतलाहट भी इसके नियमित अभ्यास से दूर होती है। योगाचार्यों अनुसार पर्किन्सन, लकवा, इत्यादि स्नायुओं से संबंधी सभी रोगों में भी लाभ पाया जा सकता है।

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