'धरती को जीने लायक बेहतर कैसे बनाया जाये'कहते हुए अंतिम विदा ली कलाम ने

By Shobhna Jain | Posted on 28th Jul 2015 | VNI स्पेशल
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नई दिल्ली,28 जुलाई (शोभनाजैन,वीएनआई) 'धरती को जीने लायक बेहतर कैसे बनाया जाये', ज्ञान बॉटने की अमिट प्यास लिये पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम इसी मिशम मे जुटे रहे और यही आखिरी शब्द थे जो उन्होने कल शिलॉग मे आई आई एम शिक्षा संस्थान के छात्रो को संबोधित करते हुए कही.कल उन्होने शिलॉग केलिये रवाना होने से पूर्व ट्वीट कर कहा 'आइआइएम शिलांग जा रहा हूं...वहां लिवेवल प्लेनेट (धरती को जीने लायक बेहतर कैसे बनाया जाये )विषय पर व्याख्यान दूंगा.'अखबार बेचने से शुरूआत से ले कर राष्ट्रपति तक का सफर तय करने वाले कलाम जीवन भर अति उतसाह से सभी मे विशेष तौर पर युवाओ मे ज्ञान बॉटते रहे, और उन्होने अपनी देह भी छात्रो के साथ ज्ञान बॉटते हुए छात्रो को लेकचर देते हुए ही त्यागी. सरल और उदार व्यतित्व के स्वामी कलाम जीवन के अंतिम क्षणों में भी सक्रिय रहें. आइआइएम शिलांग में ्कल देर शाम लेक्चर देने के दौरान उनकी तबीयत बिगड़ गयी. बाद मे शिलांग के अस्पताल में ही उनका निधन हो गया . उनका निधन खास तौर पर छात्रो के लिये यह उनके गुरू की मौत है, जो ज्ञान बॉटने को लेकर अति उतसाहित रहता था.अक्सर वे छात्रो को संबोधित करने के बाद प्रोटोकोल के तमाम दायरे दरकिनार कर उनके बीच पहुंच जाते थे .डॉ कलाम सदैव ही प्रेरणादायी शब्द से छात्रों को संबोधित करते रहते थे सभी के लिये उनका गुरू मंत्र था 'सपने वो नहीं होते जो रात को सोने समय नींद में आये, सपनें वो होते हैं जो रातों में सोने नहीं देते'.एपीजे अब्दुल कलाम ने विंग्स ऑफ फायर, इग्नाइटेड माइंड्स, इंडिया 2020 जैसी कई मशहूर और प्रेरणा देने वाली किताबें लिखी हैं. जो खासकर छात्रों को प्रेरित करती रही. उन्हें 'मिसाइल मैन' के नाम से भी जाना जाता था. देश के मिसाएल कार्यक्रम और परमाणु कार्यक्रम मे उनकी अहम भूमिका रही . अब्दुल कलाम को पीपल्स प्रेजिंडेट भी कहा जाता था उनका मानना था कि 'इंतजार करने वालों को सिर्फ उतना ही मिलता है, जितना कोशिश करने वाले छोड़ देते हैं'. उनके निधन से पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गयी है. प्रधानमंत्री राष्ट्रपति ने उनके निधन पर शोक जताया है, एक साधारण परिवार में 15 अक्टूबर 1931 को धनुषकोडी गाँव (रामेश्वरम, तमिलनाडु) में एक मध्यमवर्ग मुस्लिम परिवार में इनका जन्म हुआ. सुबह चार बजे उठ कर अखबार बेचने के साथ साथ छात्र वृति से उन्होने अपनी पठाई पूरी की. अपनी मेहनत और बुद्धिमता से ना सिर्फ विज्ञान के क्षेत्र में प्रसिद्धि हासिल की और भारत के राष्ट्रपति पद तक का सफर तय किया . 1963 में कलाम भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान, इसरो से जुड़े और यहां भी भारत की ताकत को बढ़ाने में अपना योगदान दिया. सैटेलाइट लॉन्च वेहिकल यानी SLV के प्रॉजेक्ट मिशन से जुड़े. अब्दुल कलाम को मिसाइल मैन के नाम से जाना जाता है उन्होंने अपनी मेहनत और क्षमता के दम पर भारत को वो शक्ति दी जिससे भारत अपनी धाक दुनिया के सामने जमा सका. 1982 में कलाम रक्षा अनुसंधान विकास संगठन, DRDO से जुड़े और उनके नेतृत्व में ही भारत ने नाग, पृथ्वी, आकाश, त्रिशूल और अग्नि जैसे मिसाइल विकसित किए. उनकी सेवाओ के लिये उन्हे राष्ट्रपति बनने से पूर्व ही डॉ कलाम को 1977 में सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था. वर्ष 2002 से 2007 के बीच डॉ कलाम, भारत के 11 वें राष्ट्रपति रहे. डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की शिक्षा रामेश्वर के पंचायत प्राथमिक विद्यालय से शुरु हुई थी अब्दुल कलाम ने अपनी आरंभिक शिक्षा जारी रखने के लिए अख़बार बांटने का भी काम किया. कलाम ने 1958 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलजी से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी. स्नातक होने के बाद उन्होंने हावरक्राफ्ट परियोजना पर काम करने के लिये भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया. डॉ एपीजे अब्दुल कलाम अपने जीवन को बहुत अनुशासन में जीना पसंद करते थे.डो कलाम अविवाहित थे , शाकाहारी डॉ कलाम की जीवन चर्या बेहद सादा थी. थे. कहा जाता है कि वह कुरान और भगवद् गीता दोनों का अध्ययन करते थे और उनकी गुढ बातों पर अमल किया करते थे. उ. उन्होने अपने बचपन की चर्चा करते हुए एक बार लिखा था उनका घर मस्जिद वाली गली मे था , कुरान पढने के साथ साथ शाम् को अपने घर आते वक्त मंदिरो के पास से गुजरते थे वहा उन्हे संस्कृत मे होते मंत्रोच्चार की धवनि बेहद मधुर और रूहानी लगती थी. छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने ऐसे संदेश दिए जिससे लोगों को प्रेरणा मिली. अब्दुल कलाम भारत को और मजबूत करना चाहते थे उनकी इच्छा थी कि भारत ज्यादा से ज्याद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाये. उनका ध्येय था २०२२ तक भारत को एक मजबूत राष्ट्र की श्रेणी मे लाना.इस सपने से उन्होने विशेष तौर पर युवाओ को जोड़ा ्पूरा जीवन बेहद सादगी से रहने वा्ले पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने जीवन के सबसे बड़े अफसोस का था कि वह अपने माता पिता को उनके जीवनकाल में 24 घंटे बिजली उपलब्ध नहीं करा सके. उन्होंने कहा था कि मेरे पिता (जैनुलाब्दीन) 103 साल तक जीवित रहे और मां (आशियाम्मा) 93 साल तक जीवित रहीं. घर में सबसे छोटा होने के कारण कलाम को घर में ज्यादा प्यार मिला. उनके घर में लालटेन से रोशनी होती थी और वह भी शाम को सात बजे से लेकर रात नौ बजे तक. उनकी मां को कलाम की प्रतिभा पर भरोसा था इसलिए वह कलाम की पढ़ाई के लिए एक स्पेशल लैंप देती थी जो रात तक पढ़ाई करने में कलाम की मदद करता था, लेकिन मॉ बाप के लिये उनकी यह ख्वाहिश पूरी नही हो पाई. बरसो से उनके सलाहकार् रहे सृजन पाल सिंह ने अपनी फेस बुक पर आज डॉ कलाम के साथ अपनी स्मृतियो को सझा करते हुए अपनी फेस बुक पर अंतिम विदा को ले कुछ दिन पूर्व उन्के विचारो की बाबत लिखा. डॉ कलाम के अंतिम विदा के बारे मेराय थी ' अंतिम विदा संक्षिप्त, बहुत संक्षिप्त होनी चाहिये'वी एन आई

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