नई दिल्ली 8 दिसम्बर (वीएनआई) बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर लगातार हो रहे उत्पीड़न के चलते भारत बांग्लादेश के रिश्ते और भी तल्ख होते जा रहे हैं विदेश सचिव विक्रम मिस्री इसी बीच दोनों देशों के बीच विदेश मंत्रालय स्तर की नियमित बातचीत के लिए कल ढाका जा रहे हैं उम्मीद है इस दौरान इस विषय पर भी भारत अपनी चिंताएं जाहिर करेगी
्विचारणीय है कि कुछ समय पूर्व भारत के साथ प्रगाढ संबंध वाले बंगलादेश में हाल में शेख हसीना की सरकार के तख्तापलट और युनूस सरकार के सत्तारूढ होने के बाद से वहा भारत विरोधी तौर तरीकों विशेष तौर पर हिंदू अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के चलते लगा्तार बिगड़तें जा रहे हैं.भारत वहा अल्पसंखयकों विशेष तौर पर हिंदू अल्पसंख्यकों ्के उत्पीड़न पर लगातार चिंता जताता रहा हैं. जैसा कि भारत बंगलादेश देश अनेक मर्तबा उतार चढाव के दौर से गुजरते रहे हैं लेकिन कुल मिला कर रिश्ते दोस्ताना ही रहें, लेकिन अगर हाल के कुछ वर्षों विशेष तौर पर शेख़ हसीना के कार्यकाल समय दोनों देशों के संबंधों को नयी गति मिली, विभिन्न क्षेत्रों मे द्विपक्षीय सहयोग बढा अलबत्ता तीस्ता नदी, फेनी नदी समेत सीमा पार नदी के जल बंटवारे, अवैध प्रवास, नशीले पदार्थों की तस्करी और बांग्लादेश पर चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए चिंता की बात रही थी. लेकिन गत अगस्त में शेख हसीना सरकार के तख्ता पलट और मोहम्मद युनूस के नेतृत्व मे अंतरिम सरकार के बनने के बाद भारत-बांग्लादेश के संबंधों में कड़वाहट शुरू हुई और पिछलें दिनों वहा हिदू अल्पसंखयकों के उपीड़न , उन के घरों ,ठिकानें मंदिरों पर बढतें हमलों और आगजनी की घटनाओं के बीच हाल ही में वहा इस्कॉन के प्रमुख नेता चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ़्तारी के बाद दोनों देशों के बीच तनातनी काफी बढ गयी है और भारत कूटनीतिक स्तर पर हिंदुओं पर हो रहे इन हमलों पर गहरी चिंता जताता रहा हैं.भारत की तरफ़ से लगातार कहा गया कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार को सभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर अपनी ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए.
बंगलादेश के अनेक नेता भी भारत पर हसीना समर्थक होने का आरोप लगा्ते रहे हैं,आज स्थति यह हैं कि बंगलादेश को पाकिस्तान के दमन चक्र से मुक्ति दिलाने मे मुख्य भूमिका निभाने वाले भारत के साथ संबंध बेहद तनावपूर्ण दौर में पहुंच चुके हैं.आखिर भारत का बेहद करीबी रहा बंगलादेश के साथ रिश्तें कब फिर से उसी मुकाम पर कब पहुंचेंगे, रिश्तों मे ये तल्खियां कब खत्म होंगी. लगता तो यही हैं कि जब तक वहां चुनाव नहीं होते और नयी सरकार कैसी बनती हैं उस में कैसे तत्व हावी होती हैं, संबंध सामान्य नजर नहीं आते हैं
बंगलादेश मामलों के एक विशेषज्ञ के अनुसार चुनाव से पहले भारत पर इसी तरह के आरोप लगायें जातें रहेंगे, क्योंकि इससे हर राजनीतिक दल को फायदा हो रहा है. युनूस ने कल ही राजनैतिक दलों के साथ एक बैठक की जिस का विषय " देश के खिलाफ आक्रमण को रोकने पर चर्चा की . अहम बात यह हैं कि इस बैठक में हसीना की अवामी पार्टी और उस के सहयोगी दलों को फासिस्ट बताते हुयें नहीं बुलाया गया. उधर शेखशसीना ने कल देश छोड़ने के बाद अपने पहले सार्वजनिक बया न में युनूस पर वहा हिंदुओं सहित अल्पसंख्यकों की रक्षा नहीं करने का आरोप लगाते हुयें जनसंहार का आरोप लगाया हैं. अंतरिम सरकार के आने के बाद से बांग्लादेश के खिलाफ भारत के अलग-अलग हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए हैं राजनैतिक दल वहा लगातार देश में जल्द चुनाव करा कर नयी स्थाई सरकार का गठन किया जाने पर जोर दे रहे हैं . लेकिन कुल मिला कर स्थिति यह हैं कि वहा कोई ऐसा राजनीतिक दल या गुट ऐसा नहीं है, जो भारत का सकारात्मक पक्ष सामने रख सकें.
गौरतलब हैं कि सेना ने गत अगस्त ्में हसीना को देश छोड़ने के लिए कहा. किसी भी पश्चिमी सरकार ने उन्हें शरण देने की पेशकश नहीं की, फिलहाल वे नई दिल्ली में ही रह रही हैं. शेख हसीना भारत को प्रमुख पड़ोसी, भरोसेमंद दोस्त और क्षेत्रीय साझेदार मानती रही है.
सत्ता में आने के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने शेख हसीना के फ़ैसलों को पलटना शुरू किया और महीने भर के भीतर जमात-ए-इस्लामी पर लगी पाबंदी हटा दी.जमात-ए-इस्लामी देश की सबसे बड़ी इस्लामी पार्टी है और इसकी छवि भारत विरोधी रही है शेख हसीना इस आतंकवादी संगठन बताती थीं.
भारत और बांग्लादेश चार हज़ार किलोमीटर से ज़्यादा लंबी सीमा साझा करते हैं और दोनों के बीच गहरे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रिश्ते हैं.बांग्ला देश की सीमा भारत और म्यांमार से लगती है लेकिन उसकी 94 प्रतिशतसीमा भारत से ल गती है. बीते कुछ सालों में बांग्लादेश, भारत के लिए एक बड़ा बाज़ार बनकर उभरा है. दक्षिण एशिया में बांग्लादेश भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है और भारत एशिया में बांग्लादेश का दूसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है.साल 2022-23 में बांग्लादेश भारत का पांचवां सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार बन गया. वित्त वर्ष 2022-23 में दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार 15.9 अरब डॉलर का था.
बहरहाल बेहद तनावपूर्ण आंतरिक असंतोष से गुजर रहें बंगला देश में अल्पसंख्यकों का जिस तरह से उत्पीड़न किया जा रहा है, उस से ना केवल भारत बल्कि इंगलेंड ने भी कूटनीतिक स्तर पर गहरी चिंता जताई हैं. उम्मीद की जानी चाहिये कि ना ना केवल युनूस सरकार बल्कि वहा आम चुनाव के बाद बनने वाली नयी सरकार दोनों देशों की जनता के बीच अपनेपन से भरी गहरे भावनात्मक, समाजिक रिश्तों के साथ द्विपक्षीय सहयोग की महत्ता समझेगी. देखना होगा कि चुनावों तक क्या रिश्तों मे तल्खियॉ यूं ही जारी रहेगी और फिर चुनावों के बाद नयी सरकार भारत के साथ सकारात्मक सोच के साथ कैसे रिश्तें रखती हैं. समाप्त
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