जयपुर, 04 जुलाई (अनुपमाजैन,वीएनआई) स्थानीय परिवार मे विवाह का माहौल, फूलो, रंग बिरंगी झंडियो से सजी हवेली का ऑगन, जमीन पर पंक्तियो मे बैठ कर मेहमा्न भोजन-जीमण- कर रहे है, पकवानो की खुश्बू से पूरा माहौल महक रहा है, रंगबिरंगी पगड़ियॉ पहने राजस्थानी वेश भूषा मे सजे संवरे पुरूष खाना परोस रहे है, सामने राजस्थानी वेश भूषा मे सजी संवरी महिलाये खाने की व्याख्या करने वाले लोक गीत गा रही है ‘दाल बाटी खाजा, म्हारो भाइ दिल्ली रो राजा डंका चौथ भादूड़ो, ल्याये माइ लाडूड़ो, लाडूड़ा में घी घणों माँ बेटा में जीव घणो\' राजस्थान मे सिर्फ महल,हवेली,रेगिस्तान ही नही,दाल,बाटी,चूरमा, कैर, गट्टे की सब्जी जैसे ठेठ राजस्थानी व्यंजन भी न/ न केवल भारतीय बल्कि विदेशी सैलानी खून चटखारे ले कर खा रहे है. प्रदेश के आंचलिक खान-पान की बात करे तो राजस्थानी व्यंजनों के कद्र दान ने न/ न केवल् देश मे हर तरफ बल्कि देश की सीमाओं के बाहर भी बड़ी तादाद मे है,हैऑकड़ो के अनुसार देश में आने वाला हर तीसरा विदेशी पर्यटक राजस्थान को देखे बिना अपने देश वापस नहीं लौटता. राजस्थान की ‘दाल-बाटी और चूरमा’ जैसे व्यंजनो के लिये देश के महानगरो मे कद्र दान ‘राजस्थानी फूड कोर्ट’ ढूंढते नजर आते है। जयपुर की ‘‘चौखी घाणी’’ और नई दिल्ली में ‘दिल्ली-हाट’ ऐसे स्थान है जहां राजस्थानी जायके का स्वाद लेने वालो की भीड़ हमेशा बनी रहती है। राजस्थान के दाल-बाटी-चूरमा के साथ ही लहसुन की तीखी चटनी, बेसन के गट्टे और कैर सांगरी की सहजी, मक्की की रोटी और गुड़, बाजरे की रोटी और खिचड़ी, मूंग की दाल का हलवा, मावे की कचोरियों के साथ ही मावे, दाल और प्याज की कचौरियाँ, मिर्ची बड़े, बेजर पूरी, राजस्थानी कड़ी, भाँति-भाँति के पापड़, और अचार, केसर से सुंगधित गरमागरम जलेबियॉ, रबड़ी, बीकानेरी रसगुल्ले, भुजिया-नमकीन, कांजी-बडा आदि ऐसे राजस्थानी व्यंजन है जिनका स्वाद शायद जबान पर ठहर सा जाता हौ। सामिष (नॉन वेजिटेरियन्स) के लिए तो राजस्थान के ‘लाल-मांस’ अपनी खास पहचान बना चुका है। राजस्थान का दूसरी बार भ्रमण करने इंगलेंड से भारत आयी जिनी का कहना है\' पहली बार यहा आने पर मुझे राजस्थानी व्यंजन भाये तो बहुत लेकिन तीखी भी लगे, लेकिन धीरे धीरे , तीखापन मीठा सब कुछ मुझे इस भोजन की खासियत लगने लगा, थाली मे बैठ कर जीमंण मुझे बेहद दिलकश लगता है और व्यंजनो के साथ बाजरे, जौ की रोटी जैसे खास खाने तो स्वास्थवर्द्धक भी है, इस ट्रिप मे तो मै सोच कर आयी हूं राजस्थान मे सिर्फ खास राजस्थानी भोजन\' इसी तरह दिल्ली के एक फूड कोर्ट मे राजस्थान स्टॉल पर राजस्थानी थाली खाता केरल का परिवार भी राजस्थानी व्यंजन स्वाद से खाते देख विभिन्नता मे एकता और सौहार्द का जीवंत प्रतीक था. शायद यही वजह है कि न/न केवल देश के सुदूरवर्ती स्थानो के साथ अनेक देशो मे आज राजस्थानी पकवानो के ऑउट्लेट खूब है. राजस्थान् मे बीकानेर की भुजिया-नमकीन, पापड़, मिठाईयाँ, रसगुल्ले, गुलाब जामुन और अलवर के मावे आदि का विदेशों में भी निर्यात हो रहा है। देश-विदेश के प्रमुख शहरो में ‘राजस्थानी नमकीन’ और ‘मिठाई भंडारों’ की धूम है और इसमें जुड़े प्रतिष्ठानों ने अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति अर्जित कर ली है। अजमेर जिले के ‘ब्यावर की तिलपट्टी’व ‘गजक’ और तिल से बनाये जाने वाले अन्य व्यंजनों ने भी देश-विदेश में अपनी ‘धाक’ जमाई है। इसी प्रकार बांसवाड़ा डूंगरपुर क्षेत्रा की ‘मावा-बाटी’ व ‘दूध-पानियाँ’, भूट्टे से बनने वाले तरह-तरह के व्यंजन विशेषकर भूट्टे का हलवा ‘जाजरियाँ’ का अनूठा स्वाद , हरे चने का हलुवा, सब्जी पकोडियॉं आदि जैसे राजस्थानी व्यंजन बड़े बड़े होटलो के साथ सामान्य ढाबे मे भी लोगो को लुभा रहे है राजधानी स्थित राजस्थान सूचना केन्द्र के प्रभारी और अतिरिक्त निदेशक गोपेन्द्र नाथ भट्ट के अनुसार राजस्थान की रंग बिरंगी संस्कृति का देश-दुनियाँ में काफी प्रचार-प्रसार हुआ है, इसका विशेष खान पान भी अपनी अलग पहचान बना चुका है और इसके कद्र दानो की संख्या तेजी से बढ रही है\' विभिन्न अंचलों में बटे मेवाड़-मारवाड़, बीकाणां, शेखावटी, ढूंठाड, मेवात, ब्रज, हाडौती, वागड़ अचंल के खान-पान के अपनी विशिष्टताएं है। राजस्थान में मौसम, तीज और त्यौहारों के अनुरूप खान-पान की विभिन्नताएं खाने-पीने के जायके में एक अलग ही तड़का लगाने वाली है। जयपुर में ‘तीज’ और ‘गणगौर’ त्यौहारों पर परम्परागत ढंग से शाही सवारियाँ निकलती है जिसे देखने के लिए देश-विदेश के सैलानी उमड पड़ते है, लेकिन इसके साथ ही सैलानी इस मौसम मे खास तौर पर बनने वाले मिष्ठान घेवर के भी दीवाने बन् जाते है और स्थानीय दूकाने इस जायके का लुत्फ उठाने वाले मुरीदो से भरी रहती है इन त्यौहारों पर जयपुर की प्रसिद्ध मिठाई ‘घेवर’ के चर्चे देश-विदेश तक होते है। इन दिनों भॉति-भॉति के ‘घेवर’ बनने लगे है जो कि विशेष मेहमान नवाजी का सबब बनते है। श्री भट्ट के अनुसार दिल्ली-हाट में पिछले वर्षो भूट्टा फेस्टीवल का आयोजन हुआ था जिसमें भूट्टे के विविध व्यंजनों को सैलानियों ने मुक्त कंठ से प्रंशसा की थी। इसी प्रकार मक्के के आटे से बनने वाला नमकीन हलुवा जिसे मेवाड़-वागड़ क्षेत्रा में ‘घेरियाँ’ अथवा ‘पीढ़ियॉ’ कहते है, भी स्वाद मेें किसी से कम नही है। इसी प्रकार मेवाड़ में चावल और ‘मक्की की राब’ जो छाछ मिला कर बनाई जाती है और मनुहार के साथ मेहमानों को परोसी जाती है। इसका स्वाद हमेशा लोगों को तरो ताजा बनायें रखता है। रबड़ी के मालपुएं, प्रतापगढ़ में आम से बनने वाली मिठाई ‘आम-पाक’ और ‘आम-पापड़’ लोगों को इसके स्वाद का लट्टू बनाने वाले है। यहां के मसालों में ‘‘जीरा लूण’’ और हींग की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है। राजस्थान के लोक गीतों में भी राजस्थानी व्यंजनों की खूबसूरत ढंग से व्याख्या की गई है और महिलाएं शादी-ब्याह, तीज-त्यौहारों पर मधुर कंठो में इन्हें गाकर सभी को मंत्रमुग्ध करती है। शादी के घर मे मेहमान जीमण खतम कर रहे है. महिलाये उन्हे और खाने का मनुहार करती गा रही है ‘बाजरा का रोटी ताती-ताती खावण ने ग्वार फली का साग ढ़ोला, लूंदो ऊपर लेवण ने टीबड़े पे आपां, जीमस्यां, खूब डटके।’ वी एन आई
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