पैरा तीरंदाज -पायल नाग की पहचान,हौसलों की उड़ान

By VNI India | Posted on 25th Mar 2025 | खेल
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नई दिल्ली  25 मार्च (वीएनआई)  ओडिशा के बालंगीर के अनाथालय की 17 वर्षीय पैरा तीरंदाज पायल नाग ने 2015 में बिजली के करंट लगने की दुर्घटना के कारण अपने हाथ और पैर ्गंवा दिए थे पर अब पायल नाग... बिना हाथ-पैर की दुनिया की पहली तीरंदाज जब कृत्रिम पैर में धनुष को फंसाकर दाहिने कंधे से तीर को खींचकर निशाना साधती हैं, तो उनकी प्रतिभा व हौसले को देख लोग आश्चर्य में पड़ जाते हैं। एक दशक पहले उसके जीवन में जो दुखद मोड़ आया, उसके बावजूद वह हमेशा खुश रहती है और धनुष और तीर के साथ बाधाओं को पार करने का आनंद लेती है। 

यह कहानी केवल संघर्ष और आत्मबल की नहीं, बल्कि अदम्य साहस की मिसाल भी है।  पायल नाग ने जीवन की कठिनाइयों को परास्त कर ऐसा मुकाम हासिल किया है, जिसकी मिसाल दी जाएगी। हालांकि  दिल्ली में खुले आसमान के नीचे इस रविवार को जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में खेलो इंडिया पैरा गेम्स में मौजूदा चैंपियन शीतल देवी ने पायल नाग  को कंपाउंड तीरंदाजी ओपन फाइनल मुकाबले में 109-103 से  हराकर स्वर्ण पदक हासिल ्किया पर पायल ने इस साल जयपुर में आयोजित पैरा-आर्चरी राष्ट्रीय चैंपियनशिप में भाग लिया, जो उनका तीसरा टूर्नामेंट था, इसमें उन्होंने अपने ही आदर्श शीतल देवी को हराकर स्वर्ण पदक जीता। यह उनकी पहली राष्ट्रीय जीत थी।

गौरतलब है कि पायल का जीवन बचपन में ही एक हादसे से बदल गया जब बिजली के करंट ने उनके दोनों हाथ और पैर छीन लिए। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर थी कि वे उनका पालन-पोषण करने में असमर्थ थे। ऐसे में, उन्होंने पायल को एक अनाथालय में छोड़ दिया, जहाँ वे उम्मीद करते थे कि उसे बेहतर देखभाल मिलेगी।

लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। एक ट्वीट के माध्यम से उनकी मदद की गुहार देशभर में गूँज उठी। इस ट्वीट को पैरालंपिक कांस्य पदक विजेता शीतल देवी के कोच कुलदीप वेदवान ने देखा। वेदवान ने बिना देर किए बलांगीर की यात्रा की और वहाँ से पायल को अपने साथ कटरा स्थित माता वैष्णो देवी श्राइन तीरंदाजी अकादमी ले आए। उन्होंने पायल को प्रशिक्षित करने का संकल्प लिया और उन्हें पैरा-आर्चरी में करियर बनाने के लिए प्रेरित किया।

पायल के लिए यह सफर आसान नहीं था। उन्होंने पहले कभी तीरंदाजी के बारे में सुना भी नहीं था। लेकिन जब वेदवान ने उन्हें शीतल देवी के वीडियो दिखाए, तो पायल को भी विश्वास हुआ कि वह इस खेल में कुछ कर सकती हैं। उनके भीतर एक नया जोश और आत्मविश्वास जाग उठा।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पायलसिर्फ़ दो साल पहले तीरंदाजी से जुड़ी हैं, ्पायल के अनुसार, "खेलो इंडिया में यह मेरा पहला मौका है। इसलिए, मैं इतने सारे लोगों के सामने प्रतिस्पर्धा करते हुए नर्वस महसूस कर रही थी। लेकिन जब मैंने खेलना शुरू किया तो अच्छा लगा। मैंने पहले भी शीतल को एक बार हराया है। इसलिए मुझे डर नहीं लगा। मैं पूरे आत्मविश्वास के साथ खेल रही थी ।

इससे पहले पायल ने अपने मुंह की सहायता से पेंटिंग करना भी सीखा था और अनाथालय में अपने इस हुनर से स्केच बनाती थीं। उनके कोच कहते हैं कि पायल एक अत्यंत प्रतिभाशाली बच्ची हैं, जो अपनी लगन से कुछ भी कर सकती हैं।

कोच कुलदीप वेदवान ने पहले शीतल देवी के लिए एक विशेष तकनीक विकसित की थी, जिसमें वे अपने पैरों से धनुष पकड़ती थीं और मुंह से तीर चलाती थीं। लेकिन पायल के लिए उन्होंने एक नई प्रणाली तैयार की, जिसमें उनके प्रोस्थेटिक (कृत्रिम) पैरों की सहायता से धनुष को स्थिर किया जाता है और वे मुंह से निशाना साधकर तीर छोड़ती हैं। शुरुआत में यह प्रणाली पायल के लिए कठिन थी, लेकिन जल्दी ही उन्होंने इसे आत्मसात कर लिया।

अब कोच कुलदीप वेदवान उनकी तकनीक को और निखारने के लिए एक नया हल्का उपकरण तैयार कर रहे हैं, जो कार्बन, फाइबर, एल्युमिनियम और जिंक के मिश्रण से बनेगा। इससे पायल की तीरंदाजी और बेहतर हो सकेगी।

दुनिया ने अब तक बिना हाथों वाले तीरंदाज देखे हैं, लेकिन येह हैरतंगेज़ है कि  एक ऐसे तीरंदाज को देखा जाए, जिसके चारों अंग नहीं हैं। पायल का सपना पैरालंपिक में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीतना है और उनकी यह दृढ़ इच्छाशक्ति बताती है कि यह सपना जल्द ही हकीकत में बदलेगा


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