नई दिल्ली, 17 जनवरी(वीएनआई) समाजवादी पार्टी के दंगल मे पिता मुलायम सिंह और बेटे अखिलेश के आमने सामने होने के बाद अब इस पार्टी मे सुलह साफ नजर आ रही है और पिता मुलायम बेटे के सामने नरम पड़ते जा रहे है. अब उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव मे समाजवादी पार्टी का चुनाव अभियान पिता पुत्र के मिल कर साथ साथ चलाने के संकेत है. चुनाव आयोग के फैसले के बाद आज अखिलेश यादव फिर से मुलायम सिंह यादव से मिलने पहुंचे . मुलायम के करीबी सूत्रों के मुताबिक मुलायम सिंह अब मान गए हैं कि चुनाव मे वे अपने प्रत्याशी नहीं उतारेंगे. उसके बदले में मुलायम ने अपने समर्थकों के 38 नामों की सूची अखिलेश यादव को दी है. उसमें हालांकि पहले शिवपाल यादव का नाम नहीं था और उनकी जगह उनके बेटे आदित्य यादव का नाम सूची में था लेकिन सूत्रो के अनुसार अब सूची मे शिव पाल का नाम फिर से आ गया है. इसके अलावा अखिलेश यादव द्वारा बर्खास्त किए गए चारों मंत्रियों के नाम सूची में हैं. अंबिका चौधरी, ओम प्रकाश सिंह, नारद राय, शादाब फातिमा जैसे चेहरे भी इस सूची में शामिल हैं. इन लोगों को शिवपाल यादव का करीबी माना जाता रहा है.इस के अलावा मुलायम सिंह की छोटी बहू अपर्णा यादव का नाम भी मुलायम वाली सूची मे शामिल है.इस बीच सपा के कांग्रेस के साथ गठबंधन की तस्वीर भी साफ होती दिख रही है. सपा की तरफ से अखिलेश यादव और कांग्रेस की तरफ से गुलाम नबी आजाद ने कहा है कि अगले एक-दो दिनों में इन दलों के बीच गठबंधन हो जाएगा. मुलायम सिंह इस गठबंधन के पक्ष में भी नहीं थे.
इसी बीच सूत्रो के अनुसार मुख्यमंत्री अखिलेश यादव यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर कल समाजवादी पार्टी की पहली सूची जारी कर सकते हैं. हालांकि अखिलेश और मुलायम ने अलग-अलग उम्मीदवारों की सूची जारी की थी, लेकिन सपा के अंदर जारी दंगल में उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. अब अखिलेश पिता मुलायम के 38 उम्मीदवारों की सूची को लेकर नयी लिस्ट जारी कर सकते हैं. हालांकि यह तय नहीं हुआ है कि मुलायम की ओर से सौंपी गयी सूची में अखिलेश कितने को टिकट देते हैं. इधर 5 कालिदास मार्ग में अखिलेश यादव बैठक कर रहे हैं. इस बैठक में रामगोपाल यादव, नरेश अग्रवाल, किरणमय नंदा भी शामिल हैं.
दरअसल कल चुनाव आयोग के अखिलेश खेमे के पक्ष में फैसला आने के बाद से ही मुलायम सिंह ने खामोशी अख्तियार कर रखी थी. उनके अगले कदम पर ही सबकी निगाहें टिकी हुई थीं. कल आयोग के फैसले से पहले मुलायम सिंह पार्टी मुख्यालय पहुंचे थे और वहां पर उन्होंने अखिलेश यादव की आलोचना की थी. माना जा रहा था कि यदि फैसला मुलायम के पक्ष्ा में नहीं आएगा तो वह लोकदल के चुनाव निशान पर अपने प्रत्याशियों को उतारेंगे.
ऐसा होने पर अखिलेश के प्रत्याशियों को नुकसान हो सकता था. इसलिए माना जा रहा है कि मुलायम का मानना बेहद जरूरी है और उनको मनाने के प्रयास ही चल रहे हैं. उसी की अगली कड़ी में सूत्र कह रहे हैं कि मुलायम सिंह अब मान गए हैं और अखिलेश के प्रत्याशियों के समक्ष अपने उम्मीदवार नहीं खड़े करेंगे.
कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी इस सिलसिले में मुलायम से मुलाकात की थी. लेकिन एक प्रेस कांफ्रेंस में मुलायम ने यह कहकर इस संभावना को खारिज कर दिया था कि जो भी सपा के साथ लड़ना चाहता है, उसको अपनी पार्टी का विलय सपा में करना होगा. लेकिन अखिलेश यादव इस गठबंधन के पक्षधर थे. अब यदि मुलायम अपने प्रत्याशी नहीं उतारेंगे तो इस लिहाज से भी अखिलेश के लिए इसे बड़ी कामयाबी माना जाएगा. यानी कि एक तो कांग्रेस के साथ गठबंधन होगा और दूसरे सपा में वोटों का बिखराव नहीं होगा.
दरअसल इस सूरत में इस गठबंधन को सबसे ज्यादा मुस्लिम मतों के लिहाज से लाभ होने की उम्मीद है. यानी कि मुलायम के उम्मीदवार नहीं होने से सपा के वोटों का बंटवारा नहीं होगा और उसका परंपरागत यादव-मुस्लिम वोटर पार्टी के साथ जुड़ा रहेगा. इसी बीच बदलते राजनीतिक घटनाक्रम में शिवपाल यादव ने आज दिन में मुलायम सिंह यादव से मुलाकात की. सूत्रों का कहना है कि मुलायम ने शिवपाल सहित सभी विरोधी ताकतों को अखिलेश के खिलाफ नरम रुख रखने को कहा है और चुनाव में सभी को एक साथ आने को कहा है. ऐसे में शिवपाल के अगले कदम पर सबकी नजरें टिकी हैं. एक महत्वपूर्ण बात यह कि पहले अखिलेश के हर राजनीतिक वार पर जवाबी वार के लिए मुलायम सिंह मीडिया के सामने आते थे, लेकिन अब वह मीडिया से दूर अपने घर से सारे राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर रख रहे हैं और सार्वजनिक बयानबाजी से बच रहे हैं.
उधर, उत्तरप्रदेश में तेजी से बदलते राजनीतिक घटनाक्रम के बीच आज कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने राष्ट्रीय लोक दल के प्रमुख अजीत सिंह से बात की. समझा जाता है कि गुलाम नबी आजाद ने उन्हें अखिलेश के नेतृत्व में उत्तरप्रदेश में आकार ले रहे महागंठबंधन में शामिल होने का प्रस्ताव दिया है. अगर, रालोद महागंठबंधन में शामिल होगा, तो पश्चिमी उत्तरप्रदेश में इसका उसे बड़ा लाभ हो सकता है और जाट वोट एकमुश्त उसकी झोली में आ सकते हैं.