गुप्तकाशी,15 जून (अनुपमा जैन, वीएनआई) केदारनाथ की भयावह त्रासदी के दो साल के बाद अब उन विधवाओ की ऑखो मे उदासी के बावजूद उम्मीद के दिये भी टिमटिमाने लगे है. इस त्रासदी के भयावह मंजर मे गॉव की ३७ महिलाओ के पतियो के पहाड़ो और सैलाब मे समा जाने के बाद से \'विधवाओं के गांव\' के नाम से जाने वाले क्षेत्र के देवली ब्रह्मग्राम मे अब जिंदगी पटरी पर लौटने लगी है. त्रासदी के बाद गॉव से सुने जाने वाले करूण क्रंदन, दिल् दहला देने वाली सुबकियो और सूरज की रोशनी के बावजूद घुप्प अंधेरे मे छिप गये इस गॉव मे अब शाम को घरो मे फिर से दिया बाती होने लगी है, बच्चे उदासी के बावजूद मुस्कराने लगे है,खा पीकर पढते है, गलियो मे खेलते है.महिलाओ की ऑखे जब तब डबडबाती जरूर है ,लेकिन फिर काम धंधे को कर के आपस मे बतियाती भी है\'
तमाम बाधाओं के बावजूद केदारघाटी में सारी सरकारी और दूसरी एजेंसियां हालात सामान्य बनाने में जुटी हुई हैं। दंश और दुख के बीच केदारघाटी में विधवाओं के गांव के तौर पर मशहूर हो चुका देवली ब्रह्मग्राम की विधवाएं और परिवार इन दिनों नई कोशिशों के चलते अपनी जीविका कमाने और अपने बच्चों का पालन-पोषण करने के प्रयासों में जुटे हुए हैं। समाजिक जागरण और समाज कल्याण से जु्ड़े एनजीओ \'सुलभ इंटरनेशनल\' की के सहयोग से इस गांव की विधवाएं जहां रोजी-रोटी कमाने के लिए नए-नए व्यवासायिक हुनर सीख रही हैं,वहीं आर्थिक तौर पर मजबूत भी हो रही है, और अपने परिवारो का संबल बन रही है। तबाही की दूसरी बरसी पर हाल ही मे इस गांव की विधवाओ और बच्चो ने तबाही के बाद खिल रहे जिंदगी के उत्सव मे हिस्सा लिया और उम्मीदों की प्रतीक मोमबत्तियां भी जलाई।
देवली ब्रह्मग्राम गुप्तकाशी में ऊंची पहाड़ी पर बसा है। दो साल पहले इस गांव एक साथ कुल 57 मौतों के भयावह मंजर का गवाह बना था। जिसके चलते यहां 37 महिलाएं विधवा हो गईं। इसी वजह से तबाही के बाद से ही इसे विधवाओं का गांव कहा जाने लगा है। बारिश पर आधारित खेती के चलते इस गांव समेत केदारघाटी के कई गांवों की रोजी-रोटी केदारनाथ मंदिर पर ही आधारित है। गांव के बड़े मंदिर में सहायक या जजमान का काम करते हैं, जो मंदिर के नजदीक या तो पूजा कराते हैं या पूजा का सामान बेचते हैं। वहीं छोटे यहां या तो फेरी लगाते हैं या फिर तीर्थयात्रियों के सामान और बच्चों को पिट्ठू बनकर ढोते रहे हैं। दो साल बीतने के बावजूद केदारनाथ का पूरा इलाका अब भी ब भी उस त्रासदी से उबर नही पाया है है। ठीक दो साल पहले 16 जून 2013 को उत्तराखंड में भगवान का घर कहा जाने वाले इलाके ने तबाही के भयानक मंजर का गवाह बना था। वह भयानक तूफान तो गुजर गया, लेकिन अपने पीछे हजारों लाशों और बारिश से आई भयानक बाढ़ की तबाही छोड़ गया।
भयानक तबाही के बाद जब प्रशासन यहां के लोगों के लिए राहत का सबब बनकर नहीं आया तो सुलभ इंटरनेशनल आगे आया और उसने दिंसबर २०१३ मे देवली बनीग्राम को गोद ले लिया। स्थति यह थी कि परिवार के कमाऊ सदस्य की मौत के बाद परिवारों के लिए जिंदगी गुजारना बेहद मुश्किल हो गया था। उनके पास जिंदगी बसर करने के लिए कोई जरिया भी नहीं बचा था। तीर्थ यात्रा के मौसम में ही उनकी कमाई होती थी और उससे रोजी-रोटी चलती थी। लेकिन तबाही ने सबकुछ छीन लिया। लेकिन जिनकी जिंदगी बच भी गई, भयानक तबाही से उन्हें ऐसा मानसिक आघात लगा कि वे केदारनाथ मंदिर लौटने की हिम्मत तक नहीं जुटा सके। ऐसे माहौल में सुलभ इंटरनेशनल आगे आया और उसने इस गांव को गोद लिया। तब से सुलभ इन गांवों की विधवाओं, बुजुर्गों और बच्चों को प्रति माह दो हजार रूपए की मदद मुहैया करा रहा है। इसके साथ ही नजदीक के छह गांवों के तबाही प्रभावित परिवारों को हर महीने हजार रूपए की सहायता दी जा रही है। इस तरह सुलभ इन गांवों के करीब 300 परिवारों को मदद दे रहा है जिनमे कंप्यूटर व सिलाई मशीने देने की की मदद भी शामिल है
सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉक्टर बिंदेश्वर पाठक के अनुसार \'यह इन् के आँसूं पोंछने का एक विनम्र प्रयास है इन सब की उदास सूनी ऑखो मे भीषण त्रासदी के बाद जिंदगी की चमक फिर से लौटने लगी \' उन्होने कहा, \'पहले जैसी जिंदगी की उस तरह की भरपाई तो वह नही कर पायेंगे , प्रभावित परिवारों को बड़ी खुशियां तो नहीं मिल सकती है। लेकिन इस छोटी रकम से उनके परिवारों को गुजर बसर करने मे मदद मिल् पायेंगी ।\' श्री पाठक ने कहा कि इन परिवारों को अगले पांच साल तक यह आर्थिक मदद जारी रहेगी। श्री पाठक ने भरोसा दिलाया कि प्रभावित परिवारों के पुनर्वास के लिए उनका संगठन मदद करेगा ताकि वे अपनी जिंदगी की गाड़ी को पटरी पर ला सकें और उनकी जिंदगी दोबारा पटरी पर आ सकें। ऐसी पहल होती रहे, ऑखो से ऑसू पौंछे जाते रहे....वी एन आई