थिम्फू, 16 जून , प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज यहाँ भूटान की संसद के संयुक्त अधिवेशन मे हिन्दी मे दिये गये अपने भाषण मे भूटान की जनता के लिये दि्लों के दरवाज़े खोलने की बात करके न केवल भूटानी जनता के दिलों को छू लिया बल्कि हिन्दी के इस प्रयोग से एक बार फिर सबका ध्यान मोदी सरकार की ‘हिन्दी डिप्लोमेसी’ की तरफ आकर्षित हुआ है. श्री मोदी ने आज अपनी दो दिवसीय भूटान यात्रा के समापन से पूर्व भूटान की संसद के संयुक्त अधिवेशन मे लगभग 35 मिनट तक बिना लिखा भाषण धाराप्रवाह हिन्दी मे दिया|
अन्तर्राष्ट्रीय कूटनीति की प्रचलित भाषा अग्रेज़ी से अलग हटकर हिन्दी मे दिये गये अपने इस भाषण श्री मोदी ने दोनो देशो की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत की चर्चा करते हुए आपसी सहयोग बढाने के कई अहम प्रस्तावों की पेशकश की| दोनो देशों के बीच दिलो के रिश्तो की चर्चा करते हुए हिन्दी मे उन्होने कहा कहा ‘ हम एक इसलिये नही है कि हमने सीमायें खोल रखी है हमारी एकता की अनुभूति, ताकत इसलिये है कि हमने दिल के दरवाज़े खोल रखे हैं भारत हो या भूटान इसी एकता मे हम ताकत की अनुभूति करते हैं , शासन व्यवस्था बदलने से दिल के दरवाज़े बंद नही होते, सीमा की मर्यादायें पैदा नही होती भूटान व भारत का नाता इस अर्थ मे एक ऐतिहासिक धरोहर है” हालाँकि भाषण के दौरान अपनी मेज़ पर उन्होने कुछ प्रमुख मुद्दों के नोट्स रखे हुए थे लेकिन भाषण धाराप्रवाह रहा इस अवसर पर मौजूद भूटानी संसद के अध्यक्ष तथा प्रधनमंत्री सहित प्रमुख नेताओं व सांसदों ने भूटानी भाषा मे अनुवाद प्रणाली के ज़रिये ये भाषण सुना.
भूटान मे हालाँकि अभिनंदन के लिये तालियाँ बजाना अच्छा नही माना जाता लेकिन उनके भाषण के दौरान अभिनंदन स्वरूप कुछ तालियाँ भी बजी. श्री मोदी ने भूटान यात्रा के दौरान अपने दोनो मुख्य भाषण हिन्दी मे ही दिये कल रात भूटान के प्रधानमंत्री द्वारा श्री मोदी के सम्मान मे दिये गये रात्रि भोज मे भी उन्होने हिन्दी मे ही भाषण दिया, अपनी विशिष्ट संस्कृति पहचान - भाषा व जीवन शैली को अक्षुण रखने को प्रतिबद्ध भूटान मे श्री मोदी के हिन्दी मे दिये गये भाषण चर्चा के केन्द्र रहे
इससे पूर्व श्री मोदी ने गत 26 मई अपने शपथ ग्रहण समारोह मे हिन्दी मे शपथ लेने के बाद समारोह के लिये विशेष तौर से निमंत्रित दक्षेस नेतायों के साथ उभयपक्षीय बातचीत भी हिन्दी मे ही की थी विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज भी राजनयिक संवाद मे हिन्दी को ही प्रमुखता देती हैं गौरतलब है कि अभी तक भारत के सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों ने (श्री एच डी देवगौड़ा को छोड़कर ) हिन्दी के जानकार होने के बावजूद विदेशी राजनयिकों व अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर अंग्रेज़ी मे ही वार्ता व भाषण दिये तत्कालीन प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर ने हालाँकि माले मे हुए दक्षेस शिखर सम्मेलन मे हिन्दी मे भाषण दिया इससे पहले तत्कालीन जनता पार्टी सरकार मे विदेश मंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने 1977 मे संयुक्त राष्ट्र महासभा मे हिन्दी मे भाषण दिया था जो बहुत चर्चित रहा था, हाल मे दक्षेस नेतायों के साथ बैठक मे श्रीलंका और मालद्वीप को छोड़कर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री , नेपाल के प्रधानमन्त्री, बाँग्लादेश की स्पीकर मौरिशस के प्रधानमंत्री से हिन्दी मे ही बातचीत की, तत्कालीन जनता पार्टी सरकार मे विदेश मंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने 1977 मे संयुक्त राष्ट्र महासभा मे हिन्दी मे भाषण दिया था जो बहुत चर्चित रहा था, भाषाविदों के अनुसार हाल मे दक्षेस नेतायों के साथ बैठक मे श्रीलंका और मालद्वीप को छोड़कर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री , नेपाल के प्रधानमन्त्री, बाँग्लादेश की स्पीकर मौरिशस के प्रधानमंत्री से हिन्दी मे ही बातचीत की, भाषाविदों के अनुसार चीन ,जापान, स्पेन फ्रान्स जर्मनी जैसे देशो के राष्ट्राध्यक्ष राजनयिक वार्ता अपनी भाषा मे ही करते हैं, ऐसे मे श्री मोदी देश की आधिकारिक भाषा मे यदि अपने भावों को अभिव्य्क्त करते है तो इसका स्वागत ही किया जाना चाहिये, इसे भाषा के संकीर्ण दायरों मे रखकर नही देखा जाना चाहिये वैसे भी हिन्दी सिनेमा, टेलीविज़न ,संगीत ,संसकृति की वजह से हिन्दी का प्रसार बढ रहा है पछले कुछ वर्षों मे हिन्दी समाचार पत्रो, पत्रिकायों के पाठको मे वृद्धि के साथ साथ हिन्दी टी वी चैनलो मे भारी वृद्धि दर्ज़ हुई है जिससे इन कार्यक्रमों के हिन्दी दर्शकों की संख्या बहुत बढी है भारतीय युवाओं मे भी अन्ग्रेज़ी के साथ साथ हिन्दी का चलन बढ़ रहा है यही स्थिती प्रवासी भारतीयों मे भी बन रही है