पुरी रथयात्रा के लिए बलराम, श्रीकृष्ण और देवी सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ निर्माण किया जाता हैं रथयात्रा में सबसे आगे बलरामजी, बहन देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है। इसे उनके रंग और ऊंचाई से पहचाना जाता है। भगवान के रथ का नाम भी अलग-अलग होता है और रंग भी ,बलभद्र के रथ का रंग हरा-लाल और इसे तालध्वज कहते हैं इनके रथ पर महादेवजी का प्रतीक होता है इसके रथ के रक्षक भगवान वासुदेव और सारथी मातलि इस रथ को खींचते हैं। रथ के ध्वज को उनानी कहते हैं। त्रिब्रा, घोरा, दीर्घशर्मा व स्वर्णनावा इस रथ के घोड़ों के नाम हैं। यह रथ 13.2 मीटर या 45 फीट ऊंचा व 14 पहियों का होता है, जो लाल, हरे रंग के कपड़े व लकड़ी के 763 टुकड़ों से बना होता है। बलरामजी के रथ का शिखर लाल-पीला होता हैवी एन आई
लाल और पीले रंग के पर्दे लगा नंदीघोष, गरुड़ध्वज या कपिध्वज, रथ भगवान जगन्नाथ के लिए सजाया जाता है।इस रथ के घोड़ों का नाम शंख, बलाहक, श्वेत एवं हरिदाश्व है, जिनका रंग सफेद होता है। त्रैलोक्यमोहिनी या गरुणाध्वज ध्वज इस रथ पर लहरते हुए दिख सकता है। इस रथ के सारथी का नाम दारुक है। भगवान जगन्नाथ के रथ पर हनुमानजी और नृसिंह का प्रतीक होता है। इसके अलावा भगवान जगन्नाथ के रथ पर सुदर्शन स्तंभ भी होता है। यह स्तंभ रथ की रक्षा का प्रतीक माना जाता है।इस रथ के रक्षक भगवान विष्णु के वाहन पक्षीराज गरुड़ हैं। रथ को जिस रस्सी से खींचा जाता है, वह शंखचूड़ नाम से जानी जाती है। इस रथ में 16 पहिए होते हैं व ऊंचाई साढ़े 13 मीटर या 45.6 फीट ऊंची होती है। इसमें लगभग 1100 मीटर कपड़ा रथ को ढंकने के लिए उपयोग में लाया जाता है। भगवान जगन्नाथ के रथ के शिखर का रंग लाल और हरा होता है। यह रथ बाकी रथों की तुलना में भी आकार में बड़ा होता है।लेकिन यात्रा के समय उनका यह रथ भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के रथ के पीछे होता है।
सुभद्रा के रथ को दर्पदलन कहा जाता है, जो काले और लाल रंग का होता है सुभद्राजी के रथ पर देवी दुर्गा का प्रतीक होता है। रथ के रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन होते हैं। रथ का ध्वज नदंबिक कहलाता है। रोचिक, मोचिक, जिता व अपराजिता इसके घोड़े होते हैं। इसे खींचने वाली रस्सी को स्वर्णचुड़ा कहते हैं। 12.9 मीटर 44.6 फीट ऊंचे 12 पहिए के इस रथ में लाल, काले कपड़े के साथ लकड़ी के 593 टुकड़ों का इस्तेमाल होता है।सुभद्राजी के रथ का शिखर लाल और सलेटी रंग काअश्व मोचिक इस रथ को खीचते हैं
इन रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार के धातु का प्रयोग नहीं होता है बताया जाता है कि तीनों के रथ नारियल की लकड़ी से बनाए जाते हैं क्योंकि ये लकड़ी हल्की होती है और आसानी से खीची जा सकती है रथों के लिए लकड़ी का चयन बसंत पंचमी के से शुरू होता है रथ का काम शुरू होने से पहले पुजारी उन पेड़ों की विधि विधान से पूजा करते हैं, जिनसे इन रथों को तैयार किया जाता है. उसके बाद सोने की कुल्हाड़ी को भगवान जगन्नाथ से स्पर्श करवाकर पेड़ों पर कट लगाया जाता है.और निर्माण अक्षय तृतीया से होता है। इस दौरान रथ बनाने वाले लोग सात्विक तरीके से रहते हैं और दिन में एक बार ही भोजन करते हैंमाना जाता है कि जो लोग इस दौरान एक दूसरे को सहयोग देते हुए रथ खींचते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। (
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