नई दिल्ली, 26 मई, (वीएनआई) बीते सोमवार को क्रांतिकारी युवा संगठन एवं दिल्ली के जनवादी और न्याय पसंद लोगों ने राजस्थान के नागौर जिले के डगवास गाँव में 14 मई को हुए 3 दलित किसानों के नृशंश हत्या, एक दलित महिला के साथ बलात्कार, दलित महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न और भारी संख्या में दलितों को घायल करने की घटना के खिलाफ दिल्ली के जंतर मंतर पर भारी विरोध प्रदर्शन किया|
क्रांतिकारी युवा संगठन के कार्यकर्ता ने बताया कि जातीय दबंगई देखिये कि करीब 500 जाट दलित बस्ती में घुस आये और खुले आम मौत का तांडव हुआ| तीन दलितों को ट्रैक्टर से कुचल दिया गया| यही नहीं एक दलित महिला का बलात्कार किया गया और कई दलित महिलाओं के कपडे फाड़े गए साथ ही दलित बस्ती में घरों को तोड़ दिया गया| 21वीं सदी के भारत में भी कानून व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ाकर ऐसी घटनाएं हो रही हैं ये शर्म की बात है|14 मई को डगवास गाँव के जाटों ने एक जाति-पंचायत बुलाई और मेघवालों(दलितों) को पंचायत में आने की धमकी दी गयी| फिर जाट दलित बस्ती में घुस आए और रतनराम मेघवाल, पंचराम और पोकाराम नामक तीन दलितों को बेरहमी से ट्रेक्टर के नीचे कुचल दिया गया और 14 दलितों को जिसमे 6 महिलाएं हैं को बुरी तरह घायल कर दिया गया और वो गम्भीर रूप से घायल हैं| महिलाओं के जननांगों में डंडा घुसाने की कोशिश की गयी और एक महिला को लोहे के रौड से मारा गया| एक महिला को तो इतना मारा गया कि उसके सिर में 15 टाके लगे हैं| यही नहीं, जब मेर्ता सिटी अस्पताल में घायलों को इलाज़ के लिए रखा गया था, तब जाटों के हथियारबंद हमलावरों ने अस्पताल को चारो तरफ से घेर लिया गया और डॉक्टरों को ये धमकी दी गयी कि दलितों का इलाज यहाँ नहीं होना चाहिए| खेद की बात है कि ये राजस्थान में हुआ कोई पहला दलित हत्या या उत्पीड़न का मामला नहीं है| प्रभुत्वशाली जातियों की सरकारों ने हमेशा इन मामलों को दबाया जरूर है| हम पूछना चाहते हैं कि आपकी सरकार की इस पूरे मामले में चुप्पी क्यों बनी हुई है| पूरे मामले में 72 घंटे तक कोई गिरफ़्तारी नहीं होने पर राजस्थान सरकार के गृह मंत्री गुलाब कटारिया ने अपने बयान में कहा कि उसके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है जिससे गिरफ्तारी की जा सके| मालूम होता है कि सामाजिक न्याय महज एक जुमला बन कर रह गया है|
केवाईएस के अनुसार नागौर में करीब दो महीने से दलित समुदाय पर छिटपुट हमले किये जा रहे थे| पुलिस को बार-बार शिकायत करने के बावजूद पुलिस ने कोई कदम नहीं उठाया| पत्रकारों द्वारा पूछे जाने पर नागौर के SP ने कहा कि ये जाति से जुड़ा हुआ मामला नहीं है| 14 मई को खुले आम जाट पंचायत रखी जाती है और दलितों को जाट पंचायत में आने की धमकी दी जाती है और पुलिस फिर भी कहती है कि इस पूरे मामला का जाति से कोई लेना-देना नहीं है और इस पंचायत के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया जाता है| शासन और प्रशासन तंत्र दोनों उच्च जातियों के साथ खड़े मालूम होते हैं| ये कुछ और नहीं बल्कि जातीय आतंकवाद है जिसमे सरकारी तंत्र आतंकवादियों के साथ खड़े हैं| जातीय आतंक से भयभीत दलित समुदाय के लोग अपने गाँव में भी वापस जाने से डर रहे हैं| आसपास के गाँव के दलितों के बीच अभी भी दहशत का माहौल है| अगर सरकार पीड़ितों को सुरक्षा प्रदान करने में नाकाम होती है तो जातीय आतंकवादी अपने काम में सफल होंगे क्योंकि जाटों द्वारा दलित समुदाय की जमीन छीनने की कोशिशें की जा रही हैं| ये भूमि विवाद 1964 से चल रहा है और दलित जाति के जमीनों को जाटों द्वारा हड़पने की कोशिशें की जा रही है|
क्रांतिकारी युवा संगठन ने पूरे मामले में सीबीआई की जांच को लेकर प्रधानमन्त्री कार्यालय को ज्ञापन दिया गया है|
ज्ञापन में मुख्यतः निम्नलिखित मांगें की गई हैं-
1. नामजद और अन्य सभी दोषियों पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाए|
2. नामजद और अन्य सभी दोषियों को तुरंत गिरफ्तार किया जाए|
3. सभी पीड़ित और उनके परिवार को उचित मुआवजा और सुरक्षा प्रदान किया जाए|
4. स्थानीय एसपी को तुरंत बर्खास्त किया जाए और शासन-प्रशासन में उन लोगों पर स्वतंत्र न्यायिक जांच बैठाकर कठोर कार्रवाई की जाए जो इस घटना में संलिप्त थे|
इसके साथ ही संगठन ने कहा कि हम मांग करते हैं कि तुरंत सभी दोषियों को गिरफ्तार किया जाए और पीड़ितों को सुरक्षा प्रदान किया जाए ताकि दलित समुदाय के लोग आश्वस्त होकर अपने गाँव लौट सके और शांतिपूर्ण तरीके से गाँव में रह सके| अगर इन मांगो को तुरंत नहीं माना गया तो हम जातीय दमन के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाएंगे|