नई दिल्ली,६ दिसंबर (अनुपमाजैन/वीएनआई) तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं जे जयललिता तमिलनाडु की राजनीति में छाये रहने के साथ ही केन्द्र की राजनीति मे भी अपना खासा प्रभाव बनाती रही है विशेष तौर पर गठबंधन सरकारो के दौर मे उनके दल की खास अहमियत रही है. इस लोक सभा मे भी उनके दल् के ३७ सदस्य है जिसके चलते केन्द्र सरकार के लिये अन्ना द्रमुक की अपनी खास जगह और खासा प्रभाव् है. राज्य सभा मे भी इस पार्टी के फिलहाल १३ सदस्य है. इससे पूर्व 1999 मे तो उन्होने राष्ट्रीय राजनीति में उलट फेर कर दिया था जिसके चलते राष्ट्रीय राजनीति मे उनके अपनी एक अलग पहचान बन गई थी
17 अप्रैल, 1999 का दिन, क्योंकि इसी दिन 13 माह से केंद्र में चल रही अटल बिहारी वाजपेयी सरकार सिर्फ एक वोट से गिर गई थी. सूत्रो केअनुसार जयललिता तब तक सोनिया के करीब नहीं थीं. दरअसल मार्च, 1999 में एक चाय पार्टी में सोनिया और जयललिता की मुलाकत हुई और नतीजा हुआ कि वह वाजपेयी सरकार से समर्थन वापस लेने के लिए राजी हो गईं.
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अटल सरकार की सहयोगी जयललिता तत्कालीन डीएमके सरकार को बर्खास्त करने की मांग पर समर्थन वापस लेने की धमकी दे रही थीं. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने भी जयललिता पर आरोप लगाया कि वह ऐसा इसलिए कर रही हैं, ताकि वह अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से बच सकें. दोनों पार्टियों के बीच कोई सहमति नहीं बन सकी. नतीजा यह हुआ कि जयललिता ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया, और संसद में अटल सरकार सिर्फ एक वोट से विश्वासमत हार गई.
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के झंडे 23 दलों को एकत्र कर सरकार बनाई थी. 13 महीने की वाजपेयी सरकार के गिरने के बाद 1999 में मध्यावधि चुनाव हुए, जिसमें बीजेपी को लाभ भी मिला थालेकिन जयललिता को चुनाव में बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी.
इससे पूर्व राज्य सभा के सांसद के रूप मे भी वे अपनी छाप छोड़ चुकी थी .उनके गुरू एमजीआर ने 24 मार्च, 1984 जयललिता को राज्यसभा के लिए नामांकित किया और अपनी धारा प्रवाह अंग्रेजी, हिंदी ्के ज्ञान और विद्वता से उपरी सदन मे सभी को प्रभावित किया
जयललिता जहां भी होती थीं, आकर्षण का केंद्र बन जाती थीं. रा राज्यसभा में उनके साथ सांसद रहे खुशवंत सिंह ने प्रशंसा में कहा था कि यह बुद्दिमत्ता और सौंदर्य का संगम है. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी उनसे खासा प्रभावित हुई थीं.वी एन आई
एमजीआर की पार्टी में उनकी ताकत बढ़ने की गति से वरिष्ठ सदस्य चिंतित थे, और उन्हें आशंका थी कि पार्टी की यह नयी सदस्या को जल्दी ही कैबिनेट में जगह दे दी जायेगी, लेकिन एमजीआर कुछ और सोच रहे थे. उन्हें दिल्ली में किसी तेजतर्रार व्यक्ति की जरूरत थी जो उनके और केंद्र के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा सके. जयललिता शानदार अंग्रेजी बोलती थीं. वे हिंदी भी धाराप्रवाह बोल लेती थीं. एमजीआर ने 24 मार्च, 1984 को घोषणा की कि जयललिता को राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया है. राज्यसभा में उन्हें जो सीट दी गयी, उसकी संख्या 185 थी. यह वही सीट थी जिस पर 1963 में सांसद के रूप में सीएन अन्नादुरै बैठते थे.
जयललिता जहां भी होती थीं, आकर्षण का केंद्र बन जाती थीं. राज्यसभा में उनके पहले भाषण को उच्चारण की शुद्धता और शिष्ट गद्य के सराहा गया था. राज्यसभा में उनके साथ सांसद रहे खुशवंत सिंह ने प्रशंसा में कहा था कि यह बुद्दिमत्ता और सौंदर्य का संगम है. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी खासा प्रभावित हुई थीं.