पशुधन का संरक्षण हो, यह ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था का आधार- आचार्य विद्यासागर

By Shobhna Jain | Posted on 26th Jul 2015 | देश
altimg
बीना बारां, मध्यप्रदेश,26 जुलाई (निर्मलपाटोदी,वीएनआई) प्रसिद्ध दार्शनिक,समाज उद्धारक और तपस्वी संत ने पशुधन को ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था का आधार बताया, उन्होने पशुधन के संरक्षण क़ा आह्वान करते हुए कहा है कि चिंता की बात है कि कुछ वर्षों से सरकार द्वारा सब्सिडी देकर जीवित पशुओं का वध कर के विदेशी मुद्रा कमाने के लिए माँस, चमड़ा और इनके अन्य उत्पादों का निर्यात करने की हिंसक-व्यापार की नीति पर अपनाई जा रही है. उन्होने कहा कि यह सब इस मायने मे और भी दुखद है कि भारत जीव दया, अहिंस और करुणा की भूमि रहा है. आचार्य श्री विद्यासागर ने कहा कि यह भारतीय संस्कृति, पर्यावरण एवं संविधान की मूल भावना के भी विपरीत है। उनका कहना है कि पशुधन ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था का आधार है। प्रकृति में वन, पशु, जल, भूमि, पहाड़ तथा जीव-जगत का अनुपात स्वत: ही सन्तुलित रहता है। वर्तमान में यह सन्तुलन तेज़ी से बिगड़ रहा है। उन्होने कहा निश्चय ही पशुधन के संरक्षण से राष्ट्र आत्म-निर्भर, स्वस्थ्य और अहिंसक होता है । दया, करुणा, प्रेम का वात्सल्य बढ़्ता है और हम सही मायने मे अहिंसक समाज व राष्ट्र का सृजन कर पाते हैं.आचार्यश्री आजकल यहा संसघ विराजमान है जहां बड़ी संख्या मे श्रधालु उनके प्रवचन सुनने आ रहे है. उनकी धर्म सभा मे आये एक श्रधालु अर्पित जैन के अनुसार महाव्रति ने भागीरथ जैसी जो ज्ञान की गंगा प्रवाहित की है, उसके द्वारा भाषा, संस्कृति, समाज, राष्ट्र और विश्व को विनाश से रोका जा सकता है. प्रख्यात कवि, प्रखर वक़्ता आचार्य विद्द्यासागर उत्कृष्ट साहित्य का सृजन करते रहे है कन्नड़ भाषी होकर भी प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत, कन्नड़, बांग्ला, अँग्रेजी और राष्ट्र भाषा हिन्दी के भण्डार की श्रीवृद्धि में आपका योगदान अपूर्व है। आपका हिन्दी में सृजित चर्चित कालजयी महाकाव्य 'मूकमाटी' एक अप्रतिम कृति है। यह शोषितों के उत्थान का प्रतीक है। 300 से अधिक समालोचकों की लेखनी कृति को रेखांकित कर चुकी है। ग्यारह संस्करणों में भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित यह महाकाव्य हिन्दी, मराठी, कन्नड़ , बांग्ला और अँग्रेजी भाषाओं में अनुदित हो चुका है। अँग्रेजी संस्करण का महामहिम पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल के कर कमलों से सन् 2011 में लोकार्पण हुआ है। आचार्य श्री 'अनेक ग्रंथों का पद्दानुवाद के साथ ही जापानी साहित्य की सारभूत विधा 'हाइकु' जिसमें पहले पांच, फिर सात और अन्त में पुन: पांच अक्षरों से भावों की अभिव्यक्ति होती है, इस शैली में तीन सौ पचास से अधिक हाइकु कविताओ की रचना की है। वीएनआई

Leave a Comment:
Name*
Email*
City*
Comment*
Captcha*     8 + 4 =

No comments found. Be a first comment here!

ताजा खबरें

Quote of the Day:
Posted on 23rd Nov 2024
Today in History
Posted on 23rd Nov 2024

Connect with Social

प्रचलित खबरें

© 2020 VNI News. All Rights Reserved. Designed & Developed by protocom india