"कोई खत"
कोई खत पते की तलाश में भटकता रहा
कोई पता किसी खत की राह तकता ही रहा
तुम कहते हो जो छांव मिली, वो गॉव में ही मिली,
गॉव कहता है तुमको जो राह दिखी गॉव के बाहर ही दिखी !
अँधेरे की कभी उजाले से मुलाकात हुई ही नहीं
दिन के रहते कभी रात हुई ही नहीं !
सुनील कुमार
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