नई दिल्ली ,18 अप्रैल (शोभना जैन वीएनआई)एक तरफ जहा इजरायल और ईरान के बीच चल रही गंभीर सैन्य टकराहट और पश्चिम एशिया के गहरातें संकट को और भयावह बनने से रोकने के लियें जहा अरब और खाड़ी देशों के शीर्ष नेतृत्व सहित अमरीका और पश्चिमी देशों के बीच गहन मंत्रणाओं का दौर चल रहा हैं. वही भारत ने भी इस संकट पर गंभीर चिंता जताते हुयें सैन्य टकराहट को तुरंत रोकनें की पुरजोर अपील की हैं, लेकिन निश्चित तौर पर संकट ने चुनौतियों के बावजूद भारत की संतुलन साधते हुये खासी सफल मानी जाने वाली पश्चिम एशिया नीति के सम्मुख एक बार फिर से नयी चुनौतियॉ खड़ी कर दी हैं.इजरायल और ईरान दोनों ही भारत के मित्र और सामरिक साझीदार रहे हैं, लाखों की तादाद में खाडी देशों मे भारतीय कामगार विशेषज्ञ कार्य रत हैं. दोनों के साथ गहरे आर्थिक रिश्ते हैं. पिछले दशक से भारत की पशिम एशिया संबंधी डिप्लोमेसी ्खास तौर पर इजरायल और ईरान दोनो देशों को मिला कर बात करें तो, राष्ट्रीय हितों की कसौटी पर कुल मिला कर खरी उतरी कही जा सकती हैं, लेकिन इस बार की चुनौतियॉ थोड़ी भिन्न हैं. गत सात अक्टूबर के इजरायल पर हमास के हमले के बाद भारत ने शीर्ष राजनैतिक स्तर परअपनी फौरी प्रारंभिक़ प्रतिक्रिया में हमास हमले का विरोध करते हुयें इजरायल के साथ प्रतिबद्धता जताई थी, लेकिन इस बार भारत ने फौरी प्रतिक्रिया मे इस तनाव पूर्ण स्थति पर गंभीर चिंता जताते हुयें दोनों ही पक्षों से संयम बरतने, तत्काल युद्ध रोकनें और डिप्लोमेसी के जरिये मामला हल करने का आग्रह किया . भारत के विदेश मंत्रालय ने भी सम्बद्ध बयान जारी कर के कहा कि क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता बनायें रखना सब से जरूरी हैं.
इजरायल और ईरान दोनों ही भारत के मित्र, सामरिक साझीदार रहे हैं, ईरान के साथ भारत के साथ गहरे आर्थिक रिश्ते रहे हैं. सामरिक रिश्तों की बात करे तो अफगानिस्तान, पाकिस्तान और मध्य एशिया के साथ भारत के रिश्तों में ईरान की भूमिका अहम रही हैंऔर पिछले एक दशक से इजरायल के साथ भी भारत के रिश्तें प्रगाढ हुये हैं.
इसी तनावपूर्ण स्थति के छींटें भारत पर पड़े दो फौरी मुद्दों का यहा अगर जिक्र करे तों, गत सप्ताह ईरान के सुरक्षा बलों ने हारमूस की खाड़ी के निकट गत १३ अप्रैल को एक इजरायली वाणिज्य जल पोत को बंधक बना लिया जिस पर कुल सवार २५ कर्मियों में से १७ भारतीय कर्मी शामिल है. विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने इस क्षेत्र की स्थति पर चर्चा के दौरान ्गत दिवस ईरान और इजरायल के विदेश मंत्रियों से चर्चा के दौरान भारतीय कर्मियों की के इस मामले को भी उठाया और बंधको को फौरन रिहा करने की बात कही . राहत की बात यह्हैं कि ईरान ने इस मामले में भारतीय प्रतिनिधियों से बात करने देने की बात मान ली हैं. दूसरा मुद्दा पहले भी खासे विवादों मे रहा, भारत और इजरायल के सरकारी सहयोग से इजरायल भेजे जा रहे भारतीय कामगारो का विवास्पद मुद्दा. इन कामगारों का पहला जत्था वहा पहुंच चुका हैंअब गत सप्ताहांत भारतीयों के लियें इजरायल व ईरान ना जाने को ले कर विदेश मंत्रालय की जो एडवाईजरी आई , उस से जान जोखिम में दाल कर इजरायल जाने वाले भारतीयों के फिलहाल इस एडवाईजरी के जाने से रोक लग गई हैं .पश्चिम एशिया के इस संकट के मद्देनजर इन की सुरक्षा को ले कर चिंतित सरकार ने यह फैसला तो किया लेकिन पहले सवाल का जबाव अब भी नई मिल पाया कि क्या सरकार कोइजरायल के ऐसे हालात में वहा भारतीयों को जाने देना चाहिये था .ईरान और इसराइल में बढ़ते तनाव को देखते हुए भारत सरकार ने शुक्रवार की शाम को ट्रैवल एडवाइजरी जारी की है, जिसमें भारतीय नागरिकों से अगली सूचना तक ईरान और इसराइल की यात्रा नहीं करने की सलाह दी गई है
ग़ज़ा युद्ध शुरू होने के बाद वहां निर्माण क्षेत्र में काम करने वालों की सख़्त कमी हो गई है.ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इजरायल ने वहां काम कर रहे 80 हज़ार फ़लस्तीनी लोगों के वहां आने पर प्रतिबंध लगा दिया. अब इस सेक्टर में जान फूंकने के लिए इन इजरायल को कामगारों की ज़रूरत पड़ रही है.
गत सात अक्टूबर को इजरायल पर हमास के इसराइल पर हमले के बाद छिड़ी जंग का दायरा पूरे मध्य पूर्व तक फैलने का ख़तरा दो हफ़्ते पहले तभी पैदा हो गया था, जब इसराइल ने दमिश्क में ईरान के दूतावात के परिसर पर हमला किया था. इस हमले से क्षुब्ध इ्जराइल ने कहा है कि वो अपने तरीक़े और अपने हिसाब से चुने वक़्त पर ईरान को जवाब देगा. लगता तो यही हैं कि इजराइल की ओर से ईरान पर जवाबी हमला किए जाने की संभावनाएं ख़त्म नहीं हुई हैं जिस के मायनें यही होंगें कि फिर इस युद्ध के अनेक क्षेत्रों में फैलने के भीषण नतीजों को खारिज नही किया जा सकता हैं.बदलें की कार्यावाही की इस उहापोह के बीच अमरीकी राष्ट्रपति जो बायडन का यह बयान अहम हैं कि वह इस प्रकार के किसी बदलें की कार्यवाही में इजरायल का साथ नही देगा लेकिन दूसरीतरफ उन्होंने अपने सैनिको को इजरायल पर द्रोन हमलो कों रोकने के लिये अपने सैनिकों की पीठ भी थपथपा डाली. तमाम असहमतियोऔर गुटबंदियों के बीच विश्व के सभी ताकतवर हस्तियॉ भी मानती हैं कियुद्ध ना केवल भयावह मानवीय त्रासदी है बल्कि भारत सहित दुनिया भर मे इस के और भी दुष्परिणाम होंगे,
बहरहाल पहले भी भारत के कई मर्तबा दोनों देशों के साथ रिश्तों मे कभी कभार चुनौतियों आयी, कुल मिला कर कहे तो भारत ने पश्चिम एशिया नीति की चुनौतियों को सदैव ही संतुलन साधते हुये संबंध आगे बढाये हैं .दरसल इस क्षेत्र के देशों के बीच में ना केवल मतैक्य नही अपितु काफी कड़वाहटें है, बकौल विदेशी मामलों के एक जानकार के अनुसार भारत सदैव ही क्षेत्र के प्रमुख देशों मिस्त्र ,ईरान, इजरायल, कतर, सउदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात , जैसे देशों के साथ संबंधों में संतुलन बनाते हुये उन्हे गति देने की डिप्लोमेसी से काम लिया हैं. भारत के लियें पश्चिम एशिया सदैव ही चुनौती क्षेत्र रहा है, लेकिन तमाम चुनौतियों के बीच वह संतुलन बि ठाते हुये रिश्तों को गति देता रहा है , उम्मीद हैं कि इसी संतुलन से वह इस बार भी इस नयी चुनौती से निबट लेगा क्योंकि भीषण मानवीय त्रासदी के साथ साथ युद्ध की विकरालता ना केवल क्षेत्र की स्थिरता और सुरक्षा के लियें खतरा है, बल्कि स्वयं उस के लिये इस चुनौती से निबटना उस के राष्ट्रीय हितों , सामरिक साझीदारी, आर्थिक हितों और उस क्षेत्र में कम करने वालें लाखों कामगारो के हितों से भी जुड़ा है