वाशिंगटन, 28 जनवरी (वीएनआई) अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उस शासकीय आदेश पर हस्ताक्षर कर दिये हैं,जिससे अमरीका मे शरणार्थियों के प्रवेश को सीमित करने के लिए और ‘‘चरमपंथी इस्लामी आतंकियों को अमेरिका से बाहर रखने के लिए' सघन जांच के नए नियम तय किये गये है. मानव अधिकार वादियो ने इस आदेश की आलोचना करते हुए इसे अप्रवासियो के लिये भेदभावपूर्ण बताया है.
राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद अपने पहले पेंटागन दौरे में ट्रंप ने इस शासकीय आदेश पर हस्ताक्षर किए. हस्ताक्षर करने के बाद ट्रंप ने कहा, ‘‘मैं चरमपंथी इस्लामी आतंकियों को अमेरिका से बाहर रखने के लिए सघन जांच के नए नियम स्थापित कर रहा हूं. हम उन्हें यहां देखना नहीं चाहते.' ट्रंप ने कहा, ‘‘हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि हम उन खतरों को अपने देश में न आने दें, जिनसे हमारे सैनिक विदेशों में लड रहे हैं.शासकीय आदेश अमेरिकी शरणार्थी प्रवेश कार्यक्रम को 120 दिन के लिए तब तक निलंबित करता है जब तक इसे ‘‘सिर्फ उन देशों के नागरिकों के लिए' पुनर्भाषित न कर दिया जाए जिनकी ट्रंप के कैबिनेट के सदस्यों के अनुसार उनकी पूरी तरह जांच की जा सकती है. यह आदेश इराक, सीरिया, ईरान, सूडान, लीबिया, सोमालिया और यमन के सभी लोगों को 30 दिन तक अमेरिका में दाखिल होने से रोकता है.
हम सिर्फ उन्हीं को अपने देश में आने देना चाहते हैं, जो हमारे देश को सहयोग देंगे और हमारी जनता से गहरा प्रेम करेंगे.' नए रक्षामंत्री जनरल (सेवानिवृत्त) जेम्स मैटिस और उपराष्ट्रपति माइक पेंस के साथ खडे ट्रंप ने कहा, ‘‘हम 9/11 के सबक को और पेंटागन में शहीद हुए नायकों को कभी नहीं भूलेंगे. वे हममें से सर्वश्रेष्ठ थे. हम उनका सम्मान सिर्फ अपने शब्दों से ही नहीं, बल्कि हमारे कार्यों से भी करेंगे. आज हम वही कर रहे हैं शासकीय आदेश ‘‘विदेशी आतंकी के अमेरिका में प्रवेश से देश की सुरक्षा' कहता है कि 9/11 के बाद अमेरिका ने जो कदम उठाए, वे आतंकियों का देश में प्रवेश रोकने में कारगर नहीं रहे हैं.
इसमें कहा गया, ‘‘विदेशों में जन्मे बहुत से लोगों को 11 सितंबर 2001 के बाद से आतंकवाद संबंधी गतिविधियों में या तो दोषी करार दिया गया है या आरोपी बनाया गया है. इनमें वे विदेशी नागरिक भी शामिल हैं, जो अमेरिका में पर्यटक, छात्र या रोजगार वीजा लेकर आए थे या फिर अमेरिका में शरणार्थी पुनर्वास कार्यक्रम के तहत यहां आए थे.'
इसमें कहा गया कि कई देशों में युद्ध, भुखमरी, आपदा और असैन्य अशांति से बिगडती स्थिति के कारण यह आशंका बढ गई है कि आतंकी अमेरिका में दाखिल होने के लिए कोई भी माध्यम अपनाएंगे. इसमें कहा गया कि वीजा जारी करते समय अमेरिका को सतर्क रहना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जिन्हें मंजूरी दी जा रही है, उनका इरादा अमेरिकियों को नुकसान पहुंचाने का न हो और उनका संबंध आतंकवाद से न हो.
शासकीय आदेश अमेरिकी शरणार्थी प्रवेश कार्यक्रम को 120 दिन के लिए तब तक निलंबित करता है जब तक इसे ‘‘सिर्फ उन देशों के नागरिकों के लिए' पुनर्भाषित न कर दिया जाए जिनकी ट्रंप के कैबिनेट के सदस्यों के अनुसार उनकी पूरी तरह जांच की जा सकती है. यह आदेश इराक, सीरिया, ईरान, सूडान, लीबिया, सोमालिया और यमन के सभी लोगों को 30 दिन तक अमेरिका में दाखिल होने से रोकता है.
इसी बीच पाकिस्तान की छात्र कार्यकर्ता और शांति के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मलाला यूसुफजई ने कहा कि वह शरणार्थियों को लेकर डोनाल्ड ट्रंप के आदेश से ‘‘अत्यंत दुखी' हैं. मलाला ने ट्रंप से अनुरोध किया कि वह दुनिया के सबसे असुरक्षित लोगों को अकेला ना छोडें. पाकिस्तान में लडकियों के लिए शिक्षा की खुलकर वकालत करने वाली 19 वर्षीय मलाला को वर्ष 2012 में तालिबानी आतंकवादियों ने सिर में गोली मार दी थी.
मलाला ने कहा, ‘‘मैं अत्यंत दुखी हूं कि आज राष्ट्रपति ट्रंप हिंसा और युद्धग्रस्त देशों को छोडकर भाग रहे बच्चों, माताओं और पिताओं के लिए दरवाजे बंद कर रहे है.' इस बाबत आदेश पर ट्रंप के हस्ताक्षर करने के कुछ देर बाद मलाला ने एक बयान में कहा, ‘‘दुनियाभर में अनिश्चितता और अशांति के इस समय में, मैं राष्ट्रपति ट्रंप से अनुरोध करती हूं कि वह विश्व के सबसे असहाय बच्चों और परिवारों की ओर से मुंह ना मोडें.' मलाला शांति के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की विजेता हैं.
उन्हें भारत के शिक्षा कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी के साथ संयुक्त रुप से 2014 में यह पुरस्कार दिया गया. अब इंग्लैंड में रह रही मलाला ने कहा, ‘‘मैं बहुत दुखी हूं कि अमेरिका शरणार्थियों और प्रवासियों का स्वागत करने के अपने गौरवशाली इतिहास को पीछे छोड रहा है. इन लोगों ने आपके देश को आगे ले जाने में मदद की और वे एक नई जिंदगी का उचित मौका मिलने के बदले कडी मेहनत करने के लिए तैयार हैं