मजरूह सुल्तानपुरी की पुण्य तिथि पर

By Shobhna Jain | Posted on 24th May 2020 | मनोरंजन
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नई दिल्ली, 24 मई, (सुनील कुमार/वीएनआई) मजरूह सुल्तानपुरी (जन्म 1 अक्टूबर, 1919, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 24 मई, 2000, मुम्बई) भारतीय हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध शायर और गीतकार थे। इनका पूरा नाम 'असरार उल हसन ख़ान' था। इनके लिखे हुए कलाम में ज़िंदगी के अनछुए पहलुओं से रूबरू कराने की ज़बरदस्त क्षमता थी। इसके साथ ही उन्होंने प्रेम को भी नया रंग और ताजगी प्रदान करने की पूरी कोशिश की।

मजरूह ने लखनऊ  से यूनानी पद्धति की मेडिकल की परीक्षा उर्तीण की थी। इसके बाद में वे एक हकीम के रूप में काम करने लगे थे। बचपन के दिनों से ही मजरूह सुल्तानपुरी को शेरो-शायरी करने का काफ़ी शौक़ था और वे अक्सर सुल्तानपुर में हो रहे मुशायरों में हिस्सा लिया करते थे। इस दौरान उन्हें काफ़ी नाम और शोहरत भी मिली। उन्होंने अपनी मेडिकल की प्रैक्टिस बीच में ही छोड़ दी और अपना सारा ध्यान शेरो-शायरी की ओर लगाना शुरू कर दिया। इसी दौरान उनकी मुलाकात मशहूर शायर 'जिगर मुरादाबादी' से हुई।

वर्ष 1945 में  एक मुशायरे में हिस्सा लेने के लिए मजरूह सुल्तानपुरी मुम्बई  आए। मुशायरे के कार्यक्रम में उनकी शायरी सुनकर मशहूर निर्माता ए.आर. कारदार उनसे काफ़ी प्रभावित हुए और उन्होंने मजरूह सुल्तानपुरी से अपनी फ़िल्म के लिए गीत लिखने की पेशकश की।

 जिगर मुरादाबादी की सलाह पर मजरूह सुल्तानपुरी फ़िल्म में गीत लिखने के लिए राजी हो गए।  मजरूह ने नौशाद  के  लिए पहला  गीत  लिखा  'जब उसने गेसू बिखराए, बादल आए झूम के' । मजरूह के गीत लिखने के अंदाज से नौशाद काफ़ी प्रभावित हुए।  मजरूह ने  नौशाद   के लिए 1946 में आई फ़िल्म शाहजहाँ के लिए गीत 'जब दिल ही टूट गया' लिखा, जो बेहद लोकप्रिय हुआ। इसके बाद मजरूह सुल्तानपुरी और संगीतकार नौशाद   ने 'अंदाज', 'साथी', 'पाकीजा', 'तांगेवाला', 'धरमकांटा' और 'गुड्डू' जैसी फ़िल्मों में एक साथ काम किया। फ़िल्म 'शाहजहाँ' के बाद 'अंदाज' , 'मेहन्दी' जैसी फ़िल्मों में अपने  गीतों की सफलता के बाद मजरूह सुल्तानपुरी बतौर गीतकार  शायर  फिल्मों  में छा  गए । 

अपनी वामपंथी विचार धारा के कारण मजरूह सुल्तानपुरी को कई बार कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ा। कम्युनिस्ट विचारों के कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा। मजरूह सुल्तानपुरी के सिने कैरियर में उनकी जोड़ी संगीतकार एस.डी. बर्मन के साथ भी खूब जमी। एस.डी. बर्मन और मजरूह सुल्तानपुरी की जोड़ी वाली फ़िल्मों में 'पेइंग गेस्ट', 'नौ दो ग्यारह', 'सोलवां साल', 'काला पानी', 'चलती का नाम गाड़ी', 'सुजाता', 'बंबई का बाबू', 'बात एक रात की', 'तीन देवियां', 'ज्वैलथीफ़' और 'अभिमान' जैसी सुपरहिट फ़िल्में शामिल हैं। मजरूह सुल्तानपुरी के महत्त्वपूर्ण योगदान को देखते हुए वर्ष 1993 में उन्हें फ़िल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' से नवाजा गया। इसके अलावा वर्ष 1964 मे प्रदर्शित फ़िल्म 'दोस्ती' में अपने रचित गीत 'चाहूँगा मैं तुझे सांझ सवेरे' के लिए वह सर्वश्रेष्ठ गीतकार के 'फ़िल्म फ़ेयर' पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए।

जाने-माने निर्माता-निर्देशक नासिर हुसैन की फ़िल्मों के लिए मजरूह सुल्तान पुरी ने सदाबहार गीत लिखकर उनकी फ़िल्मों को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। मजरूह सुल्तानपुरी ने सबसे पहले नासिर हुसैन की फ़िल्म 'पेइंग गेस्ट' के लिए सुपरहिट गीत लिखा। उनके सदाबहार गीतों के कारण ही नासिर हुसैन की अधिकतर फ़िल्में आज भी याद की जाती हैं। इन फ़िल्मों में ख़ासकर 'फिर तीसरी मंजिल', 'बहारों के सपने', 'प्यार का मौसम', 'कारवाँ', 'यादों की बारात', 'हम किसी से कम नहीं' और 'जमाने को दिखाना है' जैसी कई सुपरहिट फ़िल्में शामिल हैं।

मजरूह  की मुख्य फ़िल्में 'अंदाज', 'साथी', 'पाकीजा', 'तांगेवाला', 'धरमकांटा', 'पेइंग गेस्ट', 'नौ दो ग्यारह', 'काला पानी', 'चलती का नाम गाड़ी', 'बंबई का बाबू', 'तीन देवियां', 'ज्वैलथीफ़' और 'अभिमान' आदि। मजरूह सुल्तानपुरी ने अपने चार दशक से भी अधिक लंबे सिने कैरियर में लगभग 300 फ़िल्मों के लिए 4000 गीतों की रचना की। उनके   ज्यादातर   गीत शायरी में  बेमिसाल थे ,गीतों  में बातचीत  का  अंदाज  पेश  करना  उन्ही  की पहल  थी । इस महान शायर और गीतकार ने 24 मई, 2000 को इस दुनिया को अलविदा  कह दिया।


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