सुनील कुमार ,वी एन आई ,नयी दिल्ली 18 -03-2018
कहा जाता है की आकर्षक चेहरा आँखों को भाता है ,आकर्षक शख्सियत दिल को भाती है । शशी कपूर का चेहरा व् शख्सियत दोनों ही आकर्षक थे यानी आँखों व् दिल दोनों को भाते थे ।
शशी कपूर का जन्म 18 मार्च 1938 को हुआ ,निधन 4 दिसंबर 2017 को मुंबई में हुआ!पिता थे अभिनेता पृथ्वी राज कपूर माता रामसरनी कपूर । उनका जन्म का नाम था बलबीर राज कपूर । अभिनय से प्रेम उनके खून में था पिता पृथ्वीराज कपूर और भाई राजकपूर, शम्मी कपूर फिल्मों के जाने-माने नाम थे । नन्हा शशी भी फिल्मों से जुड़ गया एक नन्हे अभिनेता के रुप में । "आग" और "आवारा" में उन्होंने राजकपूर के बचपन की भूमिका निभाई। इन फिल्मों में वो नन्हे राज कपूर ही लग रहे थे कुछ समय बाद उन्होंने पिता के थिएटर में अभिनय करना शुरू कर दिया । इस के बाद वो शेक्सपियेराना से जुड़ गए, ,जो की ब्रिटेन की मण्डली थी -और भारत के दौरे पर थी जहां उनकी मुलाकात मंडली के संचालक की पुत्री जेनिफर से हुई।जेनिफर शशि से उम्र में बड़ी थीं ,कई नाटकों में उन्होंने शशी की माँ का रोल अदा किया था । जेनिफर ने शशि के लिए खुद को भारतीयता में ढाल लिया और दोनों ने विवाह रचा लिया । 1984 में जेनिफर का निधन हो गया!
नौजवान शशी कपूर की पहली फिल्म थी 1961 की यश चोपड़ा की फिल्म "धर्म पुत्र" इसके बाद वे विमल राय की फिल्म में नजर आएं, लेकिन सफलता उनसे दूर ही रही ।
कुछ बरस बाद उनकी फिल्म "जब जब फूल खिले" सफल साबित हुई ,और शशी एक सफल हीरो बन गए । इस के बाद उनकी सफल मल्टी स्टारर फिल्म "वक्त" प्रदर्शित हुई। इन फिल्मों की सफलता के बाद शशि की छवि रोमांटिक हीरो की बन गई। इन दोनों सफल फिल्मों के बाद सन 1975 -76 तक उनकी ज्यादातर फिल्मे सफल रहीं और उनके गुड लुक्स की खूब चर्चा होती थी । शशी की जोड़ी शर्मीला टैगोर और नंदा के साथ खूब पसंद
की गयी । फिल्म दीवार में उनका संवाद माँ "मेरे पास माँ है " खूब लोकप्रिय हुआ । उनकी और अमिताभ की फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल रहीं ।
कुछ अन्य फ़िल्में जिनमे शशी का काम खूब पसंद किया गया हैं -सुहाना सफर ,माई लव ,आ गले लग जा ,पाप और पुण्य ,महोब्बत इसको कहते हैं ,हसीना मान जाएगी,रुठा न करो ,कन्या दान ,शर्मीली ,फकीरा ,चोर मचाये शोर ,सत्यम शिवम सुंदरम ,रोटी कपड़ा और मकान ,कभी कभी ,सिलसिला
शशी कपूर भारतीय सिनेमा के पहले अभिनेता हैं जो भारतीय फिल्मों से उड़ान भरते हुए विदेशी फिल्मों तक पहुंचे । शशि कपूर और लीला नायडू की जोड़ी को लेकर बनी 'द हाउसहोल्डर' ने उन्हें विदेशों में भी पहचान दिलाई इसके बाद आई शेक्सपियर वाला (1965), 'हीट एंड डस्ट' (1982) और 'सिद्धार्थ' (1972) जैसी फ़िल्मों ने शशि कपूर की प्रतिभा को देश /विदेश में नई ऊंचाइयां दीं।
शशी फिल्म प्रोडक्शन भी उतरे। अस्सी के दशक में शशि ने "जुनून" फिल्म का निर्माण किया। "कलयुग", "36 चैरंगी लेन", "विजेता", "उत्सव" जैसी फिल्मों से उन्होंने फिल्म प्रोडक्शन जारी रख्खा आ । ये सभी फ़िल्में बम्बईया फिल्मों से अलग और कलात्मक फ़िल्में थीं
वर्ष 1998 में प्रदर्शित फिल्म "जिन्ना" उनके करियर की आखिरी फिल्म थी शशी ने लगभग 200 फिल्मों में काम किया है। उन्हें दादा साहिब फाल्के अवार्ड से भी नवाजा गया ।
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