नई दिल्ली 26 फरवरी ( शोभना जैन , वीएनआई) घमासान युक्रेन रूस युद्ध के गत बाईस फरवरी को दो बरस पूरे हो गये, यानि दो वर्ष पूर्व रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने युक्रेन पर जो सैन्य आक्रमण किया था , दो बरस बाद वह अब भी जारी हैं. रूस और विशेष कर युक्रेन व उन की ताकतवर महाशक्तियों के सक्रिय और सहयोग से अत्याधुनिक हथियारों के बल पर युद्ध क्षेत्र बन चुके इस स्थान पर एक बार फिर तबाही और भीषण होती जा रही हैं.पूरी दुनिया पर इस युद्ध का गहरा असर दिखाई पड़ रहा हैं. भीषण युद्ध से ना केवल इन दोनों देशों की आर्थिक समाजिक तबाही हो रही हैं बल्कि ्पूरी दुनिया की अर्थ व्यवस्था ही इस के चपेटे हैं.विश्व व्यवस्था के नये समीकरण बन् रहे है, बदल रहे हैं. वर्ष 1945 में दूसरे विश्व युद्ध के बाद योरोप की भूमि पर अब तक का सब से लंबा और भीषण युद्ध आखिर कब रूकेगा,कितना लंबा और खिंचेगा. इस की परिणति क्या होगी. अमरीका नीत नाटों गठबंधन से प्राप्त भारी सहायता के बल पर युद्ध लड़ रहा एक छोटा सा देश यूक्रेन क्या कभी बस पायेगा.युद्ध की विभीषका के बीच मानवीय त्रासदी सुर्खियॉ बन कर रह गयी हैं, सम्बद्ध पक्षों ने मानों युद्ध उन्माद की वजह से इस पर ऑख कान मूंद रखे हो. बच्चों की किलकारियों से कभी गूंजते घरों मे उन बच्चो के लहूलहूहान शवों के साथ घरों का खंड्हरों मे तब्दील हो जाना, सफेद बर्फ की चादर मे किसी कब्रिस्तान जैसे लगते सुविधाहीन घरों मे युद्ध मे लापता/ मारे गयें जवान बेटों का रूखी ऑखों से मातम मनाते बुजुर्ग मॉ बाप, पतियों, भाईयों और पिताओं की बाट जोहती युवतियॉ और मासूम बच्चों के चेहरों की उदासी सब कुछ देख कर मन का एक कोना निर्जीव हो जायें. युद्ध की भीषणता और उग्र होती जा रही हैं. हाल ही में अमेरिका ने मास्को पर आर्थिक रूप से शिकंजा और कसने के लियें 500 नए प्रतिबंध लगाये हैंजिसमें रक्षा से जुड़ी मशीनें और उपकरण शामिल हैं.इसके अलावा रूस की करीब 100 संस्थाओं पर नए निर्यात प्रतिबंध भी लगाए जाने की घोषणा की गई हैं.ब्रिटेन व यूरोपीय संघ ने भी नए प्रतिबंधों का एलान किया हैं.लेकिन चिरंतन सवाल यही हैं इस युद्ध से आखिर हासिल क्या हो रहा हैं, और क्या हासिल होगा ?
यूक्रेन पर रूस ने 24 फरवरी, 2022 को हमला किया था लेकिन युद्ध को उसने जितना आसान समझा था, वैसा नहीं हुआ. यूक्रेन ने अमरीका नीत नाटों गठबंधन की मदद से मुकाबला किया और कीव पर कब्जे की रूस की कोशिशों को नाकाम कर दिया।,हालांकि, बाद में यूक्रेन के चार क्षेत्रों पर कब्जा करने में रूस कामयाब रहा. यूक्रेन की नेशनल पुलिस के अनुसार, 30 हजार से अधिक लोग लापता हैं, जिनका परिवार के लोगों से संपर्क अब तक नहीं हो पाया ह,। परिवार के लोग उनकी तलाश में भटक रहे हैं. रूस का भी जान माल का भारी नुकसान हुआ, आर्थिक तबाही का सामना करना पड़ा. हालांकि जानकार मानते हैं कि रूस पर जी- सेवन देशों की ओर से प्रतिबंधों को लागू करने का कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ा है रूस की ऊर्जा, आवश्यक वस्तुओं और टेक्नोलॉजी तक पहुंच में कटौती के बावजूद, इन प्रतिबंधों ने रूस की आक्रामकता को नहीं रोका है, न ही यह प्रतिबंध रूस की अर्थव्यवस्था को बहुत ज्यादा ध्वस्त कर पाए हैं. रूस इनमें से कई प्रतिबंधों को दरकिनार करने और उनके प्रभावों को कम करने में सक्षम रहा है अमरीका ने पिछले सप्ताह ही व्लादिमीर पुतिन के धुर विरोधी व रूस के मुख्य विपक्षी नेता एलेक्सी नवलनी की जेल में रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत के बाद जवाबी प्रतिबंधों का वादा किया था.बाइडन ने गत शुक्रवार को नए प्रतिबंधों की घोषणा करते हुए कहा कि अमेरिका यूक्रेन का समर्थन करता रहेगा, अमेरिकी ने कहा कि कुछ प्रतिबंध ऐसे हैं जो नवलनी की मौत के लिए जिम्मेदार हैं, लेकिन ज्यादातर युद्ध उपकरणों से जुड़ी होंगी अमेरिका ने रूस पर पहले से बड़ी तादाद में प्रतिबंध लगाए हैं, जिनमें रूसी अधिकारी, व्यापारी, बैंक और कंपनियां शामिल हैं,दूसरी ओर, ब्रिटेन ने भी रूस पर प्रतिबंधों की नई घोषणाएं की हैं. और इन समीकरणो के साथ जुड़ा एक अहम पक्ष हथियारों का कारोबार भी हैं. यहा संक्षिप्त रूप से इस युद्ध मे इस्तेमाल किये जा रहे केवल ड्रोन की चर्चा करे तो युद्ध में दोनों देशों ने छोटे और फुर्तीले ड्रोन पर अपना फोकस रखा है। ये मानव रहित ड्रोन टैंकों पर हावी होते दिख रहे हैं। दोनों सेनाएं इससे दुश्मनों को को खत्म कर रही हैं। दूसरे देश भी ड्रोन पर ध्यान दे रहे हैं, जिस कारण दुनिया में सैन्य ड्रोन का मार्केट 2030 तक 260 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। यह आक्रमण से पहले की तुलना में दस गुना ज्यादा है.
और अगर युद्ध के भारत पर पड़ रहे प्रभावों और भारत की भूमिका की बात करें तो भारत ने अभी तक इस युद्ध में निषक्ष जैसी ही भूमिका अदा की हैं उस ने युद्ध को रोके जाने पर तो बल दिया है लेकिन साथ ही सैन्य साजो सामान के अपने सब से बड़े सप्लायर रूस की खुल कर आलोचना भी नही की हैं. इस संदर्भ में यह जानना अहम होगा कि इस युद्ध के दौरान भारत को रूस से बड़ी तादाद में तेल मिल पाया जिस से भारत तेल की किल्लत का सामना करने से बच गया. गौरतलब हैं कि भारत तेल की अपनी घरेलू खपत का90 प्रतिशत आयात करना पड़ता हैं.वैसे भारत के रूस के साथ अमरीका और नाटो गठबंधन के साथ भी अच्छे संबंध बनाये रखे हुये हैं. इसी बीच एक दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम सामने आया है, जिस के तहत सिक्योरिटी हेल्पर्स के तौर पर रूस गए भारत के कम से कम तीन नागरिकों को यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूसी सेना के साथ मिलकर लड़ने के लिए बाध्य किया गया.भारत ने कहा है कि रूसी सेना की मदद कर रहे भारतीय नागरिकों को जल्द वहां से ' वापस लायें जाने को' लेकर भारत ने रूसी अधिकारियों से बात की है, साथ ही विदेश मंत्रालय ने भारतीय नागरिकों से कहा है कि वो सावधानी बरतें और रूस-यूक्रेन युद्ध से दूरी बनाए रखें. एक अखबार के अनुसार गत वर्ष कम से कम 100 भारतीय नागरिकों को रूसी सेना के लिए काम पर रखा गया है.
यूक्रेन में युद्ध के अहम वैश्विक भू-राजनीतिक असर की अगर बात करे तो स्वीडन और फिनलैंड, जिन्होंने पहले रूस को नाराज करने के डर से नाटो में शामिल होने का विरोध किया था, उन्होंने ने भी अब गठबंधन से सुरक्षा की मांग की है. यूक्रेन ने भी नाटो और यूरोपीय संघ में शामिल होने के अपने प्रयासों को बढ़ाया है, हालांकि, सभी देश किसी भी पक्ष का साथ देने से पहले अपने राष्ट्रीय हितों पर ध्यान दे रही हैं जो स्वाभाविक भी हैं. तुर्की ने रूस के खिलाफ प्रतिबंधों में शामिल नहीं होने का फैसला किया है, हालांकि तुर्की नाटो का सदस्य है और इस युद्ध में उसने खुद को एक तटस्थ मध्यस्थ के रूप में रखना ज्यादा सही माना हैं.
इस युद्ध के चलतें ्वैश्विक समीकरण तो बदल रहे हैं. पुतिन ने युक्रेन पर हमले के वक्त इस युद्ध को जितना आसान समझा था, वह हुआ नहीं, पिछलें दो वर्षो से युद्ध चल रहा हैं पश्चिमी देशों,नाटों गठबंधन द्वारा भारी तादाद में असलाऔर मदद झोंकनें के बावजूद ऐसा लगता हैं क़ी पश्चिम की रणनीति यहा करगर नहें हो पाई हैं रूस एशिया और अफ्रीकी देशों के तरफ देख रहा है, और इस सब के बीच भारत जहा इस युद्ध में निष्पक्ष की भूमिका निभा रहा हैं. वही चीन अपनी रणनीति के तहत एशिया मे शक्ति संतुलन के नये समीकरण बनने पर नजर रखे हुये है .
बहरहाल मौजूदा हालात में बदलती वैश्विक व्यवस्था और उलझे वैश्विक समीकरणों, तल्खियों के बीचएक बहुत पुरानी हिंदी फिल्म "आम्रपाली" के वो संवाद याद आते है जिस मे नायक युद्ध समाप्ति के बाद विजय उन्माद मे नायिका को युद्ध क्षेत्र में ला कर नायिका कोअपमानित करने वालो के खून से सनें क्षत विक्षत शवो को उसे दिखाता है, लेकिन नायिका उस के अपमान का बदला लेने के लिये लड़े गये युद्ध के खून खराबे से इस कदर द्रवित होती है कि खून खराबे के लिये खुद को दोषी मानते हुये महत्मा बुद्ध की शरण में चली जाती है. अनंत काल से युद्ध हो रहे हैं, चाहे वो आज के दौर का इजरायल- हमास युद्ध हो या रूस युक्रेन युद्ध.लेकिन हवाओं मे अनंत काल से चला आ रहा आज भी वही सवाल अनुतरित्त हैं... आखिर इस विभीषिका से हासिल क्या ? समाप्त
साभार- लोकमत