पाक से कैदियों की अदला-बदली हो

By Shobhna Jain | Posted on 24th Dec 2018 | VNI स्पेशल
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नई दिल्ली, 24 दिसंबर, (शोभना जैन/वीएनआई)  पाकिस्तान जेल में 6 सालों की सजा काटने के बाद आखिरकार मुंबई के सॉफ्ट्वेयर इंजीनियर हामिद अंसारी की घर वापसी हो गई है। हामिद उन विरले भारतीयों मे से है जो पाकिस्तान से भले ही मानसिक शारीरिक यातनाये भुगतने के बाद घर तो लौट आया लेकिन सभी का नसीब हामिद जैसा नही होता. पाकिस्तान के अब तक के रूख को देखे तो  हामिद की वापसी असंभव सी दिखती थी, यहा तक कि पाकिस्तान ने  नब्बे बार भारत सरकार द्वारा हामिद से भारतीय उच्चायोग के अधिकारियों को मिलने देने के  सभी प्रयासों को ठुकरा दिया लेकिन भारत की सिविल सोसायटी की पहल पर पाकिस्तान सिविल सोसायटी के सहयोग ,पाकिस्तान के नकारात्मक रूख के बावजूद भारत सरकार के अनथक प्रयासो और हामिद के परिवार के असंभव को संभव बनाने की लड़ाई  के चलते इमरान सरकार ने अंतराष्ट्रीय जगत मे अपनी 'मानवाधिकारवादी इमेज' बनाने के चलते भले ही  हामिद को रिहा कर भारत वापस भेज दिया हो लेकिन अगर ताजा आंकड़ों पर गौर किया जाए तो ये चौंकाने वाले हैं।  

पाकिस्तानी जेलों में भारतीय नागिरक सजा काट रहे हैं और भारतीय जेलों में  में  भी पाकिस्तानी नागरिक सजा काट रहे हैं.  यहा तक कि 1971 के भारत पाक युद्ध  के अनेक भारतीय युद्ध बंदियों के  अब भी ्पाकिस्तान की जेलों मे  यातनाये झेलने की खबर भी जब तब सुर्खियों मे रहती है. उन मे से अनेक ने तो वही की अंधेरी जेल कोठरियों में परदेस की रोशनी देखने की आस और अमानवीय यंत्रणाओ के चलते दम तोड़ दिया और कुछ के भी अब भी शारीरिक,मानसिक संत्रास झेलने की खबरे सिहरन पैदा करती हैं ्लेकिन भारत सरकार के इन  जीवित बचे हुए भारतीयों को रिहा करने के तमाम प्रयासों की पाकिस्तान ने यह कह कर अनदेखी ही कि है उन के पास ऐसे कोई युद्ध बंदी है ही नही. 

भूले भटके पाकिस्तान सीमा में पहुंच गये या पाक द्वारा पकड़ लिये गये कितने ही भारतीय नागरिको को घर वापसी नसीब नही हो पाई. पाकिस्तानी जेल में सरब जीत की क्रूर मौत अब भी हमारे दिमागो पर हावी है. मानसिक शारीरिक प्रताडनाओं को निरंतर झेल रहे कुलदीव जाधव आज भी अपने वतन वापसी का इंतजार है, इस मामले पर  हेग स्थित अंतराराष्ट्रीय न्यायालय अगले महीने फिर से सुनवाई शुरू कर रहा है , लेकिन पाकिस्तान के रूख के चलते  हालांकि बहुत उम्मीद नही है फिर भी  भारत सरकार अपने नागरिक को पाक चंगुल से आजाद करवाने की लड़ाई एक आस से लड़ रही  है. ऐसे हालात मे हामिद की वापसी ऐसे निर्दोष  ्नागरिकों की रिहाई की एक सीख बन सकती है. भारत पाक संबंधों मे रह रह कर उभरती तल्खियों मे  हामिद  जैसे मामले उम्मीद की लौ बन सकते है,  और एक सबक बन सकते है कि  इस तरह के  मानवीय मामलों को विद्वेष बढाने के ह्थकंडे ्के रूप में इस्तेमाल नही किया जाये.  पाकिस्तानी जेल में  सरबजीत की क्रूर मौत ने जहा  भारत में रोष व्यक्त किया गया वही हामिद मामले मे  पाकिस्तान के तमाम नकारात्मकता के बावजूद हामिद की वापसी से भारत मे जिस तरह से हर्ष व्यक्त किया गया हैं वह खास तौर पर पाकिस्तान के लिये मानवीय कदमों के जरिये राजनयिक रिश्ते सुधारने की सीख  बन सकती है."ट्रेक टू डिप्लोमेसी" इसी कड़ी का अंग होती है और फिर जब जनता के बीच आपसी संपर्क बढाने को कूटनीति का अहम सूत्र माना जाता है तो क्यों न/न ऐसे मामलो को मानवीय आधार पर हल करने पर जोर दिया जाये. इस साल जुलाई में प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक 357 पाकिस्तानी नागरिक भारतीय जेलों में बंद हैं, इनमें 249 आम नागरिक हैं जबकि 108 मछुआरे हैं। इसी प्रकार से 471 भारतीय नागरिक पाकिस्तान की जेलों में बंद है.

पाकिस्तान ने हामिद के साथ भी वही अमानवीय व्यवहार किया जैसा वह वहा की जेलों मे बंद अन्य भारतीयों के साथ करता आया है.2012 मे पाकिस्तान पहुंचने के बाद तीन बरस तक तो पाकिस्तान उस ्के बारे मे कोई जानकारी देने से ही इंकर करता रहा.हामिद ने भी बताया कि उसे किस कदर यातनाये दी गई.ऑनलाईन मित्रता के जरिये एक अनदेखी  एक  पाकिस्तानी युवती के प्रेम मे बंधा और फिर उस युवती के कहने पर उसे जबरन विवाह से बचाने की गुहार सुन हामिद नेक नीयती से पाकिस्तान मे घुस तो गया लेकिन हमेशा की तरह  पाकिस्तानी शिकंजे में फंसे आम भारतीय पाकिस्तान  में जासूस ठहरा दिया गया जहा सैनिक अदालत मे उस पर मुकदमा चला, तीन वर्ष की कैद भी हुई और कैद पूरी होने पर उसे भारत को सौंप भी दिया गया लेकिन सभी की नियति हामिद जैसी नही हो सकती है. जरूरत इस बात की है कि ऐसे मामलों को मानवीय तरीके से हल ्किया जाये, भारत  अलबत्ता इस तरह के बंदियों के प्रति  मानवीय रवैया अपनाता रहा है ,लेकिन पाकिस्तान मे  असैन्य प्रशासन पर हावी सेना और पाक गुपतचर एजेंसी के दबाव में हामिद जैसी वापसी यदा कदा ही देखने को मिलती है.जरूरत इस बात के है कि पाकिस्तान भारत के साथ  इस तरह के मामलो के लिये गठित तंत्र को प्रभावी बनाने में सहयोग करे. लगभग एक दशक पूर्व  गठित बंदियों के  संयुक्त न्यायिक समिति को पुनः प्रभावी बनाया जाये, जिस कि गत पॉच वर्षो से कोई बैठक ही नही हुई है.समिति ने सिफारिश की थी कि महिलाओं बच्चे और अपना मानसिक संतुलन खो चुके कैदियों को वापस उ्न के देश वापस भेज दिया जाये. साभार- लोकमत (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान संपादिका है)


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