नई दिल्ली, 18 जनवरी, (शोभना जैन/वीएनआई), भारत के पंरपरागत मित्र माने जाने वाले और अपने मित्र देशो की सूची मे भारत को 'सबसे अव्वल' रखने की 'नीति' का जाप करने वाले माल्दीव का रवैया हालांकि पिछले काफी समय से इस नीति के ठीक उलट नजर आता रहा है,और हिंद महासागर मे भारत का यह अहम रणनीतिक सहयोगी देश न केवल भारत की मित्रता की अनदेखी करते हुए चीन की तरफ झुक रहा है,बल्कि वहा सरकार समर्थको से भी भारत विरोधी हवा को प्रश्र्य ही मिल रहा है. तनावपूर्ण रिश्तो के इस दौर में भारत की चिंंताओ और सरोकारो पर ध्यान देते हुए इस सप्ताह माल्दीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन अब्दुल गयूम ने अपने विशेष प्रतिनिधि के रूप मे विदेश मंत्री अब्दुल रासित को भारत भेजा, जिस से रिश्तो मे आयी धुंध के कुछ छंटने की उम्मीद बंधी है. लेकिन यह भी तय है कि माल्दीव ने रिश्ते सुधारने अगर यह पहल की है तो धरातल पर भी इस कोशिश का असर दिखना चाहिये .
पिछले कुछ समय से रिश्तो मे चल रहे ठंडेपन के आलम मे दोनो देशो के बीच यह पहला उच्च स्तरीय राजनैतिक संपर्क था.प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात के दौरान श्री यामीन के विशेष प्रतिनिधि ने हालांकि दोहराया कि "इंडिया फर्स्ट" की नीति का पालन करते हुए माल्दीव भारत के साथ प्रगाढ संबंध बनाये रखने के लिये प्रतिबद्ध है.वैसे यह यात्रा माल्दीव के चीन के साथ आनन फानन मे बिना बहस के और वहा के विपक्ष को भरोसे मे लिये बिन मुक्त व्यापार समझौते-एफ टी ए के एक माह बाद हुई,जिस पर भारत की तरफ से चिंता उठना स्वाभाविक था क्योंकि माल्दीव ने "इंडिया फर्स्ट" की नीति की दुहाई देते हुए भारत के साथ सबसे पहले इस समझौते को करने की बात कही थी थी. देखना होगा कि भारत की दोस्ती को नजरदांज कर चीन की तरफ तेजी से झुकते माल्दीव क्या देर सबेर भारत की मित्रता की अहमियत समझेगा. प्रधान मंत्री ने भी माल्दीव को भरोसा दिलाया कि भारत सदैव ही माल्दीव का भरोसेमंद और निकट पड़ोसी बना रहेगा और उस की प्रगति और सुरक्षा का समर्थन करता रहेगा, अब गेंद माल्दीव के पाले मे है और भारत की नजर इस पर रहेगी को माल्दीव अपने आश्वासनो पर जमीनी तौर पर कैसे अमल करता है.
हालांकि भारत के प्रधान मंत्री और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से बातचीत मे माल्दीव के प्रतिनिधि ने चीन के साथ हुए करार पर भारत की चिंताओं ्को दूर करने की कोशिश करते हुए कहा कि इससे भारत के साथ उस के संबंधो पर कोई असर नही पड़ेगा और वह भारत् के साथ जल्द ही एफ टी ए समझौता करना चाहता है. लेकिन वहा तेजी से घट रहे घटनाक्रम में, जब कि वहा राष्ट्रपति चुनाव आसन्न है,राजनैतिक समीकरणो का अलग अंक गणित है,और फिर वहा सरकार समर्थक मीडिया भी भारत के खिलाफ अभियान छेड़े हुए है,जिस पर सरकार मौन सी नजर आती है, देखना है कि वहा का मौजूदा नेतृत्व कैसे आगे बढता है. दरअसल माल्दीव ्के पूर्व राष्ट्रपति ्नाशीद की गिरफ्तारी के बाद भारत से रिश्तों में तनाव आ गया था, क्योंकि नाशिद भारत के करीबी माने जाते हैं, और मौजूदा राष्ट्रपति श्री यमीन राजनैतिक समीकरणो के चलते अभी तो भारत के साथ दूरी रख चल रहे है। भारत के पड़ोस में मालदीव ही एकमात्र देश है, जहां मोदी बतौर पीएम अभी तक नहीं गए हैं। समझा जाता है कि मोदी ्मार्च 2015 में वहां जाने वाले थे, लेकिन पूर्व राष्ट्रपति नाशिद की गिरफ्तारी के बाद देश मे उत्पन्न अस्थिर स्थतियों की वजह से मोदी ने वहा जाना स्थगित कर दिया था, इस बातचीत मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मालदीव आने का न्योता भी ्दिया गया,अगर द्विपक्षीय संबंधों मे सकारात्मक गति आती है तो प्रधान मंत्री जल्द ही माल्दीव की यात्रा कर सकते है
गौरतलब हैं कि पिछले कुछ समय से लगभग की चार लाख की .्मुस्लिम बहुल आबादी वाला टापुओ का देश माल्दीव ्भारत की मित्रता को नजरदांज कर के चीन की और झुकता जा रहा है. उस का तर्क है कि भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते के पेशकश के बाद आनन फानन मे चीन के साथ इस समझौते को अविश्वास के नजरिये से नही देखा जाये. लेकिन इस तर्क मे दम नही नजर आता है, बात यही नही रूकती है. भारत विरोधी हवा के ही चलते ्पिछले दिनो विपक्ष के तीन स्थानीय काउंसलर्स को भारत के राजदूत अखिलेश मिश्रा से मिलने पर सस्पेंड कर दिए जाने की घटना भी सामने आई थी, और चीन के राजदूत की खुली आवाजाही के बावजूद श्री मिश्रा की आवाजाही पर अंकुश लगा दिया गया। इसके साथ ही वहां एक सरकार समर्थक अखबार ने नरेंद्र मोदी की आलोचना की थी और भारत को दुश्मन देश बताया था। तब मालदीव के राष्ट्रपति ने कहा था कि यह सरकार का नजरिया नहीं है और वह भारत को सबसे करीबी सहयोगी मानते हैं।लेकिन जाहिर है इस तमाम घटनाक्रम ने साउथ ब्लॉक को माल्दीव के साथ अपने साथ संबंधो पर ्नये सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया. माल्दीव के विदेश मंत्री ने हालांकि भारत के आला कमान को भरोसा देने की कौशिश की कि चीन के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट होने से उनके सहयोगी देशों विशेष तौर पर भारत के साथ संबंधो पर कोई असर नही है, भारत के साथ हमारे पुराने संबंध प्रगाढ और मैत्रीपूर्ण बने हुए है. लेकिन भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते के पेशकश के बाद रातो रात आनन फानन मे चीन के साथ इस समझौते को क्या अविश्वास के नजरिये से नही देखा जाये.हालांकि इस अग्रीमेंट के ्बावजूद भारत ने सकारात्मक रूख अपनाते हुए यही कहा था कि हमारी उम्मीद है कि मालदीव करीबी देश होने के नाते हमारी चिंताओं के प्रति संवेदनशील रहेगा।इसी सकारात्मकता का परिचय देते हुए तनाव के बावजूद दोनो देशो के बीच हाल ही मे कर्नाटक के बेल्गाम मे पूर्व निर्धारित संयुक्त सैन्याभ्यास 'एकुवेरिन'इसी सप्ताह पूरा किया जिस मे भारतीय सेना और माल्दीव नेशनल डीफेंस फोर्सेस ने हिस्सा लिया.माल्दीव की भाषा में 'एकुवेरिन' का अर्थ मित्र होता है.यह कदम निश्चय ही हिंद महासागर क्षेत्र मे माल्दीव के साथ भारत के साथ सामरिक और रणनीतिक ्साझीदारी का यह अच्छा सबूत रहा.
करीब दो दर्जन टापुओं के छोटे से देश मालदीव पर चीन का दबदबा लगातार बढ़ रहा है. हिंद महासागर के अहम कारोबारी रूट पर स्थित माल्दीव पाकिस्तान के बाद दक्षिण एशिया में दूसरा देश बन गया, जिसने चीन के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट किया। मालदीव में चीन के कई बड़े प्रॉजेक्ट चल रहे हैं और उसके कर्ज का तीन चौथाई हिस्सा चीन के हाथों मिला है। उस का कहना हैं कि यह सहायता माल्दीव के आर्थिक विकास के लिये है, दूसरी तरफ भारत मालदीव के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप करने से बचता रहा है.लेकिन इसका सीधा फायदा चीन को मिलता दिख रहा है. राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब भारत आए थे तब वे मालदीव और श्रीलंका होते हुए आए थे.माल्दीव ने भारत की हिंद महासागर क्षेत्र मे चिंताओ को दरकिनार कर माल्दीव ने चीन के साथ मैरीटाइम सिल्क रूट से जुड़े एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए . ्यही नही, माल्दीव भारत के सुरक्षा सरोकारो को नजरदांज कर चीन न की महत्वाकांक्शी वन बेल्ट वन रोड (ओआरओबी) को ्समर्थन दे रहा है.
भले ही माल्दीव ्भौगोलिक दृष्टि से भारत के पड़ोस मे है,लेकिन चीन मालदीव की भौगोलिक स्थिति पर सामरिक ्नजर रखते हुएकाफी समय से अपनी सक्रियता बढा रहा है.दक्षिण एशियाई देशों में चीन लगातार अपनी सक्रियता बढा रहा है या यूं कहे कि चीन भारत के आस पड़ोस मे अपने सक्रियता बढा रहा है,श्रीलंका का हमबनटोटा जैसा सामरिक दृष्टि से अहम बंदरगाह हो जिसे उस ने 99 वर्ष के पट्टे पर लिया हो, नेपाल के चुनावो मे वाम पंथी गठबंधन को मिलाने मे अहम भूमिका निभाने या फिर रोहिंग्या शरणार्थी मुद्दे पर बंगला देश और म्यांमार के बीच शांति समझौते कराना, और अब मा्ल्दीव के साथ मुक्त व्यापार समझौता करना, चीन, यह सब एक सोची समझी नीति के तहत कर इस क्षेत्र मे अपना प्रभाव क्षेत्र बढा रहा है.माल्दीव का मौजूदा राजनैतिक नेतृत्व जिस तरह से फैसले ले रहा हैं, उस से भारत की चिंताये स्वाभाविक है. लेकिन यह भी वास्तविकता है कि इन देशों की नज़र में मदद करने के वादे से लेकर असलियत में मदद पहुंचाने में चीन की गति भारत के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा है. भारत के लिये भी जरूरी है कि भारत इस क्षेत्र के देशो मे सहयोग करने वाली विकास परियोजनाओ मे तेज गति से आगे बढे.-साभार लोकमत हिंदी दैनिक (लेखिका वीएनआई न्यूज़ की प्रधान सम्पादिका है)
No comments found. Be a first comment here!